फरफुरल
फरफुरल | |
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आईयूपीएसी नाम | Furan-2-carbaldehyde |
अन्य नाम | फरफुरल, फुरान-2-कार्बोक्सेल्डिहाइड, फुराल, फरफुरैल्डिहाइड, 2-फुरैल्डिहाइड, पाइरोम्यूसिक एल्डिहाइड |
पहचान आइडेन्टिफायर्स | |
सी.ए.एस संख्या | [98-01-1][CAS] |
पबकैम | |
केईजीजी | C14279 |
SMILES | |
InChI | |
कैमस्पाइडर आई.डी | |
गुण | |
रासायनिक सूत्र | C5H4O2 |
मोलर द्रव्यमान | 96.08 g mol−1 |
दिखावट | रंगहीन तेल |
घनत्व | 1.16 g/mL (20 °C)[1] |
गलनांक |
-37 °C, 236 K, -35 °F ([1]) |
क्वथनांक |
162 °C, 435 K, 324 °F ([1]) |
जल में घुलनशीलता | 83 g/L[1] |
खतरा | |
स्फुरांक (फ्लैश पॉइन्ट) | 62 °से. (144 °फ़ै) |
एलडी५० | 300–500 mg/kg (मौखिक, चूहो में)[2] |
Related compounds | |
संबंधित फुरन-2-कार्बोक्सेल्डिहाइड | हाइड्रोक्सीमीथाइलफरफुराल |
जहां दिया है वहां के अलावा, ये आंकड़े पदार्थ की मानक स्थिति (२५ °से, १०० कि.पा के अनुसार हैं। ज्ञानसन्दूक के संदर्भ |
फरफुरल, एक कार्बनिक यौगिक है जिसे विभिन्न प्रकार के कृषि उपोत्पादों जैसे कि मकई के बालों, जई, गेहूं के चोकर और लकड़ी के बुरादे आदि से प्राप्त किया जाता है। फरफुरल शब्द लतीनी शब्द फरफुर [furfur] Error: {{Lang}}: text has italic markup (help), से आता है जिसका अर्थ भुसी या चोकर होता है।
फरफुरल एक ऐरोमैटिक एल्डिहाइड है, जिसके छल्ले की संरचना दाएं हाथ पर दी गयी है। इसका रासायनिक सूत्र, OC4H3CHO है। यह एक रंगहीन तैलीय द्रव पर हवा के संपर्क में आने पर शीघ्रता से पीले रंग का हो जाता है, इसकी गंध बादाम के समान है।
इतिहास
[संपादित करें]फरफुरल का प्रथम पृथ्क्कीकरण 1832 में जर्मन रसायनज्ञ जोहान वोल्फगैंग डोबेराइनर ने किया था, जिन्होने इसका एक छोटा सा नमूना फ़ोर्मिक अम्ल के संश्लेषण के दौरान एक उपोत्पाद के रूप में प्राप्त किया था। उस समय, फ़ोर्मिक अम्ल मृत चींटियों की आसवन प्रक्रिया द्वारा प्राप्त किया जाता था और बहुत संभव है कि, डोबेराइनर द्वारा संश्लेषित नमूनों में चींटियों के शरीर में कुछ पादप अंश रह गये हों। 1840 में, स्कॉटलैंड के रसायनज्ञ जॉन स्टेनहाउस ने पाया कि इस रसायन को विभिन्न कृषि उत्पादों जैसे कि मक्का, जई, चोकर और लकड़ी के बुरादे आदि का तनु सल्फ्यूरिक अम्ल के साथ हुई आसवन प्रक्रिया द्वारा भी प्राप्त किया जा सकता है और इसके लिए आनुभविक सूत्र (C5H4O2) निर्धारित किया। 1901 में, जर्मन रसायनज्ञ कार्ल हैरीस ने फरफुरल की संरचना का पता लगाया।
सिर्फ इत्र उद्योग में कुछ छुटपुट उपयोग को छोड़कर, फरफुरल 1922 तक एक अपेक्षाकृत अज्ञात रसायन बना रहा। 1922 में क्वेकर ओट्स कंपनी ने जई के छिलकों से बड़े पैमाने पर इसका उत्पादन शुरू किया। आज भी फरफुरल का उत्पादन कृषि उपोत्पादों जैसे कि गन्ने की खोई, मकई के बाल व छिलकों आदि से ही किया जाता है।
गुण
[संपादित करें]फरफुरल के भौतिक गुण साथ वाली तालिका में दिये गये हैं। फरफुरल अधिकतर ध्रुवीय कार्बनिक विलायकों में तुरंत घुल जाता है, लेकिन जल और एल्केनों में इसकी घुलनशीलता आंशिक ही होती है।
रासायनिक, रूप से फरफुरल की सभी रासायनिक क्रियायें अन्य एल्डिहाइड और अन्य ऐरोमैटिक यौगिकों के समान होती हैं। जब इसे 250° सी से ऊपर के तापमान पर गर्म किया जाता है तो यह फुरान और कार्बन मोनोऑक्साइड में विखंडित होता है, कभी कभी विस्फोट के साथ भी। जब इसे अम्ल की उपस्थिति में गर्म किया जाता है तो यह अपरिवर्तनीय ठोस थर्मोसेटिंग राल में बदल जाता है।