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मानुएल आरेन

मानुएल आरेन, सन् 1962 मे
देश भारत
जन्म 30 दिसम्बर 1935 (1935-12-30) (आयु 88)
टाउन्गू, बर्मा

मानुएल आरेन भारत के प्रसिद्ध शतरंज खिलाड़ी मे से एक है। सन् १९६० से १९८० तक उनको भारत का सबसे श्रेष्ठ शतरंज खिलाड़ी माना जाता था। इसका कारण यह था कि सन् १९५९ और १९८१ के बीच चौदह बार राष्ट्रीय शतरंज चैंपियनशिप में उन्होंने हिस्सा लिया और उन में से नौ बार चैंपियन बने। इनमें से सन् १९६९ से १९७३ तक वे लगातार जीतकर पाँच वर्ष तक चैंपियन की उपाधि को कोई और कि होने ना दी। इसमें कोई संदेह नहीं है कि इसी कारण उनको भारत का सबसे प्रसिद्ध शतरंज खिलाड़ी माना जाता है। भारत में शतरंज खेल को लोकप्रिय बनाने में इनका बहुत बड़ा हाथ है। वे भारत के पहले शतरंज खिलाड़ी है जिनको अंतरराष्ट्रीय मास्टर की उपाधि मिली है।

प्रारंभिक जीवन[संपादित करें]

मानुएल आरेन का जनम ३० दिसंबर १९३५ को टाउन्गू शहर, बर्मा देश में हुआ था। उनके माता-पिता भारतीय थे और काम से बर्मा में रहने लगे थे। उन दिनों, बर्मा ब्रिटिश शासन के तहत पर था। मगर, उनकी शिक्षा तमिलनाडु में हुईं और इलाहाबाद विश्वविद्यालय से उन्होंने बी.एस.सी पदवी प्राप्त कर ली। भारत में शतरंज की इतिहास अत्यंत पौराणिक है। महाभारत के काल से लोग शतरंज खेल रहे थे। मगर भारतीय पौराणिक शतरंज शैली और अंतरराष्ट्रीय शतरंज शैली के बीच फर्क है। भारतीय शतरंज शैली की अनुसार अंतरराष्ट्रीय खेल खेला नहीं जा सकता है। इसी कारण भारतीय खिलाड़ियों का नाम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नहीं थी। सन् १९६० तक भारतीय शैली भारत में लोकप्रिय थी मगर, धीरे-धीरे अंतरराष्ट्रीय खेल में खेलने के लिये भारतीय लोग अंतरराष्ट्रीय शैली को अपनाने लगे। भारत में अंतरराष्ट्रीय शैली की लोकप्रियता बढ़ाने में मानुएल आरेन जी का हाथ है।

जीवन यात्रा[संपादित करें]

उन्होंने तमिलनाडु के शतरंज चैंपियनशिप मैं भाग लिया और ग्यारह बार जीतकर वे चैंपियन बने है। उनको देख, युवा प्रेरित होकर शतरंज खेलने लगे हैं। आज तमिलनाडु भारत मे शतरंज के लिए जाना जाता है। उनके बाद तमिलनाडु से वि.रवि और विश्वनाथन आनंद जैसे प्रसिद्ध शतरंज खिलाड़ी भी आ गये है। मोंगोलिया की सुकिएन मोमो कि खिलाफ पश्चिम एशियाई ज़ोनल मे जीत हासिल कर लेने से उनको अंतरराष्ट्रीय मास्टर की उपाधि मिली थी। उनको तीन बार शतरंज ओलिंपियाड के लिये भारतीय प्रतिनिधि चुना गया था। भारतीय शतरंज दल की कप्तान भी बने थे। शतरंज के ग्रांडमास्टर लाजोस पोर्टिश और वोल्फगैंग उह्ल्मन के विरुद्ध स्वीडन की राजधानी स्टॅकहोम में जीत हासिल करके विश्व स्तर पर उन्होंने नाम बनाया था। सन् १९८४ के हाॅगकाॅग 'काम्मन-वेल्त' खेल के शतरंज खेल में उन्होंने चौथी स्थान पाकर भारत का नाम रोशन किया।

शतरंज की बिसात

भारतीय शतरंज संस्कृति और योगदान[संपादित करें]

सन् १९६२ में भारत सरकार ने उनको 'अर्जुन अवार्ड' से सम्मानित किया था। पहली बार एक शतरंज खिलाड़ी को 'अर्जुन अवार्ड' मिली थी। वे भारतीय शतरंज फ़ेडेरेशन के अध्यक्ष भी थे। वे आज भी भारत के शतरंज खेलों में दिखाईं देते है। उन्होंने "दुबई ओलिंपियाड १९८६" नामक लेखन को लिखी है। 'दी हिंदू' नामक समाचार पत्र के लिये वे एक पत्रकार भी है। भारत के अनेक समाचार पत्र में भी वे शतरंज के बारे में लिखते है। उन्होंने 'ताल शतरंज क्लब् की स्थापना सन् १९७२ को चेन्नई में की और वे इस क्लब् की अध्यक्ष भी है। इस क्लब् में विश्वनाथन आनंद अपने बचपन में आते थे और मानुएल आरेन के शतरंज के भाषण सुनते थे। सन् १९८३ में वे 'चेस मेट्' नामक मासिक शतरंज पत्रिका की स्थापना की और आज भी उसका संपादन करते है। इसके अलावा 'ऑल इंडिया चेस फेडेरेशन(ए.ऐ.सि.एफ) क्रानिकल' में भी बहुत बार लिखते है।

आज भी उन्मे शतरंज की ओर उत्साह है और भारतीय शतरंज में उनका नाम हमेशा अमर रहेगा।

सन्दर्भ[संपादित करें]

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  1. http://www.olimpbase.org/Elo/player/Aaron,%20Manuel.html
  2. http://pib.nic.in/feature/feyr2003/fmay2003/f130520031.html
  3. http://www.iloveindia.com/sports/chess/players/manuel-aaron.html
  4. http://articles.timesofindia.indiatimes.com/2013-11-09/chess/43854503_1_international-master-first-chess-player-competitive-chess
  5. http://www.chessgames.com/perl/chessplayer?pid=18943
  6. https://ratings.fide.com/card.phtml?event=5000092