महबूब अली खान
मीर महबूब अली ख़ान | |
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आसफ़ जाह VI | |
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Nizam of Hyderabad | |
शासनावधि | 26 February 1869 – 29 August 1911 |
पूर्ववर्ती | अफ़ज़ल-उद-दौला, अासफ जाह V |
उत्तरवर्ती | मीर उस्मान अली ख़ान |
जन्म | 18 अगस्त 1866 पुरानी हवेली, हैदराबाद, हैदराबाद स्टेट, ब्रिटिश भारतीय साम्राज्य (now in तेलंगाना, भारत) |
निधन | 29 अगस्त 1911 (आयु 45) फ़लकनुमा पैलेस, हैदराबाद, हैदराबाद स्टेट, ब्रिटिश भारतीय साम्राज्य (अब तेलंगाना, भारत) |
समाधि | |
जीवनसंगी | अमत उज़-ज़हरा बेगम |
घराना | आसफ़ जाही राजवंश |
पिता | अफ़ज़ल-उद-दौला, अासफ जाह V |
आसफ़ जाह VI मीर महबूब अली ख़ान सिद्दीक़ी (Mir Mahboob Ali Khan Siddiqi) GCB (18 अगस्त 1866 – 29 अगस्त 1911) हैदराबाद के छटवें निज़ाम थे। इन्होंने 1869 और 1911 के मध्यकाल में भारत के हैदराबाद राज्य पर राज किया।
प्रारंभिक जीवन
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5 वें निजाम "अफ़ज़ल-उद-दौला, अासफ जाह V" के इकलौते बेटे थे । पिता की मृत्यु के समय वह केवल दो वर्ष-सात महीने के थे । कहते निज़ाम मीर महबूब अली खान (18 अगस्त 1866 – 29 अगस्त 1911) के दौरान जीवित थे। इस प्रकार 1869 में उनको असफ जाही राजवंश का 6 वां निजाम बनाया गया। उन्हें मीर तुराब अली खान, सालार जंग प्रथम द्वारा निजाम के रूप में स्थापित किया गया था, "नवाब" रशीद-उद-दीन खान 'शम्स-उल-उमरा तृतीय' 'जिन्होंने रीजेंट के रूप में काम किया था। शम्स-उल-उमरा तृतीय की मृत्यु 1881 में हुई और सालार जंग को एकमात्र रीजेंट बनाया गया। 8 फरवरी 1883 को उनकी मृत्यु तक प्रशासक और रीजेंट के रूप में रखा गया था।
अंग्रेजी द्वारा प्रशिक्षित महबूब अली खान की शिक्षा के लिए विशेष ध्यान दिया गया था। सालार जंग की सहमति के साथ, कैप्टन जॉन क्लर्क को प्रशिक्षित करने के लिए नियुक्त किया गया था और फारसी, अरबी और उर्दू में अच्छी तरह से विद्वानों को भी शिक्षक के रूप में शामिल किया गया था। सर सलार जंग का व्यक्तित्व और महान जीवन असफ़ जहां छठी पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ा।
वह उर्दू , तेलुगू और फ़ारसी भाषाओं में भी धाराप्रवाह थे। उन्होंने तेलुगु और उर्दू में कविताएं भी लिखीं; जिनमें से कुछ हुसैन सागर (टैंक-बंड) की दीवारों पर अंकित हैं।


अपने राज्य में योगदान
[संपादित करें]चिकित्सा अनुसंधान में रुचि
[संपादित करें]"भारत कोकिला" श्रीमती सरोजिनी नायडू की अंतराष्ट्रीय शिक्षा का भी इसी निज़ाम ने प्रबंध किया था।
सर्जरी में क्लोरोफॉर्म की प्रभावकारिता साबित करने के लिए निजाम द्वारा प्रदान किए गए दान से "श्रीमती सरोजिनी नायडू" को इंग्लैंड भेजा गया था। सरोजिनी नायडू को पहले लंदन के किंग्स कॉलेज और बाद में कैम्ब्रिज के गिरटन कॉलेज में अध्ययन करने का मौका मिला ।[1]
सती प्रथा के अभ्यास को खत्म करने में योगदान
[संपादित करें]निज़ाम VI, मीर महबूब अली पाशा हिन्दू महिलाओं की अपने पतियों के पीर में कूदकर अपनी जिंदगी देने वाली महिलाओं की कहानियां सुनार उदास हो गए थे।अभिलेखागार पत्रों के मुताबिक, निज़ाम का कहना है कि दुर्भाग्य लोग सरकारी घोषणाओं से अनजान हैं और केवल अज्ञानता के कारण आज भी "सती" अभ्यास करते हैं। इसलिए, उन्होंने अपने राज्य के कुछ हिस्सों में सती को जारी रखने का गंभीर नोट लिया।[2]
निजाम ने स्वयं 12 नवंबर,1876 को एक चेतावनी घोषणा जारी किया और कहा, अब यह सूचित किया गया है कि यदि भविष्य में कोई भी इस दिशा में कोई कार्रवाई करता है, तो उन्हें गंभीर परिणामों का सामना करना पड़ेगा। अगर तलुकादार, नवाब, जगदीड़, ज़मीनदार और अन्य इस मामले में लापरवाही और लापरवाही पाए जाते हैं, सरकार द्वारा उनके खिलाफ गंभीर कार्रवाई की जाएगी " [3]
व्यक्तिगत खासियतें
[संपादित करें]अलौकिक उपचार शक्तियाँ
[संपादित करें]उनके पास सांप के काटने के खिलाफ आध्यात्मिक उपचार शक्ति थी। उनकी प्रजा के बीच यह मशहूर थी कि यदि किसी भी व्यक्ति को सांप काटा हो, तो वे इलाज के लिए उनके पास जा सकते हैं। इसके फलस्वरूप राजा को अपने शासनकाल में कई बार नींद से जगाया गया था। उनके मंत्रियों में से एक, नवाब मुनेरुद्दीन खान उर्फ सिकंदर यार जंग ने उन्हें सांप के काटने का जादू तोड़ सिखाया । [4][5]
प्रजा द्वारा अन्य नाम
[संपादित करें]6 वें निज़ाम की कई उदाहरणों के आधार पर उन्हें प्रजा मेहबूब के नाम से जान करती थी; जैसे के 1908 में मूसी नदी के शहर में बाढ़ के दौरान लोगों के लिए अपने महल खोलना और राहत कार्यों की सीधी निगरानी करना।
कई बार बाघ पड़ोसी गांवों के स्थानीय किसानों के लिए जीवन खतरा साबित हुए, जिसके कारण कई किसानों को जान से हाथ धोना पढ़ा था, तो उनके बचाव के लिए उनके राजा स्वयं कई बार आ जाया करते थे। कुल मिलाकर उन्होंने 33 बाघों को मार गिराया। जिसके चलते उन्हें "तीस मार खान" के नाम से भी जाना जाता था।[6][7]
भेस बदलकर राज्य में घूमना
[संपादित करें]निजाम खुद को छिपाने के लिए भी जाने जाते थे। इसका कारण यह था कि एक शासक के रूप वे रात के अंधेरे में यह सुनिश्चित कर सकें कि उनकी प्रजा को किसी भी बड़ी समस्या का सामना करना नहीं पड़ रहा है।[8]
जिस रात निजाम गिरफ्तार हुआ
[संपादित करें]यह अच्छी तरह से जाना जाता है कि नवाब महबूब अली खान अपने विषयों के कल्याण के बारे में जानकारी प्राप्त करने की कोशिश कर रात में महल से बाहर निकलते थे। ऐसा एक विशेष अभ्यास शासक के लिए काफी अविस्मरणीय अनुभव बन गया।
छिपे हुए भेज़ में , नवाब महबूब अली खान ने शाह अली बांदा इलाके गए जहां उन्होंने एक दुकान खुली देखी। रात में बहुत देर हो चुकी थी और वह गंदे और फटे हुए कपड़े पहने हुए थे। निजाम दुकान में गया और धूम्रपान करने के लिए सिगरेट पूछा, दुकानदार ने उसे कुछ एक बीड़ी दी । निज़ाम अपने जेब हाट दाल कर एक सोने की अशरफी बाहर निकाली।
दुकानदार ने सोने का सिक्का लिया और अपने आगंतुक को खुद को आरामदायक बनाने के लिए कहा। उसके बाद वह सैयद अली चबुतरा में स्थित एक पुलिस चौकी चले गए, जहां उन्होंने कॉन्स्टेबल को बताया कि एक आदमी ने सोना सिक्का के साथ बोली लगाने के लिए भुगतान किया था।
कॉन्स्टेबल नीचे उतर गया, और निजाम को पुलिस चौकी ले गया । उसके बाद उसने अपने कैदी से चार और अशर्फियाँ बरामद किया। कॉन्स्टेबल ने उनसे पूछा कि उन्होंने सोने के सिक्के कहाँ से चुराए हैं। निज़ाम चुप रहा और कॉन्स्टेबल के पास उसे बंद करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था।
अगली सुबह, (इंस्पेक्टर) आया और उससे पूछा कि क्या कोई मामला है। कॉन्स्टेबल ने तुरंत कैदी को अमीन के सामने पेश किया और उसे बताया कि "चोर" पांच अशरफिस के साथ पकड़ा गया था। पुलिस अधिकारी आश्चर्यचकित हो गया और निजाम से पूछताछ की जहां उसने सिक्के चुराया था और उसका नाम क्या था।
निजाम ने उत्तर दिया कि उसका नाम महबूब अली खान था और उनके पिता अफजल-उद-डोवला थे। यह सुनकर, अमीन को एहसास हुआ कि क्या हुआ था और निज़ाम के पैरों पर क्षमा के लिए भीख मांगने लगा।[9]
खिताब
[संपादित करें]लिएउतनान्त-जनरल हिज़ हाइनेस रुस्तम-ए-दौरान, अरुस्तु-इ-ज़मान, वल मामुलुक, मुज़फ्फर उल-मामलुक, असाफ जह 6, निज़ाम उल-मुल्क, नवाब सर मीर महबूब अली खान सिद्दीक़ी बहादुर, सिपाही सालार, फतह जंग, निज़ाम ऑफ़ हैदराबाद, GCB, जी.सी.एस.आई
यह भी देखें
[संपादित करें]सन्मान
[संपादित करें](ribbon bar, as it would look today)
सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ "संग्रहीत प्रति". Archived from the original on 25 अगस्त 2018. Retrieved 24 अगस्त 2018.
- ↑ "Letters leave a rich legacy of rulers". Archived from the original on 20 सितंबर 2018.
- ↑ "Letters leave a rich legacy of rulers" (in अंग्रेज़ी). Archived from the original on 20 सितंबर 2018.
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(help) - ↑ "संग्रहीत प्रति". Archived from the original on 6 फ़रवरी 2017. Retrieved 24 अगस्त 2018.
- ↑ "Extraordinary powers". Archived from the original on 12 नवंबर 2018. Retrieved 12 नवंबर 2018.
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(help) - ↑ "संग्रहीत प्रति". Archived from the original on 28 अगस्त 2018. Retrieved 21 अगस्त 2018.
- ↑ सिद्दीकी, मोहम्मद (सितम्बर २, २०१६). "Hyderabad remembers Mahbub Ali Pasha". Archived from the original on 15 जुलाई 2018.
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(help) - ↑ "संग्रहीत प्रति". Archived from the original on 24 अगस्त 2018. Retrieved 24 अगस्त 2018.
- ↑ "Picturing the 'Beloved'". Archived from the original on 24 अगस्त 2018. Retrieved 25 सितम्बर 2018.
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