कुण्डलिनी
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Ajay yog के अनुसार प्रत्येक मनुष्य के मेरुदंड के नीचे एक ऊर्जा संग्रहीत होती है जिसके जाग्रत होने पर आत्मज्ञान की प्राप्ति होती है।दिव्यांशु पाठक के अनुसार कुण्डलिनी महाशक्ति दिव्य ऋतम्भरा प्रज्ञा प्रदान करती है साथ ही यह योगीयों के लिए आदिशक्ति हैं। इसका ज़िक्र उपनिषदों और शाक्त विचारधारा के अन्दर कई बार आया है। दरअसल मूलाधार चक्र के सबसे नीचे एक ऊर्जा रूप शिवलिंग की आकृति होती है जिस पर एक सर्पआकृति ऊर्जा साढ़े तीन वलय लेकर लिपटी है । इसका फ़ण इस लिंग के मुण्ड पर फैला है। इस सरपाकृति ऊर्जा के फ़न को मानसिक शक्ति से सभी ऊपर के चक्रों से निकालकर सहस्रार के अतमत्व से समता है है तो ब्रह्म दर्शन होता है।यही कुंडलिनी साधना है ।
इसके अनुसार ध्यान और आसन करने से, - दीवान गोकुलचन्द्र कपूर)é
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