रघुनाथ शिरोमणि

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रघुनाथ शिरोमणि (1477–1547 ई) भारत के एक दार्शनिक एवं तर्कशास्त्री थे। उन्होंने नव्य नयाय के दर्शन को वैश्लेषिक शक्ति के सर्वोच्च शिखर पर पहुँचाया। उनका 'तत्त्वचिन्तामणिधीधिति' नामक दार्शनिक ग्रन्थ गंगेशोपाध्याय के तत्त्वचिन्तामणि की टीका है। वे मिथिला के प्राचीन विश्वविद्यालय, मिथिला विद्यापीठ के कुलपति थे।

रघुनाथ शिरोमणि का जन्म नवद्वीप में हुआ था जो वर्तमान समय में पश्चिम बंगाल के नदिया जिले में है। वे चैतन्य महाप्रभु के समकालीन थे। शूलपाणि (१४वीं शताब्दी) उनके नाना थे। शूलपाणि स्मृतियों पर लेखन के लिये प्रसिद्ध हैं। रघुनाथ शिरोमणी वासुदेव सार्वभौम के शिष्य थे।

कृतियाँ[संपादित करें]

  • अनुमानदीधिति
  • प्रत्यक्षमणिदीधिति
  • शब्दमणिदीधिति
  • आख्यातवाद
  • नञवाद
  • पदार्थखण्डन
  • द्रव्यकिरणावलीप्रकाशदीधिति
  • गुणकिरणावलीदीधिति
  • आत्मतत्त्वविवेकदीधिति
  • न्यायलीलावतीप्रकाशदीधिति
  • मलिम्लु च विवेक

इनके अतिरिक्त तत्त्वचिन्तामणिदीधितिटीका, पदार्थतत्त्वनिरूपण, पदार्थरत्नमाला, आत्मतत्त्वविवेक टीका, व्युत्पत्तिवाद लीलाबती टीका, खण्डनखण्डखाद्य टीका, क्षणभङ्गुरवाद, प्रामाण्यवाद, आख्यातबाद, न्यायकुसुमाञ्जलि-टीका, न्यायलीलावती-विभूति, ब्रह्मसूत्रवृत्ति इत्यादि उनके द्वारा उल्लेखयोग्य ग्रन्थ हैं। इनमें अनुमानदीधिति उनकी सर्वश्रेष्ठ रचना है। इस ग्रन्थ की प्रत्येक पंक्ति में उनकी प्रतिभा का प्रस्फुटन हुआ है। उनके द्वारा रचित आत्मतत्त्वविवेकदीधिति ग्रन्थ एशियाटिक सोसाइटी से मुद्रित हुई थी।

इन्हें भी देखें[संपादित करें]