जिजीविषा

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जिजीविषा जर्मन दार्शनिक आर्थर शोपन्हाउअर द्वारा विकसित एक अवधारणा है, जो एक तर्कहीन "ज्ञान के बिना अन्ध निरन्तर आवेग" का प्रतिनिधित्व करती है जो सहज व्यवहार को प्रेरित करती है, जिससे मानव अस्तित्व में एक अनन्त अतृप्त प्रयास होता है।

शोपन्हाउअर की जिजीविषा की धारणा को अधिक व्यापक रूप से "सहन, प्रजनन और प्रफुल्लन की पाशव शक्ति" के रूप में समझा जाता है। [1]

जिजीविषा और संकट के अस्तित्व संबंधी, मनोवैज्ञानिक, सामाजिक और भौतिक स्रोतों के बीच महत्त्वपूर्ण सम्बन्ध हैं। [2] [3], जो बिना किसी स्पष्टीकरण के मुमूर्ष्वनुभव को दूर करते हैं, उन्होंने अपने अस्तित्व के प्रत्यक्ष घटक के रूप में जिजीविषा का वर्णन किया है। [4] मृत्य्विच्छा (मुमूर्षा) बनाम जिजीविषा के मध्य का अन्तर भी आत्महत्या हेतु एक अनन्य संकट कारक है।

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. "Arthur Schopenhauer". Stanford Encyclopedia of Philosophy (Fall 2021)। (September 9, 2021)।
  2. "Understanding the Will to Live in Patients Nearing Death". The Academy of Psychosomatic Medicine (2005)
  3. No Author (2003). What is the Will to Live. Retrieved from http://www.wisegeek.com/what-is-the-will-to-live.htm
  4. Brown, Gregory K.; Steer, RA; Henriques, GR; Beck, AT (October 2005). "The Internal Struggle Between the Wish to Die and the Wish to Live: A Risk Factor for Suicide". American Journal of Psychiatry. 162 (10): 1977–1979. PMID 16199851. डीओआइ:10.1176/appi.ajp.162.10.1977.