नुवाकोट, बागमती प्रांत

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नुवाकोट, बागमती प्रांत
नुवाकोट
शहर
नुवाकोट महल
नुवाकोट, बागमती प्रांत is located in पृथ्वी
नुवाकोट, बागमती प्रांत
नुवाकोट, बागमती प्रांत
निर्देशांक: 27°54′49″N 85°09′53″E / 27.91361°N 85.16472°E / 27.91361; 85.16472निर्देशांक: 27°54′49″N 85°09′53″E / 27.91361°N 85.16472°E / 27.91361; 85.16472
देश नेपाल
प्रांतबागमती प्रांत
जिलानुवाकोट जिला
ऊँचाई1022 मी (3,353 फीट)
समय मण्डलनेपाल मानक समय (यूटीसी+5:45)

नुवाकोट नेपाल में बागमती प्रांत के नुवाकोट जिले में बिदुर नगर पालिका में स्थित एक शहर है। यह शहर त्रिशूली और तांडी नदियों के तट पर स्थित है। यह काठमांडू से 75 कि॰मी॰ पश्चिम में स्थित है। इसे नेपाल के ऐतिहासिक शहरों में से एक के रूप में जाना जाता है, जो पृथ्वी नारायण शाह द्वारा नेपाल के एकीकरण से पहले काठमांडू उपत्यका की राजधानी थी। यह काठमांडू उपत्यका के पश्चिमी प्रवेश द्वार की रखवाली भी करता है। नुवाकोट घाटी के मल्ल राजाओं के लिए यह एक महत्वपूर्ण व्यापारिक केंद्र के रूप में कार्य करता था और भारत-तिब्बत के बीच व्यापार के लिए उपयोग किए जाने वाला एक प्रमुख पारगमन मार्ग था। इस घाटी में नुवाकोट महल के अतिरिक्त अन्य और आठ महल भी है इसी कारण इसे नुवाकोट अर्थात नौ किला कहा जाता है।

इसके भौगोलिक महत्व के कारण ही यहाँ बने किले को गोरखा साम्राज्य सहित कई पड़ोसी राज्यों द्वारा जीतने का प्रयास किया गया था। आधुनिक नेपाल के संस्थापक पृथ्वी नारायण शाह ने 26 सितंबर, 1744 को एक आश्चर्यजनक हमला करके पहाड़ी किले पर कब्जा कर लिया, जिसके बाद मल्ल राजा जय प्रकाश मल्ल ने अगले वर्ष नुवाकोट पर जीत हासिल करने का एक अंतिम प्रयास किया, तब कासी राम थापा के नेतृत्व में मल्ल सेना ने नालदुम में गोरखा सेना को हराया था। हालांकि, गोरखा सेना हमले को विफल करने में सफल रही और नुवाकोट को गोरखा नियंत्रण में एक स्थायी किले के रूप में सुरक्षित कर लिया गया। बाद में निर्धारित किया गया कि नुवाकोट काठमांडू उपत्यका (काठमांडू, पाटन, भडगांव) में सभी तीन मल्ल साम्राज्यों की अंतिम विजय के लिए एक प्रमुख मंच के रूप में काम करेगा, यह अंतिम विजय का प्रयास 1768 और 1769 में पृथ्वी नारायण शाह के विरुद्ध रहा था।[1][2][3]

नुवाकोट नेपाल के इतिहास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। 1792 में नेपाल-चीन संघर्ष के दौरान जनरल फू-कांग-एन के तहत चीनी सेना ने नुवाकोट पर कब्जा कर लिया था। चीन के साथ युद्ध समाप्त होने के तुरंत बाद यह 1793 में ब्रिटिश दूत कैप्टन विलियम जे॰ किर्कपैट्रिक और कार्यवाहक रीजेंट बहादुर शाह के बीच पहली मुलाकात का स्थान भी बना था।[4]

18वी शताब्दी में वर्तमान सात मंजिला नुवाकोट दरबार और आसपास के परिसर का विस्तार पृथ्वी नारायण शाह द्वारा काठमांडू को भारत और तिब्बत से जोड़ने वाले बढ़ते व्यापार मार्गों का समर्थन करने के लिए किया गया था। मल्ल शैली में निर्मित परिसर की वास्तुकला मुख्य महल, भैरव मंदिर, साथ ही अन्य मंदिरों में देखी जा सकती है। 2008 में इसको युनेस्को में विश्व धरोहर स्थल के रूप में विचार के लिए प्रस्तुत किया गया था। 2015 के नेपाल भूकंप के कारण यहाँ के कुछ मंदिर परिसर और इमारतें क्षतिग्रस्त हो गईं है।[5]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. Stiller, Ludwig F. (1973). The Rise of the House of Gorkha. New Delhi: Manjusri Publishing House. पपृ॰ 106–111.
  2. Stiller, Ludwig F. (1973). The Rise of the House of Gorkha. New Delhi: Manjusri Publishing House. पपृ॰ 110–111.
  3. Sanwal, B.D. (1993). Social and Political History of Nepal. New Delhi: Manohar. पृ॰ 120. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 81-7304-021-4.
  4. Kirkpatrick, William J. (1811). An Account of the Kingdom of Nepaul: Being The Substance Of Observations Made During A Mission To That Country, In The Year 1793. London: W Bulmer and Co. पपृ॰ 114–118.
  5. Nuwakot Palace Complex - UNESCO World Heritage Centre