नाभिकीय संलयन

जब दो हल्के नाभिक परस्पर संयुक्त होकर एक भारी तत्व के नाभिक की रचना करते हैं तो इस प्रक्रिया को नाभिकीय संलयन कहते हैं। नाभिकीय संलयन के फलस्वरूप जिस नाभिक का निर्माण होता है उसका द्रव्यमान संलयन में भाग लेने वाले दोनों नाभिकों के सम्मिलित द्रव्यमान से कम होता है। द्रव्यमान में यह कमी ऊर्जा में रूपान्तरित हो जाती है। जिसे अल्बर्ट आइंस्टीन के समीकरण E = mc2 से ज्ञात करते हैं। तारों के अन्दर यह क्रिया निरन्तर जारी है। सबसे सरल संयोजन की प्रक्रिया है चार हाइड्रोजन परमाणुओं के संयोजन द्वारा एक हिलियम परमाणु का निर्माण।
41H1 → 2He4 + 2 पोजिट्रान + ऊर्जा[2]
1H2 + 1H2 → 2He4 + 23.6 MeV
1H3 + 1H2 → 2He4 + 0n1 + 17.6 MeV[3]
1H1 +1H1 +1H1 +1H1 = 2He4 + 21β0 + 2V + 26.7 MeV[4]
इसी नाभिकीय संलयन के सिद्धान्त पर हाइड्रोजन बम का निर्माण किया जाता है।
नाभिकीय संलयन उच्च ताप (१०७ से १०८० सेंटीग्रेड) एवं उच्च दाब पर सम्पन्न होता है
जिसकी प्राप्ति केवल नाभिकीय विखण्डन से ही संभव है। सूर्य से निरन्तर प्राप्त होने वाली ऊर्जा का स्रोत वास्तव में सूर्य के अन्दर हो रही नाभिकीय संलयन प्रक्रिया का ही परिमाण है। सर्वप्रथम मार्क ओलिफेंट निरन्तर परिश्रम करके तारों में होने वाली इस प्रक्रिया को १९३२ में पृथ्वी पर दोहराने में सफल हुए, परन्तु आज तक कोई भी वैज्ञानिक इसको नियंत्रित नहीं कर सका है। इसको यदि नियंत्रित किया जा सके तो यह ऊर्जा प्राप्ति का एक अति महत्त्वपूर्ण तरीका होगा। पूरे विश्व में नाभिकीय संलयन की क्रिया को नियंत्रित रूप से सम्पन्न करने की दिशा में शोध कार्य हो रहा है।
सन्दर्भ
- ↑ J. Kenneth Shultis, Richard E. Faw (2002). Fundamentals of nuclear science and engineering. CRC Press. p. 151. ISBN 0824708342. 29 मई 2013 को मूल से पुरालेखित. अभिगमन तिथि: 5 दिसंबर 2009.
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(help) - ↑ गुप्त, तारकनाथ (नवंबर २००४). भौतिकी एवं रसायन शास्त्र. कोलकाता: भारती पुस्तक मन्दिर,. p. २२४.
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(help)CS1 maint: extra punctuation (link) CS1 maint: year (link) - ↑ सिंह, उमाशंकर (नवंबर २००५). आधुनिक भौतिकी विज्ञान. कोलकाता: आधुनिक ग्रन्थागार,. p. २३३.
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(help)CS1 maint: extra punctuation (link) CS1 maint: year (link) - ↑ प्रसाद, चन्द्रमोहन (जुलाई २००४). भौतिक एवं रसायन विज्ञान. कोलकाता: भारती सदन. p. २०७. अभिगमन तिथि: ७ दिसंबर २००९.
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