ग्रेट हॉर्नबिल पक्षी

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श्रेष्ठ हॉर्नबिल पक्षी (बूसेरोस बिकोर्निस), जिसे अवतल-कैस्क्यूड हॉर्नबिल,‌‌ श्रेष्ठ भारतीय के रूप में भी जाना जाता है, ये मूलतः भारतीय उपमहाद्वीप और दक्षिण पूर्व एशिया में पाये जाते है। ये मुख्य रूप से फल और वृक्षों के छाल भोजन के रूप में ग्रहण करते है। लेकिन छोटे स्तनधारी, सरीसृपों और पक्षियों का भी शिकार करते है। इन्हें 2018 में आई॰यू॰सी॰एन॰ के लालसूची में संकटग्रस्त कमजोर वर्ग की श्रेणी में सूचीबद्ध किया गया है। अपने बड़े आकार और रंग के कारण ये पक्षीयाँ कई आदिवासी संस्कृतियों और रीति-रिवाजों में महत्वपूर्ण माने जाते है। केरल सरकार ने इसे आधिकारिक रूप से केरल का राज्य पक्षी घोषित किया।

विवरण और विशेषताएँ[संपादित करें]

आवरण के नीचे और कक्षीय त्वचा के रंग भिन्न-भिन्न होते हैं
जीव विज्ञानिक चित्रकार टी॰ डब्ल्यू॰ वुड द्वारा चित्रण पलकें, घिसी हुई चोंच का किनारा और उभरी हुई भुजाओं वाला अवतल आवरण दिखा रहा है

श्रेष्ठ हॉर्नबिल 95–130 सेमी (37–51 इंच) लंबा, 152 सेमी (60 इंच) पंखों वाला और 2 से 4 किलोग्राम (4.4 से 8.8 पाउंड) वजन का एक बड़ा पक्षी है। वजन के आधार पर माना जाता है कि नर हाॅर्नबिल का औसत वजन 3 किग्रा (6.6 पौंड) है जबकि मादा हाॅर्नबिल का वजन 2.59 किग्रा (5.7 पौंड) है। मादा हाॅर्नबिल नर हाॅर्नबिल की तुलना में छोटी होती हैं और इनके आंख नीले-सफेद रंग की होती हैं, हालांकि कक्षीय त्वचा गुलाबी रंग की होती है। हॉर्नबिल की सबसे प्रमुख विशेषता इसकी विशाल चोंच के शीर्ष पर चमकीला पीला और काला आवरण है। सामने से देखने पर कास्क यू-आकार का दिखाई देता है, और शीर्ष अवतल होता है, जिसके किनारों पर दो लकीरें होती हैं।

आवाश[संपादित करें]

श्रेष्ठ हाॅर्नबिल पक्षी भारत, नेपाल, भूटान, दक्षिण पूर्व एशिया और सुमात्रा के जंगलों में पाये जाते है। इसका आवाश पश्चिमी घाट और हिमालय की तलहटी क्षेत्रों में है। वनों की कटाई के कारण भारत के कई हिस्सों में इसकी प्रजातियाँ लुप्त होने लगी है। उदाहरण स्वरुप देखा जाए तो 1860 के दशक में कोल्ली पहाड़ियों में इसकी संख्या सौ के करीब दर्ज किया गया। और कंबोडिया जैसे कई क्षेत्रों में जनसंख्या में गिरावट दर्ज की गई है।[1] यह वर्षा वनों के बड़े हिस्सों पर निर्भर रहते है। कंबोडिया के आदिवासी इलाकों में हाॅर्नबिल पक्षीयों शिकार मांस, वसा और शरीर के अंगों जैसे आवरण और पूंछ के पंखों के लिए किया जाता है, जिनका उपयोग जनजाति लोग अपने शृंगार समाग्री के रूप में करते है।[2]जनजातीय लोगों द्वारा भारतीय हॉर्नबिल के चोंच और सिर का उपयोग ताबीज में किया जाता है और मांस को औषधीय माना जाता है। [3]

संदर्भ[संपादित करें]

  1. हटन, जे॰एच॰ (1921). सेमा नागा. लंदन: मैकमिलन कंपनी. पृ॰ 92.
  2. सेथा, टी॰ (2004). "कंबोडिया में हॉर्नबिल की स्थिति और संरक्षण". अन्तर्राष्ट्रीय पक्षी संरक्षण. 14 (1): S5–S11. डीओआइ:10.1017/s0959270905000183.
  3. जे॰ हेस्टिंग्स (1910). धर्म और नैतिकता का विश्वकोश. 3. एडिनवुर्ज: टी॰ और टी॰ क्लार्क. पृ॰ 442. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-567-06512-4.