फ़र्ज़ (इस्लाम)

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फ़र्ज (English: Fard , फारसी: واجب वाजिब)

धार्मिक कर्तव्य या अनिवार्य कार्रवाई। इस्लाम में वो बात जिसको करना या मानना लाज़िम (अनिवार्य) है उसे फ़र्ज़ कहते हैं।

इस्लामी शरियत में फ़र्ज़ वो आदेश है जो क़ुरआन और हदीस से साबित हो और जिस में शंका की गुंजाइश न हो उसको मानना लाज़िम है। जैसे नमाज़, रोज़ा और ज़कात।

इस्लामी फ़िक़ा में दो प्रकार के फ़र्ज़ होते हैं:[संपादित करें]

फ़र्ज़ ए ऐन (فرض عين)[संपादित करें]

वो फ़र्ज़ जो प्रत्येक मुसलमान को स्वयं करना है जैसे की नमाज़, रोज़ा, ज़कात यह दूसरा नहीं कर सकता।

फ़र्ज़ ए किफ़ाया (فرض كفاية)[संपादित करें]

मुस्लिम समुदाय पर पूरी तरह से एक दायित्व, जिसमें से कुछ मुक्त होते हैं । जैसे जनाज़ा की नमाज़, कुछ पढ़ लें सब को अनिवार्य नहीं। युद्ध में जाना सभी का अनिवार्य नहीं।