देसी कुत्ता

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देसी कुत्ता

देसी कुत्ता (अंग्रेज़ी: Desi Dog या South Asian pariah dog) भारत और पाकिस्तान में कुत्तों की सर्वाधिक सामान्य प्रजाति है। [1] यह प्रजाति भारतीय उपमहाद्वीप की देशज प्रजाति है।

देसी कुत्ता विश्राम अवस्था में।

भारतीय मीडियम साइज़ के कुत्ते आमतौर पर भूरे (Brown) रंग के होते हैं। कुछ कुत्ते सफेद रंग, दूधिया अथवा काले रंग के पाए जाते है। इनकी पूछ आमतौर पर ऊपरी और मुड़ी होती है ज्यादा आकर्षण,उत्तेजना होने पर वे पुंछ ऊंची करते तथा जोर जोर से हिलाते है।

एकदम काले रंग के देसी कुत्ते कम होते है। देशी कुतिया एक बार में तीन से चार बच्चे देती है जिनमें अलग अलग रंगों के मादा या नर बच्चे एक साथ हो सकते हैं। ये किसान के सच्चे मित्र होते है इसी वजह से भारत के गांवों में देशी कुत्ते अधिक पाए जाते हैं। आमतौर पर इनके प्रजनन करने का समय नवंबर या दिसंबर का होता है। इनका वजन 35 से 40 किलो के बीच होता है | मादा से प्रजनन के लिए या अपना इलाका संरक्षित करने के लिए नर कुत्ते ज्यादातर आपस में लड़ते है कई बार इनकी लड़ाई इतनी हींस्र होजाती है जिसमे वे बुरी तरह घायल होते है। अपना इलाका बड़ा और सक्षम बनाने के लिए नर-मादा आपस में बड़े झुंड में रहना पसंद करते है। देसी कुत्तों को भारतीय घरों में बड़े प्यार से अपने परिवार की तरह पाला जाता है वे बच्चो के लिए आकर्षण होते है। तथा लंबे समय तक अपने मालिक के साथ रहते है। घरों,गलियों में अपना जीवन व्यतीत करते है।

इतिहास[संपादित करें]

एशियाई कुत्तो का इतिहास पुराना रहा है वे कई महाद्वीप तथा देशों में फैले हुए है। भारत,पाकिस्तान,बांग्लादेश,अफगानिस्तान और दक्षिण एशिया जैसे बड़े हिस्सो पर इनकी मौजूदगी रही है। प्राचीन सभ्यता मोहन जोदारो की जगह पर पालतू कुत्ते के खोपड़ी के चित्र मिले है तथा कई अवशेष चित्र भारत के पौराणिक जगह भीमबेटका पर भी मिले है जिसका प्रसारण नेशनल ज्योग्राफिक कर चुका है। एशियाई कुत्ते आमतौर पर काफी चालाक,शिकार करने में सक्षम,आसानी से प्रशिक्षित होते है। भारत ब्रिटिश राज में भारतीय कुत्तों की काफी मांग थी इसलिए कई कुत्तों की नस्ल को दूसरे यूरोपीय देशों में बेचकर आयात किया गया था। कई समाज की नजर में कुत्तों की बढ़ती संख्या समस्या का कारण हो रही है जैसे गली में चलने वाले लोगो को कांटना,भूंकना तथा बीमारी है। लेकिन इनमें से कई कारण खुद लोगो द्वारा विविध यातनाएं देना,पत्थर मारना है जिनसे वे आक्रामक होते है। आक्रमक होने की एक और वजह यह है की ज्यादातर नस्ले अकेले ही जीवन बिताती है और कईयो को टिका न लगने की वजह से वे रेबीज जैसे बीमारियों से ग्रस्त होते है। काफी सारे देशों की कानून व्यवस्था में इन्हे प्रताड़ित करना या जान से मारना अपराध है।

  1. "Paws for Thought by Lina Choudhury-Mahajan". मूल से 2 अप्रैल 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2 अप्रैल 2019.