सदस्य वार्ता:Professor Ravi Ranjan

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'गीतांगिनी' हिन्दी नवगीत का नाम-लक्षण निरूपक प्रथम संकलन है जिसे हिन्दी कवि एवं गीतकार राजेन्द्र प्रसाद सिंह ने सन 1958 में संपादित कर 'मधुरिमा साहित्य प्रकाशन', मुजफ्फरपुर,बिहार से प्रकाशित करवाया था. उन्होंने हिन्दी की 'नयी कविता' के समानांतर रचे जा रहे नए गीतों की नई अंतर्वस्तु एवं नए रूप-विधान के मद्देनज़र 'गीतांगिनी' की भूमिका में उन्हें पहली बार 'नवगीत' नाम देते हुए लिखा कि "नयी कविता के कृतित्व से युक्त या वियुक्त भी ऐसे धातव्य कवियों का अभाव नहीं है, जो मानव जीवन के ऊंचे और गहरे, किन्तु सहज नवीन अनुभव की अनेकता, रमणीयता, मार्मिकता, विच्छित्ति और मांगलिकता को अपने विकसित गीतों में सहेज संवार कर नयी ‘टेकनीक’ से, हार्दिक परिवेश की नयी विशेषताओं का प्रकाशन कर रहे हैं । प्रगति और विकास की दृष्टि से उन रचनाओं का बहुत मूल्य है, जिनमें नयी कविता की प्रगति का पूरक बनकर ‘नवगीत’ का निकाय जन्म ले रहा है। यह वही समय था जब एक ओर ‘अज्ञेय’ द्वारा गीत को ‘गौण विधा’ कहा जा रहा था तो दूसरी ओर प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिकाओं में गीत का प्रकाशन लगभग बंद हो चुका था । ‘गीतांगिनी’ के सम्पादकीय के रूप में कदाचित नवगीत का घोषणा-पत्र प्रस्तुत करते हुए राजेन्द्र प्रसाद सिंह ने नवगीत के जिन पाँच विकासशील तत्वों को निरूपित किया है, वे हैं— जीवन-दर्शन, आत्मनिष्ठा, व्यक्तित्व-बोध, प्रीति-तत्व, और परिसंचय । यदि हम हिन्दी गीत-काव्य के इतिहास पर वस्तुनिष्ठ होकर विचार करें तो स्पष्ट होगा कि ‘नवगीत’ के पूर्व गीतों में दर्शन की प्रचुरता थी- जीवन दर्शन की नहीं; धर्म, नैतिकता और रहस्य की निष्ठा का स्रोत था- व्यावहारिक आत्मनिष्ठा का नहीं; व्यक्तिवादिता थी- व्यक्तित्व-बोध नहीं, प्रणय- शृंगार था,-जीवनानुभव से अविभाज्य प्रीति-तत्व नहीं, तथा सौंदर्य एवं मार्मिकता के प्रदत्त प्रतिमान थे,- प्रेरणा की विविध विषय-वस्तुओं के परिसंचय का सिलसिला नहीं । ‘गीतांगिनी’ में संकलित नवगीतों पर विचारने से हम पाते हैं कि इसके सम्पादकीय में निरूपित पांचों तत्व गीत के स्वभावगत परिवर्तन को रेखांकित कर स्वयंसिद्ध हुए हैं । ये विशेष तत्व, वस्तुतः नयी पीढ़ी के स्वभाव में भी बदलाव ला रहे थे, जो उस पीढ़ी के गीतकारों में उजागर हुए। उल्लेखनीय है कि 'गीतांगिनी'(1958) में ही महाप्राण निराला से लेकर शंभुनाथ सिंह तक के नए तेवर एवं नयी संरचना वाले गीत पहली बार बतौर 'नवगीत' प्रकाशित हुए थे.इसलिए हिन्दी गीतकाव्य के इतिहास में 'गीतांगिनी' एक महत्वपूर्ण संकलन है.[1]

(Ravi Ranjan 19:21, 22 अक्टूबर 2015 (UTC)) रवि रंजन

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Darth Whale वार्ता 21:59, 22 अक्टूबर 2015 (UTC)[उत्तर दें]

  1. रंजन, रवि. "गीतांगिनी का सम्पादकीय : नवगीत का घोषणा पत्र". academia.edu. अभिगमन तिथि 22 अक्टूबर 2015.