"चेतक": अवतरणों में अंतर
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[[महाराणा प्रताप]] के सबसे प्रिय और प्रसिद्ध नीलवर्ण अरबी मूल के घोड़े का नाम '''चेतक''' था। [[हल्दी घाटी]]-(१५७६) के युद्ध में चेतक ने अपनी अद्वितीय स्वामिभक्ति, बुद्धिमत्ता एवं वीरता का परिचय दिया था। युद्ध में बुरी तरह घायल हो जाने पर भी महाराणा प्रताप को सुरक्षित रणभूमि से निकाल लाने में सफल वह एक बरसाती नाला उलांघ कर अन्ततः वीरगति को प्राप्त हुआ। हिंदी कवि [[श्याम नारायण पाण्डेय]] द्वारा रचित प्रसिद्ध [[महाकाव्य]] [[हल्दी घाटी]] में चेतक के पराक्रम एवं उसकी स्वामिभक्ति की मार्मिक कथा वर्णित हुई है। आज भी [[चित्तौड़]] की [[ हल्दी घाटी]] में चेतक की समाधि बनी हुई है, जहाँ स्वयं प्रताप और उनके भाई शक्तिसिंह ने अपने हाथों से इस अश्व का दाह-संस्कार किया था। चेतक की स्वामिभक्ति पर बने कुछ लोकगीत मेवाड़ में आज भी गाये जाते हैं। |
[[महाराणा प्रताप]] के सबसे प्रिय और प्रसिद्ध नीलवर्ण अरबी मूल के घोड़े का नाम '''चेतक''' था। [[हल्दी घाटी]]-(१५७६) के युद्ध में चेतक ने अपनी अद्वितीय स्वामिभक्ति, बुद्धिमत्ता एवं वीरता का परिचय दिया था। युद्ध में बुरी तरह घायल हो जाने पर भी महाराणा प्रताप को सुरक्षित रणभूमि से निकाल लाने में सफल वह एक बरसाती नाला उलांघ कर अन्ततः वीरगति को प्राप्त हुआ। हिंदी कवि [[श्याम नारायण पाण्डेय]] द्वारा रचित प्रसिद्ध [[महाकाव्य]] [[हल्दी घाटी]] में चेतक के पराक्रम एवं उसकी स्वामिभक्ति की मार्मिक कथा वर्णित हुई है। आज भी [[चित्तौड़]] की [[ हल्दी घाटी]] में चेतक की समाधि बनी हुई है, जहाँ स्वयं प्रताप और उनके भाई शक्तिसिंह ने अपने हाथों से इस अश्व का दाह-संस्कार किया था। चेतक की स्वामिभक्ति पर बने कुछ [[लोकगीत]] मेवाड़ में आज भी गाये जाते हैं। |
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==चेतक की वीरता== |
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:भाला गिर गया गिरा निशंग |
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:हय टापों से खन गया अंग |
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:घोड़े का ऐसा देख रंग |
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[[श्रेणी:राजस्थान का इतिहास]] |
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महाराणा प्रताप के सबसे प्रिय और प्रसिद्ध नीलवर्ण अरबी मूल के घोड़े का नाम चेतक था। हल्दी घाटी-(१५७६) के युद्ध में चेतक ने अपनी अद्वितीय स्वामिभक्ति, बुद्धिमत्ता एवं वीरता का परिचय दिया था। युद्ध में बुरी तरह घायल हो जाने पर भी महाराणा प्रताप को सुरक्षित रणभूमि से निकाल लाने में सफल वह एक बरसाती नाला उलांघ कर अन्ततः वीरगति को प्राप्त हुआ। हिंदी कवि श्याम नारायण पाण्डेय द्वारा रचित प्रसिद्ध महाकाव्य हल्दी घाटी में चेतक के पराक्रम एवं उसकी स्वामिभक्ति की मार्मिक कथा वर्णित हुई है। आज भी चित्तौड़ की हल्दी घाटी में चेतक की समाधि बनी हुई है, जहाँ स्वयं प्रताप और उनके भाई शक्तिसिंह ने अपने हाथों से इस अश्व का दाह-संस्कार किया था। चेतक की स्वामिभक्ति पर बने कुछ लोकगीत मेवाड़ में आज भी गाये जाते हैं।
चेतक की वीरता
हिन्दी के प्रसिद्ध कवि श्यामनारायण पाण्डेय ने 'चेतक की वीरता' नाम से एक सुन्दर कविता लिखी है-
- रणबीच चौकड़ी भर-भर कर
- चेतक बन गया निराला था
- राणाप्रताप के घोड़े से
- पड़ गया हवा का पाला था
- जो तनिक हवा से बाग हिली
- लेकर सवार उड जाता था
- राणा की पुतली फिरी नहीं
- तब तक चेतक मुड जाता था
- गिरता न कभी चेतक तन पर
- राणाप्रताप का कोड़ा था
- वह दौड़ रहा अरिमस्तक पर
- वह आसमान का घोड़ा था
- था यहीं रहा अब यहाँ नहीं
- वह वहीं रहा था यहाँ नहीं
- थी जगह न कोई जहाँ नहीं
- किस अरि मस्तक पर कहाँ नहीं
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- निर्भीक गया वह ढालों में
- सरपट दौडा करबालों में
- फँस गया शत्रु की चालों में
- बढते नद सा वह लहर गया
- फिर गया गया फिर ठहर गया
- बिकराल बज्रमय बादल सा
- अरि की सेना पर घहर गया।
- भाला गिर गया गिरा निशंग
- हय टापों से खन गया अंग
- बैरी समाज रह गया दंग
- घोड़े का ऐसा देख रंग