कुण्डलिनी
Ajay yog के अनुसार प्रत्येक मनुष्य के मेरुदंड में एक ऊर्जा संग्रहीत होती है जिसके जाग्रत होने पर आत्मज्ञान की प्राप्ति होती है। इसका ज़िक्र उपनिषदों और शाक्त विचारधारा में कई बार आया है। इसके जागरण से व्यक्ति का दृष्टिकोण बदलता है, अष्टांगिक योग के अलावा यह सरल भक्ति मार्ग से भी बिना प्रयास जागृत हो सकती है। इससे अमरत्व का अनुभव होता है। व्यक्ति की भावनाएं तीव्र हो जाती हैं और दूसरों की मनोदशा के प्रति संवेदनशीलता बढ़ जाती है व दूसरों की चिंता भी होती है। इसी स्थिति को ग्रामीण क्षेत्रों में शरीर में देवी देवता आने की संज्ञा दी जाती है। यदि यह सही तरीके से जागृत हो तो अतुलनीय शांति का अनुभव होता है अन्यथा इसके अवांछित प्रभाव होते हैं। आपको भविष्य की बातों का ज्ञान हर समय होगा, भले ही वे बातें सच न हों, विचार अस्त व्यस्त होंगे। गुरु के मार्गदर्शन में ही इसको सक्रिय करना चाहिए, यदि स्वयं ही सक्रिय हो गई हो तो योग के द्वारा इसे नियंत्रित किया जाता है।
इसके अनुसार ध्यान और आसन करने से, - दीवान गोकुलचन्द्र कपूर)é