रोट पूजन

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रोट पूजन गुर्जर समाज द्वारा मनाया जाने वाला एक त्योहार है। इसे सम्पूर्ण मालवा क्षेत्र, पश्चिमी मध्य प्रदेश और दक्षिणी राजस्थान में प्रत्येक वर्ष भादो माह की पूर्णिमा को बड़े हर्ष से मनाया जाता है। इस त्योहार में ओआई माता की पूजा की जाती हैं। इस त्यौहार पर समाज के लोग विभिन्न नए कार्य करने को प्राथमिकता देते है, जैसे नई बधू को विवाह के बाद पहली बार ससुराल लाना, बच्चों का नामकरण आदि।[1][2]

इस पूजा के संबंध में एक मिथक कथा भी है, जिसके अनुसार माता साडू ने इस पूजा की शुरुआत की थी। माता साडू जब उज्जैन आयी तब अपने पुत्र भगवान देव नारायण जी को एक बावड़ी के पास सुला कर कुछ काम करने लगी तभी देव नारायण जी को भूख लगी और वो रोने लगे तभी एक शेरनी ने आ कर अपना दूध पिलाना शुरू कर दिया। अपने दुधमुँहे पुत्र को जंगल की शेरनी का स्तनपान करते देख माता साडू डर गयी और माँ दुर्गा से प्रार्थना करने लगी कि हे माँ मेरे पुत्र की इस शेरनी से रक्षा करो, मैं तीन दिन तक अछूता दूध रख कर तुम्हारी पूजा करूँगी। तभी शेरनी वहाँ से चली गयी। तब माता साडू ने तीन दिन के लिए पूजा की जिसे गुर्जर समाज ‘रोट पूजा’ के नाम से जानता है। ये पूजा माता साडू ने अपने पीहर उज्जैन मे की थी इसलिए केवल मालवा क्षेत्र में ही ये पूजा होती है। इन दिनो दूध एवं उससे बने उत्पाद का सेवन गुर्जर समाज मे वर्जित रहता है।[3]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. "Redirect Notice". www.google.com.[मृत कड़ियाँ]
  2. "रोट पूजन समारोह में 13 को होगा शौर्य का संगम". Dainik Jagran.[मृत कड़ियाँ]
  3. "महिलाओं ने निर्जला व्रत, रोट तीज की पूजा की". Dainik Bhaskar. 13 सितम्बर 2018.[मृत कड़ियाँ]