दर्शन परिषद

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दर्शन परिषद् भारत हिन्दी एवं अन्य भारतीय भाषाओं के माध्यम से मौलिक चिन्तन को बढ़ावा देने वाली एक संस्था है। इसका आरम्भ १९५४ में हुआ। इसका नाम 'अखिल भारतीय दर्शन परिषद्' था। 2016 में पुनः इसी नाम से संस्था पंजीकृत हुई है और निर्बाध रूप से अपने उद्देश्यों की ओर अग्रसर है। साहित्य के अतिरिक्त किसी अन्य विधा या विज्ञान के क्षेत्र में, हिन्दी या किसी अन्य भारतीय भाषा को माध्यम बनाने वाली यह अप्रतिम संस्था है। यह 'दार्शनिक' नामक एक त्रैमासिक पत्रिका का प्रकाशन भी करती है।

परिषद् का पंजीयन 23 अगस्त 1956 को लखनऊ में स्टॉक कंपनीज़ के संयुक्त-पंजीयक ने किया। इसका पंजीयन क्रमांक हैः 1194/17304/ 211/1956। कालक्रम में उसका नवीनीकरण नहीं हो सका। अतः पंजीयन की तत्कालीन नियमावली के अनुसार परिषद् का पंजीयन जबलपुर में दिनांक 12.07.2010 को ‘‘दर्शन-परिषद्’’ के नाम से सम्पन्न हुआ। इसका पंजीयन क्रमांक 04/14/01/12087/10 है। अद्यावधि परिषद् में 1900 से अधिक आजीवन सदस्य हैं तथा वर्तमान में यह देश में दर्शनशास्त्र के सर्वाधिक आजीवन सदस्यों की संस्था है। 2016 में इस संस्था ने अपने पूर्व नाम को पुनः प्राप्त कर लिया और अद्यतन रूप से क्रियाशील है।

परिषद् को प्रारंभिक दिनों में प्रेरणा तथा सहयोग देने वालों में आचार्य नरेन्द्र देव, सुप्रसिद्ध साहित्यकार तथा तत्कालीन साहित्य अकादमी के उपसचिव श्री प्रभाकर माचवे तथा राजनयिक मनीषी डॉ॰ संपूर्णानन्द के नाम उल्लेखनीय हैं। परिषद् प्रारंभ से ही जनाधार एवं राष्ट्रभाषा में दार्शनिक चिंतन के उत्कर्ष को महत्वपूर्ण मानती रही है तथा शासकीय या अर्धशासकीय आलंबनों को अनावश्यक महत्व नहीं दिया गया।

आज परिषद् को आर्थिक दृष्टि से सर्वाधिक सहयोग भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद् प्रदान करती है।

परिषद् आज विश्व स्तर पर दर्शनशास्त्र के अंतर्राष्ट्रिय संगठन फिस्प (Federation of International Societies of Philosophy) से नवंबर, 1993 से संबद्ध है। इसके पंचवार्षिक अंतर्राष्ट्रिय अधिवेशनों में परिषद् की भागीदारी होती है।

पत्रिका[संपादित करें]

परिषद् का जन्म एक प्रकार से ‘दार्शनिक’ पत्रिका से हुआ है। यदि ‘दार्शनिक’ पत्रिका को प्रकृति मान लिया जाय तो पुरुष के घटक की भूमिका का निर्वाह फरीदकोट (पंजाब) के एक हाई स्कूल में हिन्दी के अध्यापक श्री यशदेव शल्य (जन्म : 26-6-1928) ने किया। परिषद् की पत्रिका ‘दार्शनिक’ का प्रवेशांक अक्तूबर, 1954 में प्रकाशित हुआ। श्री शल्य इसके प्रबंध सम्पादक थे और डॉ॰ रामनाथ कौल, प्रो॰ संगमलाल पाण्डेय एवं श्री अर्जुन चौबे काश्यप इसके सम्पादक-मण्डल में थे। इसका मुद्रण अमृत इलेक्ट्रिक प्रेस, फिरोजपुर में हुआ। दार्शनिक त्रैमासिक’ पत्रिका का नियमित और व्यवस्थित प्रकाशन (वर्ष 1, अंक 1) जनवरी 1955 से प्रारंभ हुआ। इसका संपादन शल्यजी ने प्रबंध-संपादक के रूप में त्रैमासिक दार्शनिक शीर्षक से किया। इसका मुद्रण होशियारपुर (पंजाब) के विश्वेश्वरानन्द वैदिक शोध संस्थान प्रेस, साधु आश्रम से हुआ। प्रथम वर्ष के द्वितीय अंक से पत्रिका का वर्तमान शीर्षक दार्शनिक त्रैमासिकप्रारंभ हो गया। तब से अब तक (वर्ष 1971 को छोड़कर) इसी शीर्षक से परिषद् का यह मुख-पत्र नियमित ढंग से प्रकाशित हो रहा है। इसमें मुख्यतया परिषद् के अधिवेशनों में प्रस्तुत आलेख प्रकाशित होते हैं। परन्तु आमंत्रित लेख भी इसमें समुचित स्थान पाते हैं।

अधिवेशन[संपादित करें]

परिषद् का प्रथम अधिवेशन अक्तूबर, 1955 में प्रयाग विश्वविद्यालय में आयोजित होना था, परंतु वह वहीं फरवरी, 1956 में संपन्न हो पाया। इस अधिवेशन के सभापति प्रो॰ अनुकूलचन्द्र मुखर्जी (1890-1968) ने समकालीन भारतीय दर्शन को अपने अध्यक्षीय भाषण का केन्द्र-बिन्दु बनाते हुए यह प्रतिपादित किया कि समकालीन भारतीय दर्शन के सम्यक् विकास के लिए इसमें परंपरागत पंडितों का सहयोग आवश्यक है। इस अधिवेशन का उद्घाटन प्रयाग के प्रसिद्ध भाषा-शास्त्री डॉ॰ बाबूराम सक्सेना ने किया था तथा व्यवस्था में प्रमुख योगदान प्रो॰ संगमलाल पाण्डेय, डॉ॰ धर्मेन्द्र गोयल तथा अर्जुन चौबे काश्यप का था। इसमें बाहर से पधारे प्रतिनिधियों में जबलपुर के डॉ॰ शिवनारायणलाल श्रीवास्तव तथा अमलनेर के श्री श्रीराम माधव चिंगले के नाम उल्लेखनीय हैं।

परिषद् का द्वितीय अधिवेशन वैष्णव शोध संस्थान, वृन्दावन में डॉ॰ भीखनलाल आत्रेय (1897-1977) की अध्यक्षता में हुआ जिसमें कुछ लोग बिहार से भी आये थे। प्रो॰ धीरेन्द्र मोहन दत्त इसके सभापति चुने गये थे। उनकी अनुपस्थिति में प्रो॰ आत्रेय (काशी हिन्दू विश्वविद्यालय) ने ‘दार्शनिक विचार’ पर अपना वक्तव्य प्रस्तुत किया।

परिषद् का रजत-जयंती अधिवेशन (1980) भगवान स्वामिनारायण द्विशताब्दी महोत्सव के उपलक्ष्य में आयोजित हुआ।

परिषद् के वार्षिक अधिवेशनों में प्रायः चार या पॉच विभागों के अंतर्गत शोध-पत्रें का वाचन होता है। वर्तमान में पांच विभागों के अंतर्गत शोध-पत्रें कावाचन होता है, यथा -

  • (1) तर्क एवं ज्ञानमीमांसा,
  • (2) तत्त्वमीमांसा,
  • (3) धर्ममीमांसा एवं
  • (4) नीति दर्शन एवं
  • (5) समाज-दर्शन।

अधिवेशन के समय दो या तीन संगोष्ठियों का आयोजन होता है, जिनमें एक विषय शास्त्रीय तथा दूसरा लोकप्रिय होता है। स्थानीय आवश्यकता के अनुसार भी कभी-कभी संगोष्ठी के विषय तथा संख्या का निर्धारण किया जाता है। परिषद् के अधिवेशन दो से पॉच दिनों तक के होतेहैं। परन्तु अधिकांश अधिवेशन त्रिदिवसीय होते हैं। आगन्तुकों के आवास-भोजनादि की व्यवस्था अधिवेशन के उद्घाटन-दिवस की पूर्व-संध्या से की जाती है। चूॅकि परिषद् का कोई स्थायी कार्यालय नहीं है और इसके वार्षिक अधिवेशन देश के विभिन्न भागों में आयोजित होते हैं एवं इसकी कार्यकारिणी के पदाधिकारियों का चुनाव प्रति तीसरे वर्ष होता रहता है अतः व्यवस्था की दृष्टि से कुछ कठिनाइयां भी आती हैं। हालही में यह निर्णय किया गया कि परिषद् का स्थायी कार्यालय जबलपुर में स्थापित किया जाय। इस दिषा में कुछ प्रगति हुई है। दार्शनिक त्रैमासिक के लगभग सभी अंकों का संग्रह किया जा चुका है। परिषद् के द्वारा प्रकाषित सभी ग्रन्थ भी यहां उपलब्ध हैं।

प्रकाशन[संपादित करें]

सन् 1957 से ही परिषद् द्वारा कई महत्वपूर्ण दार्शनिक साहित्य भी प्रकाशित किये गये, जिनमें कुछ मौलिक ग्रन्थ हैं, कुछ अनुवाद हैं तथा कुछ संकलन-संपादन। इनकी सूची निम्नानुसार है :-

बौद्ध दर्शन और उसका विकास-पी.टी. राजू

बौद्ध विज्ञानवाद-पी.टी. राजू

अनुभववाद-यशदेव शल्य (सं.)1960

दार्शनिक विश्लेषण-यशदेव शल्य 1961

समकालीन भारतीय दर्शन- के. सच्चिदानन्द मूर्ति (सं.)

भारतीय मनोविज्ञान-नारायण शास्त्री द्राविण (सं.)1963

नृतत्व तथा समाजदर्शन (डायोजीन्ज़ के लेखों का हिन्दी अनुवाद,यूनेस्को,पेरिस के सहयोग से)11खण्ड (सं.दयाकृष्ण,गोविन्द चन्द्र पाण्डे इत्यादि)

समकालीन दार्शनिक समस्याएं,यशदेव शल्य (सं.)

विषय और आत्म-यशदेव शल्य 1972

रत्नकीर्ति विरचित अपोहसिद्धि (अनुवाद एवं व्याख्या)1971,गोविन्दचन्द्र पाण्डेय

धर्मकीर्ति विरचित न्यायबिन्दु (अनुवाद, व्याख्या)1972,गोविन्दचन्द्र पाण्डेय

नये प्रकाशन[संपादित करें]

1. भारतीय दार्शनिक चिंतन (अधिवेशनों के अध्यक्षीय भाषणों का संग्रह), प्रथम खण्ड, 2000, पृष्ठ संख्या 332, संपादन : डॉ॰ विजयश्री (संस्करण समाप्त)

2. भारतीय दार्शनिक चिंतन, द्वितीय खण्ड, 2004, पृष्ठ संख्या 343, संपादनः डॉ॰ डी.आर. भण्डारी एवं डॉ॰ ज्योतिस्वरूप दुबे

3. भारतीय दार्शनिक चिंतन, तृतीय खण्ड (दार्शनिक त्रैमासिकके विभिन्न अंकों के कुछ चयनित आलेखों का संग्रह), 2007, पृष्ठ संख्या 339, संपादन : डॉ॰ रमेश चन्द्र सिन्हा एवं डॉ॰ ज्योतिस्वरूप दुबे

4. सेश्वर वेदान्त, संपादक : डॉ॰ नितिश दुबे, 2006, पृष्ठ संख्या : 288, टीप :उपरोक्त ग्रन्थों की उपलब्धता : न्यू भारतीय बुक कार्पोरेशन, 208, द्वितीय तल, 4735/22, प्रकाशदीप बिल्डिंग, अंसारी रोड, दयिगंज, दिल्ली- 110002,

5. तुलनात्मक दर्शन (स्वामी प्रणवानन्द तुलनात्मक दर्शन व्याख्यानों का संग्रह), सम्पादक : डॉ॰ कालीचरण पाण्डेय, 2005, पृष्ठ संख्या 280,

6. भारतीय मनोविज्ञान, (नवीन संवर्द्धित संस्करण), संपादक : प्रो॰ नारायण शास्त्री द्रविड़ (एवं डॉ॰ राजेश कुमार चौरसिया), 2007, पृष्ठ संख्या : 235 7. तुलनात्मक धर्म-दर्शन (परमहंस योगानन्द तुलनात्मक धर्म-दर्शन व्याख्यानों का संग्रह),सं.प्रो.श्रीप्रकाश दुबे तथा डॉ॰ अविनाश श्रीवास्तव,विश्वविद्यालय प्रकाशन, सागर,2008

8. स्वातंत्र्योत्तर दार्शनिक प्रकरण, प्रधान संपादक : डॉ॰ सुरेन्द्र सिंह नेगी, संपादकः डॉ॰ अम्बिकादत्त शर्मा

खण्ड-1 : समेकित दार्शनिक विमर्श, 2005,पृष्ठ संख्या 627
खण्ड-2 : समेकित अद्वैत विमर्श, 2005,पृष्ठ संख्या 544
खण्ड-3 : भारतीय दर्शन के 50 वर्ष, प्रधान संपादकः प्रो॰एस.पी. दुबे, सम्पादक : डॉ॰अम्बिकादत्त शर्मा, 2006,पृष्ठ संख्या 426
खण्ड-4 : समेकित पाश्चात्य दर्शन समीक्षा, 2012, पृ.सं. 438, संपादकः डॉ॰ अम्बिकादत्त शर्मा, टीपःउपरोक्त ग्रन्थों की उपलब्धता : विश्वविद्यालय प्रकाशन, 247, जवाहरगंज वार्ड, सागर- 470002,

9. अखिल भारतीय दर्शन-परिषद्:एक परिचय (सचित्र)अनुपलब्ध,2004 प्रस्तुति : प्रो॰ एस.पी.दुबे,पृष्ठ संख्या:198

10. ब्रह्मोद्य-1 : दर्शन के आयाम (प्रो. एस.पी.दुबे अभिनन्दन ग्रन्थ),सम्पादकः डॉ॰ रमेश चन्द्र सिन्हा, डॉ॰जटाशंकर एवं डॉ॰ अम्बिकादत्त शर्मा,न्यू भारतीय बुक कॉरपोरेशन,दिल्ली,2012,पृ.सं.530

ब्रह्मोद्य-2 : Dimensions of Philosophy (Felicitation Volume of Dr. S.P. Dubey) सम्पादकः डॉ॰ रमेश चन्द्र सिन्हा, डॉ॰ जटाशंकर एवं डॉ॰ अम्बिकादत्त शर्मा, न्यू भारतीय बुक कॉरपोरेशन, दिल्ली,2012, पृ.सं.563

11. गांधी दर्शन में नारी स्वतंत्रता, फौज़िया परवीन, विश्वविद्यालय प्रकाशन, सागर, 2009,पृष्ठ संख्या 214

12. दार्शनिक चिंतन-सृजन ग्रंथमाला-1, प्रो॰ नारायण शास्त्री द्रविड़, भारतीय दर्शन की मूलगामी समस्यायें, विश्वविद्यालय प्रकाशन, सागर, 2009, पृष्ठ संख्या: 457,

ग्रंथमाला-2, गोस्वामी श्याम मनोहर, साकार ब्रह्मवाद, कोल्हापुर,महाराष्ट्र, 2010, पृष्ठ संख्या : 368

ग्रंथमाला-3, प्रो॰ नवजीवन रस्तोगी, लखनऊ, अभिनवगुप्त का तंन्त्रागमीय दर्शन-इतिहास-संस्कृति-सौन्दर्य और तत्त्व-चिन्तन, सागर, 2012, पृष्ठ संख्या : 532,

ग्रंथमाला-4, डॉ॰ एस.पी. दुबे, जबलपुर, दर्शन मयूख, विश्वविद्यालय प्रकाशन सागर, 2013,पृष्ठ संख्या:300,

13. जैन आगमों और उपनिषदों की आचार मीमांसा,डॉ॰राकेशमणि त्रिपाठी तथा डॉ॰सोहन राज तातेड़,विश्वविद्यालय प्रकाशन,सागर,2011,पृष्ठ संख्या:360

14. स्वतंत्रता, मूल्य और परम्परा, डॉ॰ धमेन्द्र गोयल, चण्डीगढ़,विश्वविद्यालय प्रकाशन,सागर, 2012, पृष्ठ संख्या : 300,

15. अनुप्रयुक्त दर्शन तथा नीतिशास्त्र के आयाम, डॉ॰ रमेश चन्द्र सिन्हा अभिनन्दन ग्रन्थ, न्यू भारतीय बुक कॉरपोरेशन, दिल्ली, 2013, पृ. सं. 625,

16. वेदान्त दर्शन के आयाम, प्रो॰ रेवतीरमण पाण्डेय स्मृति-ग्रन्थ, न्यू भारतीय बुक कॉरपोरेशन, दिल्ली, 2013, पृ. सं. 634,

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]