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उदायिभद्र

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उदायिभद्र
Sculpture of Udayin
Ruler of Magadha
3rd Haryanka Maharaja
शासनावधिल. 460 – ल. 444 BCE
पूर्ववर्तीअजातशत्रु
उत्तरवर्तीAnuruddha
निधन444 BC
DynastyHaryanka
पिताअजातशत्रु
माताVajira

उदायिन ने एक शासक जिन्होंने 461 ई•पू• में अजातशत्रु की हत्या करके मगध की गद्दी पर बैठा था। उदायिन ने पाटलिपुत्र /कुसुमपुर की स्थापना की तथा अपनी राजधानी बनायी, जो गंगा और सोन नदियों के संगम पर स्थित थी । [1][2]

उदायिभद्र मगध महाजनपद के शक्तिशाली राजा अजातशत्रु का पुत्र और उत्तराधिकारी।[3] उसका उल्लेख उदायिन्, उदायी अथवा उदयिन और उदयभद्र जैसे कई नामों से मिलता है। बौद्ध अनुश्रुति के अनुसार उदायिभद्र अपने पिता अजातशत्रु की ही तरह स्वयं भी पितृघाती था और पिता को मारकर गद्दी पर बैठा था। उस अनुश्रुति का तो यहाँ तक कथन है कि आजतशत्रु से लेकर चार पीढ़ियों तक मगध साम्राज्य में उत्तराधिकारियों द्वार अपने पूर्ववर्तियों के मारे जाने की परंपरा ही चल गई थी। परंतु जैन अनुश्रुति उदयभद्र को पितृघाती नहीं मानती। कथाकोश में उसे कुणिक (अजातशत्रु) और पद्मावती का पुत्र बताया गया है। परिशिष्टपर्वन् और त्रिषष्ठिशलाकापुरुषचरित् जैसे कुछ अन्य जैन ग्रंथों में यह कहा गया है कि अपने पिता के समय में उदायिभद्र चंपा का राज्यपाल (गवर्नर) रह चुका था और अपने पिता की मृत्यु पर उसे सहज शोक हुआ था। तदुपरांत सामंतों और मंत्रियों ने उससे मगध की राजगद्दी पर बैठने का आग्रह किया और उसे स्वीकार कर वह चंपा छोड़कर मगध की राजधानी गया।

राजा की हैसियत से उदायिभद्र का सबसे मुख्य कार्य था मगध की नई राजधानी पाटलिपुत्र का विकास करना। परिशिष्टपर्वन् की सूचना है कि उसी ने सबसे पहले मगध की राजधानी राजगृह से हटाकर गंगा और सोन नदियों के संगम पर पाटलिपुत्र बसाकर वहाँ स्थापित की। इस बात का समर्थन वायुपुराण से भी होता है। उसका कथन है कि उदयभद्र ने अपने शासन के चौथे वर्ष में कुसुमपुर नामक नगर बसाया। कुसुमपुर अथवा पुष्पपुर पाटलिपुत्र के ही अन्य नाम थे। परंतु ऐसा प्रतीत होता है कि वहाँ के दुर्ग का विकासकार्य अजातशत्रु के समय में ही प्रारंभ हो चुका था।

सन्दर्भ

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  1. "संग्रहीत प्रति". Archived from the original on 4 मार्च 2016. Retrieved 13 जुलाई 2015.
  2. "संग्रहीत प्रति". Archived from the original on 9 मई 2015. Retrieved 13 जुलाई 2015.
  3. V. K. Agnihotri, ed. (2010). Indian History. Allied Publishers. p. A-168. ISBN 978-81-8424-568-4.