मोहम्मद (नाटक)

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पुस्तक के सन् 1753 संस्करण का मुखपृष्ट

मोहम्मद (फ्रांसीसी : Le fanatisme, ou Mahomet le Prophète , शाब्दिक अर्थ : कट्टरता, या पैगम्बर मोहम्मद ) फ्रांसीसी नाटककार और दार्शनिक वोल्टेयर द्वारा 1736 में रचित दुखान्त नाटक है। इसमें पांच-अंक हैं। 25 अप्रैल 1741 को लिली में इसे पहली बार मंचित किया गया था।

यह नाटक मुहम्मद की पारम्परिक जीवनी में मौजूद धार्मिक कट्टरता और स्वार्थ के लिए किए गए हेरफेर का अध्ययन है जिसमें वह अपने आलोचकों की हत्या का आदेश देते हैं। [1] वोल्टेयर ने इस नाटक को "एक झूठे और बर्बर संप्रदाय के संस्थापक के विरोध में लिखा गया" बताया था। [2]

कथानक[संपादित करें]

नाटक का काल मक्का बिजय के पूर्व युद्धविराम के समय का है (६२९ ई)। प्रथम अङ्क में श्रोताओं का परिचय मक्का के एक काल्पनिक नेता से होता है जिसका नाम 'जोपिर' है। वह स्वतंत्रतता और स्वतंत्रचिन्तन का घोर समर्थक है। यहाँ पर मुहम्मद को अपने सेनापति ओमर, विरोधी जोपिर तथा उसके दो बच्चों (सेइद और पालमिरा) के साथ वार्ता करते हुए दिखाया गया है। सेइद और पाल्मिरा को मुहम्मद ने १५ वर्ष पूर्व उनके बचपन में ही अपहरण करके गुलाम बना लिया था, किन्तु जोपिर को इसका ज्ञान नहीं था। जोपिर, मुहम्मद स्वीकार नहीं करता।

पालमीरा अब जवान और सुन्दर है। उस पर मुहम्मद की ईर्ष्या और कामदृष्टि पड़ते हुए दिखाया गया है। पालमीरा और सेइद में प्यार बढ़ते हुए देखकर मुहम्मद सेइद को पालमीरा से अलग करने का कुचक्र रचते हैं। इसके लिए वह सेइद को मजहबी उन्माद में डालकर जोपिर पर आत्मघाती हमला करने के लिए मक्का भेजने की योजना बनाते हैं। इसके पीछे मुहम्म्द की सोच है कि इससे जोपिर और सेइद दोनों से मुक्ति मिल जाएगी और पालमीरा उनसे प्यार करने लगेगी। [3]इस आचरण को मुहम्मद दैवी आदेश बताते हैं। सेइद के मन में जोपिर के आचरण के प्रति आदर का भाव है। इसलिए पहले वह हिचकिचाता है किन्तु धर्मान्धता का वशीभूत वह अन्ततः जोपिर की हत्या कर देता है। [4]

फेनोर आता है और सेइद तथा पाल्मीरा को सारी सच्चाई बता देता है कि जोपिर उनका पिता था। अब ओमर आता है और धोखे से सेइद को जोपिर की हत्या के लिए गिरफ्तार करने का आदेश देता है, यह जानते हुए भी कि जोपिर की हत्या का आदेश स्वयं मुहम्मद ने दिया था। मुहम्मद इस घटना पर परदा डालने का निर्णय लेते हैं ताकि उनका यह धोखा और अत्याचार सबके सामने न आ पाए।

मुहम्मद की धोखेबाजी को पहचान चुकी पालमीरा मुहम्मद के खुदा का त्याग करते हुए आत्महत्या कर लेती है किन्तु मुहम्मद के चंगुल में नहीं आती।[5]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. Voltaire, Mahomet the Prophet or Fanaticism: A Tragedy in Five Acts, trans. Robert L. Myers, ( New York: Frederick Ungar, 1964).
  2. Voltaire Letter to Benedict XIV written in Paris on August 17, 1745 AD: "Your holiness will pardon the liberty taken by one of the lowest of the faithful, though a zealous admirer of virtue, of submitting to the head of the true religion this performance, written in opposition to the founder of a false and barbarous sect. To whom could I with more propriety inscribe a satire on the cruelty and errors of a false prophet, than to the vicar and representative of a God of truth and mercy? Your holiness will therefore give me leave to lay at your feet both the piece and the author of it, and humbly to request your protection of the one, and your benediction upon the other; in hopes of which, with the profoundest reverence, I kiss your sacred feet."
  3. Mahomet Act IV Scene I Mahomet speaking We must work in secret, the dark shades of death must hide our purpose—while we shed old Zopir's blood, be sure you keep Palmira in deepest ignorance; she must not know the secret of her birth: her bliss and mine depend upon it
  4. Mahomet Act IV scene IV Seid declares, To serve my God, to please and merit thee, This sword, devoted to the cause of heaven, Is drawn, and shall destroy its deadliest foe,
  5. Mahomet Act V scene VI

 

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]