महामहोपाध्याय
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महामहोपाध्याय (=महा + महा + उपाध्याय ; अर्थ : महान् पण्डितों में भी महान्) एक मानद उपाधि है जो भारत सरकार द्वारा प्रदान की जाती है। १९४७ में स्वतंत्रता के पूर्व यह उपाधि ब्रिटिश राज द्वारा दी जाती थी। उसके भी पहले भारतीय राजा यह उपाधि प्रदान करते थे। प्राचीन काल में जो विद्वान शास्त्रों से सम्बद्ध विषयों पर ग्रन्थरचना करते थे, उन्हें महामहोपाध्याय की उपाधि प्रदान की जाती थी।
कुछ प्रमुख व्यक्ति जिन्हें महामहोपाध्याय की उपाधि से अलंकृत किया गया था/है, ये हैं-
- कविराजा श्यामलदास (1836-1893), मेवाड़ रियासत के दीवान (प्रशासक), इतिहासकार; वीर विनोद के ग्रंथकर्ता[1]
- कविराजा मुरारदान (1830 - 1914), मारवाड़ रियासत के दीवान, कौंसिल मेंबर, अदालत दीवानी के अफसर, अपील अदालत के जज, जनरल सुपरटेंडेंट, व मजिस्ट्रेट।[2]
- महामहोपाध्याय कलाप्रपूर्ण व्याकरणशिरोमणि प्रतिवाद भयंकर तात सुब्बराय शास्त्री (1867-1944)
- रेवाप्रसाद द्विवेदी
- कल्याण दत्त शर्मा
- हरप्रसाद शास्त्री
- पाण्डुरंग वामन काणे
- जयमन्त मिश्र
- वेदम वेंकटराय शास्त्री
- राम अवतार शर्मा
- दत्तो वामन पोतदार
- गोपीनाथ कविराज
- बिश्वेश्वर नाथ रेऊ
- वासुदेव विष्णु मिराशी
- महामहोपाध्याय आचार्य सतीश अवस्थी
- ↑ Cultural contours of India p37
- ↑ Gulerī, Candradhara Śarmā (1987). Gulerī racanāvalī. Kitābaghara.