धर्म के लक्षण
इस लेख में सन्दर्भ या स्रोत नहीं दिया गया है। कृपया विश्वसनीय सन्दर्भ या स्रोत जोड़कर इस लेख में सुधार करें। स्रोतहीन सामग्री ज्ञानकोश के लिए उपयुक्त नहीं है। इसे हटाया जा सकता है। (मार्च 2015) स्रोत खोजें: "धर्म के लक्षण" – समाचार · अखबार पुरालेख · किताबें · विद्वान · जेस्टोर (JSTOR) |
भारतीय मनीषियों ने धर्म पर अत्यन्त विशद चिन्तन किया है और धर्म के लक्षण बताए हैं।
वाल्मीकि रामायण
[संपादित करें]क्षमा दानं क्षमा सत्यं क्षमा यज्ञश्च पुत्रिकाः। क्षमा यशः क्षमा धर्मः क्षमयाविष्टितं जगत्॥ अर्थ: क्षमा दान है, क्षमा सत्य है, क्षमा यज्ञ है। क्षमा यश है, क्षमा ही धर्म है, वास्तव में यह जगत् पूर्णतः क्षमा से ही घिरा हुआ है।।
मनुस्मृति
[संपादित करें]मनु ने धर्म के दस लक्षण गिनाए हैं:
- धृति: क्षमा दमोऽस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रह:।
- धीर्विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम्।। (मनुस्मृति ६.९२)
अर्थ – धृति (धैर्य ), क्षमा (अपना अपकार करने वाले का भी उपकार करना ), दम (हमेशा संयम से धर्म में लगे रहना ), अस्तेय (चोरी न करना ), शौच ( भीतर और बाहर की पवित्रता ), इन्द्रिय निग्रह (इन्द्रियों को हमेशा धर्माचरण में लगाना ), धी ( सत्कर्मों से बुद्धि को बढ़ाना ), विद्या (यथार्थ ज्ञान लेना ). सत्यम ( हमेशा सत्य का आचरण करना ) और अक्रोध ( क्रोध को छोड़कर हमेशा शांत रहना )। यही धर्म के दस लक्षण है।
याज्ञवल्क्य
[संपादित करें]याज्ञवल्क्य ने धर्म के नौ (9) लक्षण गिनाए हैं:
- अहिंसा सत्यमस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रह:।
- दानं दमो दया शान्ति: सर्वेषां धर्मसाधनम्।। (याज्ञवल्क्य स्मृति १.१२२)
(अहिंसा, सत्य, चोरी न करना (अस्तेय), शौच (स्वच्छता), इन्द्रिय-निग्रह (इन्द्रियों को वश में रखना), दान, संयम (दम), दया एवं शान्ति)
श्रीमद्भागवत
[संपादित करें]श्रीमद्भागवत के सप्तम स्कन्ध में सनातन धर्म के तीस लक्षण बतलाये हैं और वे बड़े ही महत्त्व के हैं :
- सत्यं दया तप: शौचं तितिक्षेक्षा शमो दम:।
- अहिंसा ब्रह्मचर्यं च त्याग: स्वाध्याय आर्जवम्।।
- संतोष: समदृक् सेवा ग्राम्येहोपरम: शनै:।
- नृणां विपर्ययेहेक्षा मौनमात्मविमर्शनम्।।
- अन्नाद्यादे संविभागो भूतेभ्यश्च यथार्हत:।
- तेषात्मदेवताबुद्धि: सुतरां नृषु पाण्डव।।
- श्रवणं कीर्तनं चास्य स्मरणं महतां गते:।
- सेवेज्यावनतिर्दास्यं सख्यमात्मसमर्पणम्।।
- नृणामयं परो धर्म: सर्वेषां समुदाहृत:।
- त्रिशल्लक्षणवान् राजन् सर्वात्मा येन तुष्यति।। (७-११-८ से १२ )
महात्मा विदुर
[संपादित करें]महाभारत के महान यशस्वी पात्र विदुर ने धर्म के आठ अंग बताए हैं -
- इज्या (यज्ञ-याग, पूजा आदि), अध्ययन, दान, तप, सत्य, दया, क्षमा और अलोभ।
उनका कहना है कि इनमें से प्रथम चार इज्या आदि अंगों का आचरण मात्र दिखावे के लिए भी हो सकता है, किन्तु अन्तिम चार सत्य आदि अंगों का आचरण करने वाला महान बन जाता है।
महाकवि तुलसीदास जी द्वारा वर्णित धर्मरथ
[संपादित करें]- सुनहु सखा, कह कृपानिधाना, जेहिं जय होई सो स्यन्दन आना।
- सौरज धीरज तेहि रथ चाका, सत्य सील दृढ़ ध्वजा पताका।
- बल बिबेक दम पर-हित घोरे, छमा कृपा समता रजु जोरे।
- ईस भजनु सारथी सुजाना, बिरति चर्म संतोष कृपाना।
- दान परसु बुधि सक्ति प्रचण्डा, बर बिग्यान कठिन कोदंडा।
- अमल अचल मन त्रोन सामना, सम जम नियम सिलीमुख नाना।
- कवच अभेद बिप्र-गुरुपूजा, एहि सम बिजय उपाय न दूजा।
- सखा धर्ममय अस रथ जाकें, जीतन कहँ न कतहूँ रिपु ताकें।
- महा अजय संसार रिपु, जीति सकइ सो बीर।
- जाकें अस रथ होई दृढ़, सुनहु सखा मति-धीर।। (लंकाकांड)
पद्मपुराण
[संपादित करें]- ब्रह्मचर्येण सत्येन तपसा च प्रवर्तते।
- दानेन नियमेनापि क्षमा शौचेन वल्लभ।।
- अहिंसया सुशांत्या च अस्तेयेनापि वर्तते।
- एतैर्दशभिरगैस्तु धर्ममेव सुसूचयेत।।
(अर्थात ब्रह्मचर्य, सत्य, तप, दान, संयम, क्षमा, शौच, अहिंसा, शांति और अस्तेय इन दस अंगों से युक्त होने पर ही धर्म की वृद्धि होती है।)
धर्मसर्वस्वम्
[संपादित करें]जिस नैतिक नियम को आजकल 'गोल्डेन रूल' या 'एथिक ऑफ रेसिप्रोसिटी' कहते हैं उसे भारत में प्राचीन काल से मान्यता है। सनातन धर्म में इसे 'धर्मसर्वस्वम्" (=धर्म का सब कुछ) कहा गया है:
- श्रूयतां धर्मसर्वस्वं श्रुत्वा चाप्यवधार्यताम्।
- आत्मनः प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत्।। (पद्मपुराण, शृष्टि 19/357-358)
(अर्थ: धर्म का सर्वस्व क्या है, सुनो ! और सुनकर इसका अनुगमन करो। जो आचरण स्वयं के प्रतिकूल हो, वैसा आचरण दूसरों के साथ नहीं करना चाहिये।)
दशलक्षण धर्म
[संपादित करें]जैन धर्म के दिगम्बर अनुयायियों द्वारा आदर्श अवस्था में अपनाये जाने वाले गुणों को दशलक्षण धर्म कहा जाता है। इसके अनुसार जीवन में सुख-शांति के लिए क्षमा, मार्दव, आर्जव, सत्य, शौच, संयम, तप, त्याग, अकिंचन और ब्रह्मचर्य - इन धर्मों का पालन हर मनुष्य को करना चाहिए।
इन्हें भी देखें
[संपादित करें]बाहरी कड़ियाँ
[संपादित करें]- सनातन मानव-धर्म
- पूर्णता देता है धर्म Archived 2010-10-24 at the वेबैक मशीन (दैनिक जागरण)