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क्यूटेनियस कंडीशन

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क्यूटेनियस कंडीशन वह चिकित्सीय दशा है जो इंटेगमेंटरी सिस्टम को प्रभावित करता हैं। इंटेगमेंटरी सिस्टम के अंतर्गत त्वचा, बाल, नाख़ून एवं इससे सम्बंधित मांसपेशी एवं ग्रंथि आते हैं।[1] इस सिस्टम का प्रमुख कार्य बाहरी वातावरण से प्रतिरक्षण करना हैं।[2]

क्यूटेनियस कंडीशन कहा पर पाया जाता है

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हमारी त्वचा का औसत वजन 4 किलोग्राम होता हैं एवं ये 2 वर्ग मीटर के क्षेत्र तक फैला हुआ रहता है। इसके तीन स्तर होते हैं, एपिडर्मिस, डर्मिस एवं सबक्यूटेनियस उत्तक।[1]

मानव त्वचा दो प्रकार की होती हैं, अरोमिल त्वचा (ग्लबरस स्किन), बिन बालों वाली त्वचा जो हमारे हथेली एवं तलवो में होती हैं एवं बालों वाली त्वचा।[3]

एपिडर्मिस

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एपिडर्मिस, तवचा का सबसे ऊपरी सतह होता हैं। यह एक स्क्वैमस उपकला है जिसमे कई स्तर होते हैं। जो निम्ननिखित हैं- स्ट्रेटम कोरनेयम्, स्ट्रेटम लुसिडम, स्ट्रेटम ग्रानुलोसम, स्ट्रेटम स्पिनोसम एवं स्ट्रेटम बेसले। इन सतहों को पोषकता डर्मिस के द्वारा विसरण से प्राप्त होती है, क्योंकि एपिडर्मिस को सीधे रक्त की आपूर्ति नहीं होती हैं।

एपिडर्मिस में 4 प्रकार की कोशिकाएं होती हैं - केरटिनोसाइट्स, मेलनोसाइट्स, लांगेरहंस सेल्स एवं मेरकेल। इनमे से केरटिनो साइट्स एक प्रमुख घटक हैं जो एपिडर्मिस का 95% होता हैं।

डर्मिस, एपिडर्मिस एवं सबक्यूटेनियस उत्तक के बीच का स्तर होता हैं। यह दो भागों का बना होता हैं पपिल्लरी डर्मिस एवं रेटिक्युलर डर्मिस। डर्मिस के भीतर रक्त वाहिकाएं 4 प्रकार का कार्य करती हैं: पोषण प्रदान करना, तापमान नियंत्रित करना, सूजन को नियंत्रित करना एवं घाव भरने में मदद करना।

सबक्यूटेनियस उत्तक

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सबक्यूटेनियस उत्तक, डर्मिस और अंतर्निहित प्रावरणी के बीच वसा की एक परत हैं। इस ऊतक के मुख्य सेलुलर घटक ऐडिपॉयटे, या वसा सेल है। यह शरीर को रोधन (बचाव) प्रदान करता हैं, आघात को अवशोसित, एवं आरक्षित ऊर्जा स्रोत के रूप में कार्य करता है।[4]

त्वचा के रोग

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त्वचा के रोगों में स्किन इन्फेक्शन एवं स्किन निओपजम होता हैं।[5]

निदान का तरीका

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त्वचा, इसके उपांगों एवं श्लेष्मा झिल्ली का बाह्य परिक्षण ही क्यूटेनियस कंडीशन के सही निदान का आधारशिला रखता हैं। चिकित्सक के द्वारा सही तरीके से की गयी जांच, पूर्व की जानकारी (बीमारी से सम्बंधित) एवं प्रयोगशाला परीक्षण रोग के निदान की पुष्टि करने में सक्षम हैं।[6] परीक्षण के उपरान्त रोग-विषयक महत्वपूर्ण तथ्य जो दिखाई पड़ते हैं, वे हैं : आकृति विज्ञान, विन्यास आकृति विज्ञान में घाव या ज़ख़्म की की प्रारम्भिक अवस्था को प्राथमिक घाव कहा जाता हैं और इस तरह के घावों की पहचान त्वचीय परीक्षा का सबसे महत्वपूर्ण पहलू है।[7] समय के साथ, यह प्राथमिक घाव विकसित या संशोधित हो जाते हैं तब इन्हे द्वितीयक घाव के रूप में जाना जाता हैं

आकृति विज्ञान

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प्राथमिक घाव

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माकूल

पैच

पपुले

प्लाक

नोडल

वेसिक्ले

बुल्ला

पसतुले

किट

इरोजन

अलसर

फ़िस्व्हील

तेलंगिएकतसिा

बुर्रौ

द्वितीयक घाव

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स्केल – क्रस्ट – लिचेनिफिकेशन –

एक्सकरिअटिओन् –

इंदुरशन –

एट्रोफी –

मकेरशन –

उम्बिलिकेशन–

विन्यास

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अग्मिनैट

अन्नयुलर

अर्सिफ़ोर्म

डीजीटेट

डिस्कॉइड

फिगरेट

वितरण घावों की स्थिति के बारे में बताता हैं . ये या तो एक ही जगह केंद्रित हैं (पैच के रूप में) या इनका विभिन्न क्षत्रों में फैलाव हैं

सममित

प्रसारक

फ़्लेक्सुराल

मोर्बिल्लीफॉर्म

पामऑप्लान्टर

सन्दर्भ

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  1. मिलर, जेफरी एच.; मार्क्स, जेम्स जी. (२००६). लुकिंगबिलल ऎण्ड मार्क्स प्रिंसिपल्स ऑफ़ डर्मेटोलॉजी. सॉन्डर्स. नामालूम प्राचल |आइयइसबीएन= की उपेक्षा की गयी (मदद)
  2. लिप्पेंस, S; होस्ट, ई; वन्दनाबीले, पी; अगोस्टिनिस, पी; डेक्लेर्कक, डब्लू (अप्रैल २००९). "सेल डेथ इन द स्किन". अपॉप्टोसिस. १४ (४): ५४९–६९.
  3. बर्न्स, टोनी; एट एल. (२००६) रूक'स टेक्स्टबुक ऑफ डर्मेटोलॉजी सीडी -रोम. विलय -ब्लैकवेल. आइयइसबीएन १ -४०५१ -३१३० -६.
  4. लिंच, पीटर जे. (१९९४). डर्मेटोलॉजी. विलियम्स ऎण्ड विल्किंस.
  5. "स्किन डीसीसेस". डॉबतुल .कॉम. मूल से 27 जून 2015 को पुरालेखित.
  6. कॉलेंन, जेफरी (२०००). कलर एटलस ऑफ डर्मेटोलॉजी. फ़िलेडैल्फ़िया: डब्लू .बी .सॉन्डर्स.
  7. जेम्स, विलियम डी., एट एल. (२००६). एंड्रूस' डीसीसेस ऑफ द स्किन: क्लीनिकल डर्मेटोलॉजी. सॉन्डर्स एल्सेविएर.सीएस1 रखरखाव: एक से अधिक नाम: authors list (link)