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वार्ता:राजेन्द्र प्रसाद सिंह

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डॉ.राजेंद्र प्रसाद सिंह हिंदी के अंतराष्ट्रीय ख्यात भाषा वैज्ञानिक ,साहित्यकार व इतिहासकार हैं। ये एस.पी.जैन कॉलेज-सासाराम में हिंदी के प्रोफेसर हैं।"ओबीसी साहित्य विमर्श " तथा "हिंदी साहित्य का सबाल्टर्न इतिहास" इनकी चर्चित किताबें हैं।बौद्ध इतिहास सभ्यता के इतिहास पर इन्होंने कई नए तथ्यों से अवगत कराकर ये विश्व को चौंका दिए हैं।

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इस पृष्ठ को शीघ्र नहीं हटाया जाना चाहिये क्योंकि... (यहाँ अपना कारण बताएँ) --Professor Ravi Ranjan (वार्ता) 05:58, 15 अक्टूबर 2015 (UTC)राजेन्द्र प्रसाद सिंह (1930-2007) हिन्दी के वरिष्ठ कवि एवं हिन्दी गीतकाव्य के इतिहास में 'नवगीत' के प्रवर्तक माने जाते है.राजेन्द्र प्रसाद सिंह के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कविताकोश वेबसाइट देखा जा सकता है जिसका लिंक है :kavitakosh.org/kk/राजेन्द्र_प्रसाद_सिंहउत्तर दें

रवि रंजन Professor Ravi Ranjan (वार्ता) 05:58, 15 अक्टूबर 2015 (UTC)उत्तर दें

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इस पृष्ठ को शीघ्र नहीं हटाया जाना चाहिये क्योंकि... (यहाँ अपना कारण बताएँ) --Professor Ravi Ranjan (वार्ता) 06:32, 15 अक्टूबर 2015 (UTC) हिन्दी गीतकाव्य के इतिहास में मुजफ्फरपुर, बिहार के निवासी राजेन्द्र प्रसाद सिंह (12 जुलाई, 1930 - 8 नवंबर, 2007) नवगीत के प्रवर्तक तथा एक बड़े कवि के रूप में जाने जाते हैं। राजेन्द्र जी ने 'नयी कविता' के समानांतर रचे जा रहे गीतों की भिन्न प्रकृति एवं रचना विधान को रेखांकित करने वाले नए गीतों के प्रथम संकलन 'गीतांगिनी' (1958) का संपादन किया और उसकी भूमिका में 'नवगीत' के रूप में नए गीतों का नामकरण एवं लक्षण निरूपित किया। कालान्तर में अनेक कविता संग्रहों (भूमिका, मादिनी, दिग्वधू,संजीवन कहाँ, डायरी के जन्मदिन, शब्दयात्रा, प्रस्थानबिंदु इत्यादि) के साथ-साथ उनके कई स्वतन्त्र नवगीत संग्रह ('आओ खुली बयार', 'रात आँख मूँद कर जगी', 'भरी सड़क पर' आदि ) भी प्रकाशित हुए और जीवन के उत्तरार्ध में उन्होंने अनेक जनगीतों की भी रचना की जो 'गज़र आधी रात का' एवं 'लाल नील धारा' के नाम से प्रकाशित हैं.उत्तर दें

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इस पृष्ठ को शीघ्र नहीं हटाया जाना चाहिये क्योंकि... (यहाँ अपना कारण बताएँ) --14.139.69.40 (वार्ता) 19:55, 16 अक्टूबर 2015 (UTC)उत्तर दें

हिन्दी गीतकाव्य के इतिहास में मुजफ्फरपुर,बिहार के निवासी राजेन्द्र प्रसाद सिंह 'नवगीत'के प्रवर्तक एवं एक महत्वपूर्ण कवि और विचारक के रूप में जाना जाता है. राजेन्द्र जी ने 'नयी कविता' के समानांतर रचे जा रहे गीतों की भिन्न प्रकृति एवं रचना विधान को रेखांकित करने वाले नए गीतों के प्रथम संकलन 'गीतांगिनी' (1958) का संपादन किया और उसकी भूमिका में 'नवगीत' के रूप में नए गीतों का नामकरण एवं लक्षण निरूपित किया। कालान्तर में अनेक कविता संग्रहों (भूमिका, मादिनी, दिग्वधू,संजीवन कहाँ, डायरी के जन्मदिन, शब्दयात्रा, प्रस्थानबिंदु इत्यादि) के साथ-साथ उनके कई स्वतन्त्र नवगीत संग्रह ('आओ खुली बयार', 'रात आँख मूँद कर जगी', 'भरी सड़क पर' आदि ) भी प्रकाशित हुए और जीवन के उत्तरार्ध में उन्होंने अनेक जनगीतों की भी रचना की जो 'गज़र आधी रात का' एवं 'लाल नील धारा' के नाम से प्रकाशित हैं. राजेन्द्र प्रसाद सिंह की 'जनवादी लेखन और रचानास्थिति','साहित्य की पारिस्थिकी' एवं 'भारतीय संगीत का समाजशास्त्रीय सन्दर्भ' आदि पुस्तकें उनके साहित्य और संस्कृति विषयक महत्वपूर्ण चिंतन का परिचायक है.