चिरजा

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चिरजा (अथवा चरजा, चरज) राजस्थानी और गुजराती साहित्य में दिव्य शक्ति के नारी रूप का एक भक्ति गीत है। चिरजा राजस्थानी साहित्य में शक्ति-काव्य (शाक्तिक कविता) में एक नया काव्य रूप है। चिरजा मुख्य रूप से महिलाओं द्वारा विशेष रूप से देवी के जागरण के दौरान गाया जाता है। चिरजा शब्द संस्कृत के चर्या शब्द से बना है। [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9]

व्युत्पत्ति[संपादित करें]

चिरजा शब्द संस्कृत के चर्या शब्द से बना है।[1] संस्कृत शब्द 'चर्या' का अर्थ है तपस्वियों व ऋषियों द्वारा ध्यान, तपस्या आदि जैसे धार्मिक संस्कारों और प्रथाओं का प्रदर्शन। प्राकृत शब्दावली में 'चारिया' शब्द के तहत 'आचरण' और 'धार्मिक अनुष्ठान' का कुछ अर्थों के रूप में उल्लेख किया गया है। राजस्थानी शब्दावली के अनुसार 'चर्या' संगीत की विधाओं में गाई जाने वाली देवी की प्रार्थना के लिए है। महायान बौद्ध धर्म में, 'चर्या' अंतिम लक्ष्य, निर्वाण को प्राप्त करने में मदद करने के लिए मनाए गए अभ्यासों की पूरी श्रृंखला को इंगित करता है। हालांकि, 'वज्रयान' शाखा में 'चर्या' 'तांत्रिक' प्रदर्शन को दर्शाता है जब कुछ "पद' गाए जाते थे जिन्हें 'चर्या पद' या 'चर्यागति' के नाम से जाना जाता था।[10]

प्रकार[संपादित करें]

चिरजा दो प्रकार के होते हैं:

  1. सिगाऊ चिरजा और
  2. चाडाऊ चिरजा।

सिगाऊ चिरजा भक्तिपूर्ण हैं और इसमें केवल देवी की स्तुति करते हैं, जबकि चडाऊ चिरजा को रोग और कठिनाइयाँ से निवारण के लिए मुसीबत के समय गाया जाता है, जब भक्तों को देवी से दिव्य सहायता की आवश्यकता होती है। [11] [12]

मुख्य रूप से चारण, राजपूत और रावलों द्वारा बड़ी संख्या में चिरजाओं की रचना की गई है। राजस्थान के रावल अपने धार्मिक प्रदर्शनों में चिरजा का उपयोग करने के लिए जाने जाते हैं। [13] चिरजा लोकप्रिय रूप से आवड़ माता (स्वांगिया माता) और करणी माता जैसी हिंदू देवी-देवताओं के लिए गाए जाते हैं।[14]

अग्रिम पठन[संपादित करें]

  1. Rajasthani Shakti Kavya By Bhaṃvara Siṃha Sāmaura · 1999
  2. Cāraṇa-carjāem ̐aura unakā adhyayana lekhaka Gulābadāna; prastāvanā, Śambhusiṃha Manohara By Gulābadāna · 1976
  3. Chirja-Sahitya Me Charan Deviyan by Simantini Palawat 2015

संदर्भ[संपादित करें]

  1. Sāmaura, Bhaṃvara Siṃha (1999). Rājasthānī śaktti kāvya. Sāhitya Akādemī. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-260-0625-0. शक्ति काव्य अनेक रूपों के माध्यम से अभिव्यक्त हुआ है। चिरजा नामक नया काव्य रूप शक्ति काव्य की राजस्थानी साहित्य को विशेष देन है । चिरजा शब्द संस्कृत के चर्या शब्द से बना है।
  2. SINGH, AMIT (2018-08-19). RAJASTHAN POLICE CONSTABLE BHARTI PARIKSHA-2019-Competitive Exam Book 2021. Prabhat Prakashan. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-93-5322-612-1. चिरजा- देवी की पूजा अराधना के पद, गीत या मंत्र विशेषकर रात के जागरणों के समय महिलाओं द्वारा गाए जाते हैं इन्हें चिरजा कहा जाता है।
  3. Rājasthāna kī Rammateṃ. Rājasthāna Saṅgīta Nāṭaka Akādamī. 2002. राजस्थानी शक्ति काव्य परम्परा को जानने वाले यह बात भलीभांति जानते हैं कि चाडाऊ चिरजा गाने का अर्थ क्या होता है। चिरजा शब्द का शाब्दिक अर्थ होता है 'चर्या' इसलिए देवी की चिरजा का अर्थ होता है देवी द्वारा अपने भक्तों
  4. Bhanawat, Mahendra (1979). Overview of the folk theatre of Rajasthan. Sangeet Natak Akademi, New Delhi. devotional songs (Charjayen)
  5. Cāraṇa, Narendrasiṃha (2009). Śrīkaraṇīmātā kā itihāsa. Cirāga Prakāśana. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-907329-9-4.
  6. Cāraṇa, Sohanadāna (1980). Rājasthānī loka-sāhitya kā saiddhāntika vivecana. Rājasthāna Sāhitya Mandira.
  7. "उमा के तप से प्रसन्न होकर शिव करते हैं आनंद तांडव | Shiva is pleased with the tapes of Uma, Anand Thandav". Patrika News. 2018-10-16. अभिगमन तिथि 2022-03-01. संस्कृति विभाग और आदिवासी लोक कला एवं बोली विकास अकादमी के संयोजन से मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय में शक्तिकी महिमा पर केन्द्रित तीन दिवसीय सांस्कृतिक समारोह सिद्धा में चिरजा गायन और कथक शैली में साध्वी देवी के स्वरुप पर आधारित नृत्याभिनय की प्रस्तुतियां संग्रहालय के मुक्ताकाश मंच पर हुईं।
  8. "शोभायात्रा में उमड़ी श्रद्धा, बड़ी संख्या में पहुंचे श्रद्धालु | Navratri 2018". Patrika News. 2018-10-17. अभिगमन तिथि 2022-03-01. शोभा यात्रा में बैंड बाजा की धुन पर श्रद्धालुजन करणी माता के भजन, चिरजा गाते चल रहे थे। रास्ते में जगह-जगह श्रद्धालु मकानों की छत पर बैठे शोभा यात्रा का इंतजार कर रहे थे। रास्ते में जगह-जगह शोभा यात्रा पर इत्र पुष्प बरसा कर स्वागत किया गया। शोभायात्रा में महिलाएं व श्रद्धालु जन करणी माता की चिरजा गाते हुए चल रहे थे।
  9. Kaviyā, Alūnātha (2000). Siddha Alūnātha Kaviyā. Sāhitya Akādemī. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-260-1015-8.
  10. Datta, Amaresh (1987). Encyclopaedia of Indian Literature: A-Devo (अंग्रेज़ी में). Sahitya Akademi. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-260-1803-1.
  11. Bhāṭī, Pushpā (1991). Rājasthāna ke loka devatā evaṃ loka sāhitya. Kavitā Prakāśana. सिगाऊ चरजा में देवी का चरित्र एवं प्रशंसा रहती है परन्तु घाडाऊ चरजा जब भक्त पर विपती पड़ती है तभी पढ़ी जाती हैं ।
  12. Rājasthāna ke loka devatā. Śekhāvāṭī Śodha Pratishṭhāna. 1999. चारण देवियों की मान्यता है कि वे 'नो लख लोवड़ियाल (अर्थात् नौ लाख तार की ऊनी साड़ी) पहनती थी । इन देवियों से स्तुति पाठ चरजा कहलाती है। ये दो प्रकार की होती हैं सिंघाऊ और घाड़ाऊ । सिंघाऊ जो शांति के समय देवी की प्रशंसा से पढ़ी
  13. Samar, Devilal (1967). Rājasthāna ke Rāvala. Bhāratīya Loka-Kalā Maṇḍala.
  14. Maru-Bhāratī. Biṛlā Ejyūkeśana Ṭrasṭa. 2002. ने भक्ति स्तवन साहित्य की रचनायें (स्तुतियों) एवं डिंगल गीत आदि खूब लिखे हैं। भगवती श्री इन्द्रकंवर बाई (खुड़द निवासी) द्वारा गाई गई चरजा में भक्ति के चमत्कार भरे कृत्यों का उल्लेख द्रष्टव्य है "करनल किनियांणी....... ||