अक्षर कोडन

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अक्षर कूटन या संप्रतीक कूटन (character encoding) के अन्तर्गत किसी लेखन पद्धति में प्रयुक्त सभी अक्षरों एवं प्रतीकों के लिये अलग-अलग संख्याएँ निर्धारित कर दी जाती हैं। उदाहरण के लिये आस्की (ASCII) में लैटिन अक्षर A को निरूपित करने के लिये संख्या 65 निर्धारित की गयी है; B के लिये 66, C के लिये 67 आदि। इन्हीं संख्याओं को 'कूट' या 'संप्रतीक कूट' कहा जाता है। कम्प्युटर के अन्दर किसी टेक्स्ट को सहेजने या निरुपित करने के लिये इन्हीं संख्याओं का प्रयोग होता है।

मोर्स कोड, आस्की और नवीनतम यूनिकोड, 'अक्षर कूटन' के कुछ प्रकार हैं।

'अक्षर कूटन' के स्थान पर 'संप्रतीक सेट', 'संप्रतीक मैप' और 'कूट पृष्ट' आदि शब्दों का प्रयोग भी किया जाता है। कभी-कभी 'अक्षर कूटन' से सीमित अर्थ लगाया जाता है। यूनिकोड के आने के बाद पुराने अक्षर कोडिंग को 'लिगेसी कोडिंग' कहा जाने लगा है। देवनागरी के लिये कृतिदेव, सुशा, चाणक्य आदि पुराने कोडिंग प्रयोग होते थे।

इतिहास[संपादित करें]

  • १८४० : मोर्स कोड
  • १९३० : ५-बिट वाला बोडॉट कूट (Baudot code)
  • १९६३ : ७-बिट आस्की (ASCII) का जन्म
  • १९८१ : आस्की का ८-बिट में परिवर्धन
  • १९९१ : यूनिकोड का प्रस्ताव रखा गया

प्रमुख अक्षर कूट[संपादित करें]

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]