औद्योगिक (विकास एवं विनियमन) अधिनियम, 1951
औद्योगिक क्षेत्र में उच्चतर दर पर और खपत के आधार पर वृद्धि देश के समग्र आर्थिक विकास का एक निर्धारक है। इस संबंध में, भारत सरकार ने भारतीय उद्योग के विकास को आगे बढ़ाने और प्रोत्साहित करने और विश्व के बाजार में इसकी उत्पादकता तथा प्रतिस्पर्धात्मकता को बनाए रखने के लिए समय-समय पर औद्योगिक नीतियां जारी की हैं।
औद्योगिक (विकास एवं विनियमन) अधिनियम, १९५१
[संपादित करें]केन्द्र सरकार को अपनी औद्योगिक नीतियों को कार्यान्वित करने के लिए साधन मुहैया कराने की दृष्टि से कई विधान लागू किए गए है और बदलते हुए परिवेश के अनुरूप उनमें संशोधन किया गया है। सबसे महत्वपूर्ण है औद्योगिक (विकास एवं विनियमन) अधिनियम, 1951 (आईडीआरए) जो औद्योगिक नीति संकल्प, 1948 के अनुसरण में लागू किया गया था। यह अधिनियम केन्द्र सरकार द्वारा भारत में उद्योगों के विकास और पंजीकरण के प्रयोजनार्थ तैयार किया गया था।
अधिनियम के मुख्य उद्देश्य
[संपादित करें]अधिनियम के मुख्य उद्देश्य सरकार के निम्नलिखित शक्तियां प्रदान करना है:- (i) उद्योगों के विकास के लिए आवश्यक कदम उठाना; (ii) औद्योगिक विकास की पद्धति और दिशा को नियंत्रित करना; (iii) जनहित में औद्योगिक उपक्रमों के कार्यकलापों, निष्पादन और परिणामों को नियंत्रित करना है। यह अधिनियम इस अधिनियम की पहली अनुसूची में 'अनुसूचीबद्ध उद्योगों' पर लागू होता है। लेकिन, लघु औद्योगिक उपक्रम तथा अनुषंगी इकाइयों को अधिनियम के उपबंधों से छूट दी गई है।
यह अधिनियम उद्योग और वाणिज्य मंत्रालय द्वारा उसके औद्योगिक नीति एवं संवर्धन विभाग (डीआईपीपी) के माध्यम से प्रशासित किया जाता है। डीआईपीपी औद्योगिक क्षेत्र के विकास के लिए संवर्धनात्मक और विकासात्मक तैयारी करने और कार्यान्वित करने के लिए जिम्मेदार है। यह सामान्य रूप में औद्योगिक विकास और उत्पादन और विशेष रूप में चुनिन्दा औद्योगिक क्षेत्रों जैसे कि सीमेंट, कागज और लुगदी, चमड़ा, टायर और रबर हल्के बिजली उद्योगों, उपभोक्ता वस्तुओं, उपभोक्ता टिकाऊ वस्तुओं, हल्के मशीन यंत्रों, हल्की औद्योगिक मशीनरी, इल्के इंजीनियरों उद्योगों आदि की निगरानी करता है। यह देश में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) के अन्तर्वाह को सुसाध्य बनाने और उनमें वृद्धि करने उद्योग के विभिन्न क्षेत्रों में प्रौद्योगिकीय क्षमता अधिग्रहण को प्रोत्साहन देने के लिए भी जिम्मेदार है।
अधिनियम के विभिन्न उपबंध
[संपादित करें]अधिनियम के विभिन्न उपबंध निम्नलिखित हैं :-
- केन्द्र सरकार को उद्योगों को उद्योगों के विकास संबंधी मामलों, कोई नियम बनाने और अधिनियम को प्रशासित करने से संबंधित अन्य किसी मामले पर सलाह देने के प्रयोजन से संघ 'केन्द्रीय सलाहकार परिषद' की स्थापना करना। इसके सदस्यों में औद्योगिक उपक्रम के मालिकों के प्रतिनिधि, कर्मचारी, उपभोक्ता, मुख्य आपूर्तिकर्ता शामिल होंगे।
- किसी अनुसूचित उद्योग अथवा अनुसूचित उद्योग समूह के विकास के प्रयोजन से एक विकास परिषद की स्थापना करना। इस परिषद में मालिकों के हितों का प्रतिनिधित्व करने वाले सदस्य, कर्मचारी उपभोक्ता आदि और उद्योगों के तकनीकी अथवा अन्य पहलुओं से संबंधित मामलों का विशेष जानकारी रखने वाले व्यक्ति शामिल होंगे।
- विकास परिषद उसे केन्द्र सरकार द्वारा सौंपे गए निम्नलिखित कायों का निर्वहन करेगी:- (i) उत्पादन के लक्ष्यों की सिफारिश करना, उत्पादन कार्यक्रमों को समन्वित करना और समय-समय पर प्रगति की समीक्षा करना। (ii) बरबादी को कम करने, अधिकतम उत्पादन प्राप्त करने, गुणवत्ता में सुधार करने और लागतों को कम करने के लिए कार्यकुशलता के मानदण्डों का सुझाव देना। (iii) संस्थापित क्षमता के भरपूर उपयोग सुनिश्चित करने तथा उद्योग विशेष रूप से कम कुशल यूनिटों की कार्य प्रणाली में सुधार करने के लिए उपायों की सिफारिश करना। (iv) बेहतर विपणन के प्रबंधों को बढ़ावा देना और उद्योग की उपज के वितरण और बिक्री की ऐसी प्रणाली का पता लगाना, जो उपभोक्ताओं के लिए संतोषप्रद हो। (v) उद्योग से जुड़े अथवा जुड़ने वाले व्यक्तियों के प्रशिक्षण और उस संबंधित तकनीकी और कलात्मक विषयों उनकी शिक्षा को बढ़ावा देना आदि।
- विकास परिषद समाप्त हुए पिछले वित्तीय वर्ष के दौरान अपने कार्यों के निर्वहन के लिए उसने क्या किया इस संबंध में एक रिपोर्ट (वार्षिक रूप से) तैयार करके केन्द्र सरकार और सलाहकार परिषद को प्रेषित करेगा। रिपोर्ट में लेखों के संबंध में लेखा परिक्षकों द्वारा तैयार की गई कोई भी रिपोर्ट की प्रति सहित विकास परिषद की उस वर्ष की लेखा विवरणी शामिल होगी।
- आईडीआरए केन्द्र सरकार को सरकार द्वारा यथा निर्धारित उपयुक्त छूटों का लाइसेंस देने के जरिए उद्योगों के विकास के विनियमित करने की शक्तियां प्रदान करेगा लाइसेंस अधिनियम की अनुसूची में शामिल की गई विनिर्दिष्ट वस्तुओं के विनिर्माण के लिए औद्योगिक उपक्रम को सरकार की लिखित अनुमति होगी। इसमें औद्योगिक उपक्रम का ब्यौरा, इसका स्थल, विनिर्माण की जाने वाली वस्तुओं के आधार पर उसकी क्षमता और इस अधिनियम के तहत लागू की जाने वाली अन्य उचित शर्तें निहित होंगी।
- यदि लाइसेंस के लिए आवेदन को अनुमोदन प्राप्त हो जाता है और इसमें आगे कोई बाधा (जैसे कि विदेशी सहयोग और पूंजीगत वस्तुओं के आयात की) नहीं हो और न कोई और पूर्व शर्तें पूरी की जानी हो तो आवेदक को औद्योगिक लाइसेंस जारी कर दिया जाएगा। अन्य मामलों में एक आशय पत्र जारी किया जाएगा जो कुछ शर्तें जैसे कि विदेशी निवेश के प्रस्ताव का अनुमोदन, पूंजीगत वस्तुओं का आयात आदि को पूरी किए जाने पर लाइसेंस प्रदान करने की सरकार की मंशा को व्यक्त करती हैं।
- सरकार औद्योगिक उपक्रम को लाइसेंस प्रदान करने से पूर्व जांच का आदेश देगी। यदि सरकार का यह मत है कि किसी अनुसूचित उद्योग अथवा उपक्रम के संबंध में :- (i) उत्पादन की मात्रा में काफी कमी; अथवा (ii) उत्पाद की गुणता में जबरदस्त गिरावट अथवा उत्पाद के मूल्य में अनुचित वृद्धि हुई है अथवा होने की संभावना है यदि उसका यह मत भी है कि किसी औद्योगिक उपक्रम का प्रबंध इस तरीके से किया जा रहा है जो संबंधी अनुसूचित उद्योगों के लिए अथवा जनहित में बहुत ही हानिकारक है तो वह जांच के आदेश देगी। ऐसी जांच के परिणामस्वरूप सरकार को निम्नलिखित सभी अथवा किन्हीं प्रयोजनों के लिए औद्योगिक उपक्रम को निर्देश जारी करने की शक्तियां प्रदान की जाएगी:-
- औद्योगिक उपक्रम द्वारा उत्पाद के उत्पादन को विनियमित करना तथा उत्पादन के मानक निर्धारित करना;
- औद्योगिक उपक्रम से अपेक्षा करना कि वह उस उपक्रम से संबंधित उद्योग के विकास में तेज़ी लाने के लिए केन्द्र सरकार द्वारा आवश्यक समझे गए कदम उठाना
- औद्योगिक उपक्रम को किसी ऐसे अधिनियम अथवा प्रणाली पर आश्रित होने से रोकना जिससे इसका उत्पादन क्षमता अथवा आर्थिक मूल्य में कमी आ सकती हो;
- किसी उत्पाद के मूल्यों के नियंत्रित करना अथवा वितरण को विनियमित करना जिससे उचित मूल्यों पर इसके समान वितरण और उपलब्धता को सुनिश्चित किया जा सके।
- अधिनियम में यह प्रावधान भी है कि जब किसी औद्योगिक उपक्रम से संबंधित कोई मामला जांच के अधीन हो तो केन्द्र सरकार किसी भी समय कोई निर्देश जारी कर सकती है। जब तक केन्द्र सरकार द्वारा इन निर्देशों में कोई परिवर्तन न किया जाए अथवा इन्हें रद्द न कर दिया जाए तब ये निर्देश प्रभावी रहेंगी।
- इस अधिनियम के अंतर्गत केन्द्र सरकार को सौंपी गई नियंत्रण शक्ति किसी ऐसे औद्योगिक उपक्रम की जो उल्लिखित निर्देशों का अनुपालन करने में असमर्थ रहता है समग्र रूप में अथवा उसके किसी भाग की प्रबंध व्यवस्था को अपने अधिकार क्षेत्र में लेने के लिए बढ़ा दी जाती है। केन्द्र सरकार ऐसे उपक्रम की प्रबंध व्यवस्था भी अपने अधिकार में ले सकती है जिसका प्रबंधन ऐसे तरीके से किया जा रहा हो जो संबंधित अनुसूचित उद्योग के लिए अथवा जनहित में बहुत हानिकारक हो। इसके अलावा, केन्द्र सरकार समाप्त हो रही किसी कम्पनी के स्वामित्व में संचालित औद्योगिक उपक्रम की प्रबंध व्यवस्था को उच्च न्यायालय की अनुमति से अपने अधिकार क्षेत्र में ले सकती है, यदि उसका यह मत है कि उस उपक्रम का संचालन करना अथवा उसका प्रचालन पुन: शुरू करना उत्पादन, आपूर्ति अथवा वितरण को बनाए रखना जनहित में आवश्यक है।
उदारीकरण होने तक, नए औद्योगिक उपक्रम की स्थापना करने, वर्तमान उपक्रम द्वारा नई मद का विनिर्माण करने, उद्योग के स्थल में परिवर्तन करने, वर्तमान क्षमता में पर्याप्त रूप से विस्तार करने और अन्य सभी प्रयोजनों के लिए औद्योगिक लाइसेंस प्राप्त करने की जरूरत होती थी। लेकिन नई औद्योगिक नीति को उदार बनाया गया है और इसमें बहुत से उद्योगों को औद्योगिक लाइसेंस प्राप्त करने से छूट दी गई है। आज के परिदृश्य में केवल उद्योगों की छ: श्रेणियों को औद्योगिक (विकास एवं विनियमन) अधिनियम, 1951 (आईडीआरए) तहत औद्योगिक लाइसेंस की जरूरत है। ये उद्योग पावती हेतु औद्योगिक सहायता सचिवालय (एसआईए), औद्योगिक नीति एवं संवर्धन विभाग को औद्योगिक उद्यमी ज्ञापन (आईईएम) प्रस्तुत करते हैं।
बाहरी कड़ियाँ
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