साँचा:महाभारत काल के सबसे शक्तिशाली योद्धा

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
श्रेणी
योद्धा
विवरण
ये ऐसे योद्धा थे जिन्होने युद्ध में कभी हार का स्वाद नहीं चखा था। इनके पास दिव्यास्त्रों की कमी नहीं थी और अपनी अपनी युद्ध कला मे पूर्ण रुप से पारंगत और प्रवीण तथा उत्तम योद्धा थे। महाभारत के अनुसार ये देवताओं को भी पराजित कर सकते थे जैसा कि श्रीकृष्ण और अर्जुन ने कई बार किया और यहाँ तक कि अर्जुन ने अपनी परीक्षास्वरूप युद्ध में अपने सर्वोत्तम योद्धा होने वाले गुण कौशल क्षमता से भगवान शिव को भी सन्तुष्ट कर दिया था जिस से भगवान शिव ने स्वयं अर्जुन में उस काल के सर्वोत्तम योद्धा होने के गुण को अनुभव कर अर्जुन के इस योग्यता से प्रसन्न होकर अर्जुन को अपना अचूक शक्ति अस्त्र पाशुपतास्त्र प्रदान किया । ऐसे ही गंगापुत्र भीष्म ने भी अपने युद्ध कौशल क्षमता

से भगवान गुरु परशुराम को सन्तुष्ट किया था। और भगदत्त तो इन्द्र का मित्र था, उसने भी अनेकों बार देवासुर संग्राम में देवताओं की सहायता की थी।

<div style="font-size:105%;border:none;margin: 0;padding:.1em;color:brown ऐसे योद्धा थे जिन्होने युद्ध मे बहुत ही कम बार हार का स्वाद चखा था। इनके पास भी दिव्यास्त्रों की कमी नहीं थी परन्तु अति विशेष दिव्यास्त्र जैसे पाशुपत अस्त्र आदि की प्रधानता भी नहीं थी। ये सब युद्ध कला में पूर्ण रुप से पारंगत और प्रवीण थे तथा भारतवर्ष के कई जनपदों को युद्ध में परास्त कर चुके थे।
श्रेणी३
दुर्योधन,धृष्टद्युम्न,शल्य,
अलम्बुष,कीचक
ये ऐसे योद्धा थे जिन्होंने अपने युद्ध में हार कम ही बार देखी थी, परन्तु ये ऐसे योद्धा थे जो किसी भी क्षण उत्साह और आवेश मे आकर बड़े से बड़े युद्ध का पासा पलट देने की क्षमता रखते थे। ये योद्धा अपने-अपने युद्ध कौशल में प्रवीण तथा श्रेष्ठ थे।
श्रेणी४
ये वीर युद्ध कला मे पूर्ण रुप से पारंगत और प्रवीण थे परन्तु इनके पास बहुत ज्यादा श्रेष्ठ दिव्यास्त्र नही थे। फिर भी ये समान्य वीरो से बहुत बढ़कर थे।
महाभारत काल के क्रमशः महाशक्तिशाली जनपद और उनके प्रतिनिधि
महाभारत के अनुसार ये जनपद महाभारत काल में सबसे अधिक विकसित और आर्थिक रुप से सुदृढ माने जाते थे, इन्हे उस समय के विकसित देश समझा जा सकता है तथा इनमे भी कुरु और यादव तो सबसे अधिक शक्तिशाली थे और केवल यही दो जनपद थे जिन्होंने उस समय राजसूय और अश्वमेध यज्ञ किये थे।