माया राव

माया राव (2 मई 1928 - 1 सितंबर 2014) कथक नृत्य में भारतीय शास्त्रीय नृत्यांगना, कोरियोग्राफर और शिक्षिका थीं। वह कथक कोरियोग्राफी में अपने अग्रणी काम के लिए जानी जाती हैं। उन्होंने 1987 में मल्लेश्वरम, बैंगलोर में अपना डांस स्कूल, नाट्य इंस्टीट्यूट ऑफ कथक और कोरियोग्राफी (NIKC) खोला।[1] इसलिए उन्हें उत्तर भारतीय-नृत्य शैली कथक को दक्षिण भारत में लाने का श्रेय दिया जाता है। वह अपनी डांस कंपनी, "नाट्य और स्टेम डांस कम्पनी" की संस्थापक भी थीं। जयपुर घराने के गुरु सोहनलाल के तहत अपने शुरुआती प्रशिक्षण के बाद उन्होंने जयपुर घराने के ही गुरु सुंदर प्रसाद का अनुसरण किया। बाद में उन्होंने दिल्ली में राष्ट्रीय संस्थान कथक नृत्य में लखनऊ घराने के गुरु शंभू महाराज के तहत प्रशिक्षण प्राप्त किया।
1989 में संगीत नाटक अकादमी द्वारा उन्हें संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार प्रदान किया गया। 2011 में, अकादमी ने उन्हें भारत भर के 100 कलाकारों को दिए गए संगीत नाटक टैगोर रत्न से सम्मानित किया। यह पुरस्कार रवींद्रनाथ टैगोर की 150 वीं जयंती पर उनके प्रदर्शन कला के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए दिया गया।
प्रारंभिक जीवन
[संपादित करें]उनका जन्म मल्लेश्वरम, बैंगलोर में रूढ़िवादी कोंकणी सारस्वत ब्राह्मण परिवार में शहर के प्रसिद्ध वास्तुकार हट्टंगड़ी संजीव राव और सुभद्रा बाई के घर में हुआ था। उनके तीन भाई और तीन बहनें थीं। कम उम्र में ही उन्होंने हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत और वाद्य यंत्र दिलरुबा सीखा। वह रूढ़िवादी परिवार से थीं जहाँ लड़कियों का नृत्य सीखना वर्जित माना जाता है। हालाँकि यह तब बदल गया जब 12 साल की उम्र में उनके वास्तुकार पिता ने बैंगलोर में BRV टॉकीज़ सभागार में नर्तक उदय शंकर की मंडली का प्रदर्शन देखा। प्रदर्शन से प्रेरित होकर उनके पिता चाहते थे कि उनकी बेटियां नृत्य सीखें।[2]
उनके गुरु पंडित रामाराव नाइक, उस्ताद फैयाज खान के शिष्य और आगरा घराने के गायक थे। उन्होंने बेंसन टाउन, बैंगलोर में संगीत और नृत्य विद्यालय चलाया जहाँ विभिन्न नृत्य और संगीत शैलियों को सिखाया जाता था। यहां जयपुर घराने के सोहन लाल कथक अनुभाग के प्रभारी थे। जल्द ही, उनकी छोटी बहनें, उमा और चित्रा ने छह साल और चार साल की उम्र में, गुरु सोहनलाल के अधीन कथक सीखना शुरू कर दिया। जबकि बारह साल की उम्र में उन्हें कथक सीखने के लिए बहुत उम्रदराज माना जाता था। अंत में, उनके पिता ने उन्हें 1942 में कथक प्रशिक्षण शुरू करने की अनुमति दी।
स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद 1945 में सेंट्रल कॉलेज, बैंगलोर में अंग्रेजी साहित्य में बी.ए. किया। बाद में उन्होंने बैंगलोर में महारानी कॉलेज में अध्ययन किया। यहाँ, उन्होंने नृत्य करने के लिए एक क्लब का गठन किया और नृत्य-नाटक प्रस्तुत किए। इस बीच, उनके पिता की मृत्यु 1946 में हुई। उनके परिवार के घर को एक साल के भीतर नीलाम कर दिया गया और परिवार एक कमरे वाले घर में चला गया। जल्द ही उन्होंने अपने भाई मनोहर के साथ घर का कामकाज संभाला और अपने परिवार को सहारा देने के लिए 17 साल की उम्र में नृत्य सिखाना शुरू कर दिया।
करियर
[संपादित करें]वह 1951 में कथक की तलाश में जयपुर चली गईं। उन्होंने अगले दो वर्षों के लिए महारानी गायत्री देवी गर्ल्स पब्लिक स्कूल में अंग्रेजी पढ़ाना शुरू कर दिया। इसके बाद वह श्रीलंका चली गईं और उन्होंने प्रसिद्ध नृत्यांगना, चित्रसेना के साथ कैंडियन नृत्य का अध्ययन किया। इसके बाद, 1955 में उन्होंने भारत सरकार की छात्रवृत्ति प्राप्त की और नई दिल्ली के भारतीय कला केंद्र में लखनऊ घराने के प्रख्यात गुरु शंभू महाराज के अधीन प्रशिक्षण प्राप्त किया। 1960 में, उन्हें कोरियोग्राफी में यूएसएसआर कल्चरल स्कॉलरशिप के लिए कोरियोग्राफी में मास्टर की पढ़ाई के लिए चुना गया था। 1964 में रूस से लौटने पर, संगीत नाटक अकादमी के तत्कालीन उपाध्यक्ष कमलादेवी चट्टोपाध्याय की मदद से उन्होंने भारतीय नाट्य संघ के तत्वावधान में दिल्ली में नाट्य इंस्टिट्यूट ऑफ़ कोरियोग्राफी शुरू किया।
तत्पश्चात वह तत्कालीन मुख्यमंत्री रामकृष्ण हेगडे के निमंत्रण पर NIKC को बैंगलोर स्थानांतरित करने से पहले कई वर्षों तक दिल्ली में रहीं। इन वर्षों में, उन्होंने 3,000 से अधिक छात्रों को प्रशिक्षित किया है जिनमें विशेष रूप से, निरुपमा राजेन्द्र, सैयद सल्लउद्दीन पाशा, सत्य नारायण चक्का, शंभू हेगड़े, शिवानंद हेगड़े का नाम उल्लेखनीय हैं। उनकी बेटी मधु नटराज प्रशंसित नर्तक और कोरियोग्राफर है। 1 सितंबर 2014 की मध्यरात्रि के तुरंत बाद उनकी हृदय गति रुकने से मृत्यु हो गई।[3]
इन्हें भी देखें
[संपादित करें]सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ Shoba Narayan (26 July 2014). "How Kathak breached the north-south divide". Mint. Archived from the original on 28 जुलाई 2014. Retrieved 26 July 2014.
- ↑ GS Kumar (25 August 2014). "Maya Rao took forbidden dance to a new level". The Times of India. Archived from the original on 27 अगस्त 2014. Retrieved 1 September 2014.
- ↑ "Kathak danseuse Maya Rao no more". 1 September 2014. Archived from the original on 3 सितंबर 2014. Retrieved 2 September 2014.