सदस्य:Sahni nikita28/प्रयोगपृष्ठ/1

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भारत में राष्ट्रीयभाषा हिन्दी की स्थिति

राष्ट्रीय भाषा क्या है?[संपादित करें]

प्रत्येक देश की अपनी ऐक राष्ट्रीयभाषा होती है। राष्ट्रीयभाषा भी देश की आत्मा स्वीकार किया जाता है। राष्ट्रीयभाषा के अभाव में राष्ट्रिय एकता तथा राष्ट्रि-भावना का सकारात्मक या निर्माणात्मक स्वरूप विकसित नही हो सकता। सामान्य तथा व्यावहारिक दृष्टि से समूचे राष्ट्र द्वारा व्यवहार में लाई जाने वाली और संविधान द्वारा स्वीकृत भाषा को 'राष्ट्रीयभाषा' कहते है। भारत एक अनेक भाषा-भाषी राष्ट्रि है। भारतीय संविधान में अनेक भाषाऍं स्वीकृत हैं। इन सभी भाषाओं में साहित्य रचा जाता है। अनेक भाषाओं वाले इस देश को एकसूत्र में बॉंधने के लिए तथा परस्पर विचारों के आदान-प्रदान के लिए एक ऐसी भाषा की आवश्यकता है, जो संपर्क भाषा का दायित्व भी निभा सके। वही राष्ट्रीयभाषा होगी। राष्ट्रिभाषा वही हो सकती है, जिसका अतीत उज्जवल रहा हो, जिसमें रचित साहित्य समग्र राष्ट्र व उसकी संस्कृति को अमूल्य धरोहर समझा जाता हो।

देश में हिन्दी की दशा तथा दिशा-[संपादित करें]

देश की अधिकांश जनसंख्या उसे पढ, लिख, बोल या समझ सकती हो। ऐसी भाषा ही किसी स्वतंत्र राष्ट्रीय के संविधान द्वारा स्वीकृत होकर राष्ट्रभाषा का पद प्राप्त कर सकती है। इस दृष्टि से हिन्दी ही ऐसी भाषा है,जो सर्वाधिक योग्यता रखती है। देश की अधिकतर जनसंख्या हिन्दी बोलती, पढती और लिखती है। जो पढ-लिख नही भी सकते,वे भी इसे समझते तो अवश्य है। यह भारत के ह्रदय रूपी देश में स्थित करोडो नागरिक के मन-मस्तिष्क का पोषण करने वाली भाषा है। अहिन्दी भाषी क्षेत्रों के भी नागरिक हिन्दी को ही राष्ट्र्भाषा के उपयुक्त समझते है। परन्तु कुछ राजनेता अपने स्वार्थ के लिए अहिन्दी लोगों को उकसाते है। हिन्दी न पढने व पढने पर रोक लगाने का प्रयत्न करते है, तथा बाध्य करते है कि अलग-अलग राज्यो में उन्हीं की भाषा को मान्यता दी जाए और वही बोली जाए। इस कारण से हिन्दी को जो स्थान मिलना चाहिए वह नही मिल पा रहा है। और लोग हिन्दी से दूर भागते है जबकि ऐसा नही होना चाहिए। हिन्दी जैसे बोली जाती है, वैसे ही लिखी भी जाती है। इसका व्याकरण सरल है। इसकी लिपि देवनागरी है। सबसे बढकर; इसकी साहित्य दीर्घकालीन इतिहास लिए हुए है,जो हर प्रकार से समृदूध है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद संविधान ने १९६५ से इसे केंद्रीय सरकार की राजभाषा के रूप में प्रयुक्त करने का निश्च्य किया था, परंतु आज स्थिति दूसरी ही बन गई है। इतने वर्षों के बाद आज भी हिन्दी राष्ट्रीयभाषा बनने का गौरव प्राप्त नही कर सकी है।आज हिन्दी जानने वाले भी अंग्रेज़ी बोलकर अपने आप को पढा लिखा सिद्ध करने की कोशिश करते है। सरकारी काम अंग्रेज़ी में करना हमारे राजनेता अपना कर्तवय समझते हे।

अंग्रेज़ी का बढता प्रभाव-[संपादित करें]

हमारे यहॉं अंग्रेज़ी के प्रभाव के देखकर विदेशियों को भी अचरज में डाल देता है। दीक्षण भारत में शुरु-शुरु में हिन्दी प्रचार की कई परिक्षाऐं हुई परन्तु धीरे-धीरे उनका हिन्दी के प्रति उत्साह कम पडने लगा। आज क्षेत्रीय दल और भाषा पर आधारित दल बनते जा रहे है। एक प्रांत का दूसरे के साथ विदेशी जैसा व्यवहार होने लगा है। राष्ट्र्भाषा के अभाव के कारण ऐसा ही रहा है।

निष्कर्ष-[संपादित करें]

हमारा कर्तवय है कि अब हमें सचेत हो जाना चाहिए जिससे हिन्दी को प्रतिष्ठित किया जा सके और व्यवहार में हिन्दी लाई जाए। इसे पूरी तरह लागू किया जाना चाहिए क्योंकि अपनी भाषा और उसी में शिक्षा-दीक्षा ही हमें अपनी संस्कृति तथा राष्ट्र के प्रति समर्पित रख सकती है।

सन्दर्भ[संपादित करें]

अ*[1]

  1. http://www.shareyouressays.com/hindi-essays/essay-on-the-positions-of-national-language-in-india-today-in-hindi/107850