मरूद्भिद

वे पौधे जो शुष्क स्थानों में उगते हैं, मरूद्भिद कहलाते हैं। ये पौधे जिन स्थानों पर उगते हैं, वहाँ पर प्राप्य जल या तो बहुत कम होता है या इस प्रकार का होता है कि पौधे उसे प्रयोग नहीं करते।[1] नागफनी, यूफोर्बिया, एकासिया, कैजुराइना आदि कैक्टस वर्गीय शुष्क स्थानों एवं रेगिस्तानों में उगने वाले पौधे मरूद्भिदों के सुन्दर उदाहरण हैं।[2] ये पौधे प्रायः आकार में छोटे एवं बहुवर्षीय होते हैं। कैक्टस की कुछ प्रजातियाँ तो ८० वर्षों तक जीवित रहती हैं।[3] शुष्क स्थानों में पाये जाने वाले ये पौधे विपरीत परिस्थितियों से बचने के लिए अनुकूलित होते हैं।
इनकी जड़े जल की खोज में अति विकसित एवं शाखान्वित हो जाती हैं। जड़ों पर मूलरोम एवं मूलटोप पाये जाते हैं जिससे इनकी जल-अवशोषण क्षमता अधिक होती है। तने शाखान्वित तथा छोटे होते हैं जिन पर रोम व क्यूटिकिल की परत रहती है जससे जल का क्षय कम से कम होता है। नागफनी, कोकोलोबा व सतावर के पौधों में तने मांसल या पत्ती के सदृश्य होकर जल का संचय करते हैं। वाष्पोत्सर्जन की दर को कम करने के लिए पत्तियाँ छोटी होती हैं या शल्कों में रूपान्तर हो जाती हैं, कुछ मरूद्भिद जैसे करोल में तो पत्तियाँ पूर्णरूप से अनुपस्थित होती हैं। मरूद्भिदों में आन्तरिक संवहन के लिए आवश्यक जाइलम एवं फ्लोएम ऊतक सुविकसित होते हैं। स्टोमेटा की संख्या कम होती है तथा ये रोमयुक्त और अन्दर की ओर धँसे होते हैं।
सन्दर्भ
- ↑ सिंह, गौरीशंकर (मार्च १९९२). हाई-स्कूल जीव-विज्ञान. कोलकाता: नालन्दा साहित्य सदन. p. ४७-४८.
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(help)CS1 maint: year (link) - ↑ यादव, नारायण, रामनन्दन, विजय (मार्च २००३). अभिनव जीवन विज्ञान. कोलकाता: निर्मल प्रकाशन. p. १-४०.
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(help)CS1 maint: multiple names: authors list (link) CS1 maint: year (link) - ↑ "पेरू का राक्षसी कैक्टस". जोश १८. Archived from the original on 9 नवंबर 2009. Retrieved २० नवंबर २००९.
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