सदस्य:Shridevi M P/प्रयोगपृष्ठ
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अंगूठाकार|vyakaran mukyaMsh]]
कविता मे बहुत दोष होते है। इन मे वाक्य दोष अर्थ दोश मुक्य है। ग्रम्य दोष जो दोष जहांँ ग्राम्या शब्दों क प्रयोहग हो और इनका प्रचलन किसि क्षेत्र मे न हो।संदिग्ध दोष मे प्रकारगादी आभा मे अर्थ के निश्छय मे सन्देस होता है। [1]
पुनरुक्ति दोश मे किसि शब्द को एक बात कही जाय पर्याय द्वरा वहही बात दूसरी कह दी जाय ।व्याहात दोष मे किसि को प्रशसा हो उसकी निन्दा की हो उसकी प्र्शंसा करना होता है। अपुष्टार्थ दोष मे जिसकी उपादन न करने से विवक्षित अर्थ मे बाध उत्पन्न् न होता है। गर्भित दोष वोँ दोष जहाँ पर एक वाक्य से दूसरा वाक्य प्राविष्ट हो जाता है ।हथव्रत दोष मे जहाँ व्रुत हत हो हाता है वहाँ ये दोष हुआ करता है।विस्पिन्द दोष सन्धी का विरूपता होता है ।
[2] ये सब विविद तरह के दोष है। कविता मे रस दोष ,शब्द दोष ,अक्षर दोष , वाक्य दोष ,अर्थ दोष होता है। इन मे रस दोष और वाक्य दोष बहुत मुक्य है। दोष कविता पदने मे मुक्य है ।हिन्दी व्याकरन मे दोष मूल्य है। कवि बावनाओं और सोछ को प्र्कट करता है। इसलिये कविताओं मे कोयि तरह कि दोष होन नही चाहिए ।