मैहर

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मैहर
मईहर
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मैहर जिला मुख्यालय
माँ शारदा मन्दिर, मैहर
माँ शारदा मन्दिर, मैहर
मैहर is located in मध्य प्रदेश
मैहर
मैहर
मध्य प्रदेश में स्थिति
देश भारत
राज्यमध्य प्रदेश
ज़िलामैहर
तहसील3+3 अमरपाटन,अमदरा,बदेरा,मैहर, नादन ,रामनगर,
ऊँचाई367 मी (1,204 फीट)
जनसंख्या (2020)
 • कुल7,42,901
समय मण्डलभामस (यूटीसी+5:30)
पिनकोड485771
वाहन पंजीकरणMP 73

मैहर (Maihar) भारत के मध्य प्रदेश राज्य में स्थित एक जिला है। यह एक हिन्दू तीर्थस्थलहै। जिला निर्माण 18 मार्च 2020 में कमलनाथ सरकार ने कैबिनेट प्रस्ताव से कर दिया था, किन्तु क्रियान्वयन प्रशासनिक तैयारी के साथ शिवराज सरकार ने 5 सितम्बर 2023 में प्रारम्भ किया। मैहर माँ शारदा की नगरी के साथ मध्य प्रदेश की संगीत नगरी और प्रमुख औद्योगिक नगर के रूप में विख्यात है। मैहर में नगर पालिका निगम कार्यरत है,जो 24 वार्डस से मिलकर बना है। जिसकी अध्यक्ष वर्तमान में श्रीमती गीता सोनी जी है।जिले में 02 विधानसभा क्षेत्र है।वर्तमान में मैहर विधायक श्री नारायण त्रिपाठी जी है। जो भारतीय जनता पार्टी से चुनाव जीत कर आये। मैहर राष्ट्रीय राजमार्ग 30 के माध्यम से रीवा संभाग से 65 कि. मी. की दूरी पर और उतनी ही दूरी पर कटनी जिले से भी है। सतना से 34 कि. मी. दूरी पर है। [1][2]

मन्दिर[संपादित करें]

शारदा मन्दिर से आल्हा-उदल जलाशय
मैहर में रोपवे
मैहर रेलवे स्टेशन
आल्हा देव मन्दिर
माँ शारदा मन्दिर के समीप आल्हा-ऊदल ताल

मैहर में शारदा माँ का प्रसिद्ध मन्दिर है जो नैसर्गिक रूप से समृद्ध कैमूर तथा विंध्य की पर्वत श्रेणियों की गोद में अठखेलियां करती तमसा के तट पर त्रिकूट पर्वत की पर्वत मालाओं के मध्य 600 फुट की ऊंचाई पर स्थित है। यह ऐतिहासिक मंदिर 108 शक्ति पीठों में से एक है। यह पीठ सतयुग के प्रमुख अवतार नृसिंह भगवान के नाम पर 'नरसिंह पीठ' के नाम से भी विख्यात है। ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर आल्हखण्ड के नायक आल्हाऊदल दोनों भाई मां शारदा के अनन्य उपासक थे। पर्वत की तलहटी में आल्हा का तालाब व अखाड़ा आज भी विद्यमान है। यहाँ प्रतिदिन हजारों दर्शनार्थी आते हैं किंतु वर्ष में दोनों नवरात्रों में यहां मेला लगता है जिसमें लाखों यात्री मैहर आते हैं। मां शारदा के बगल में प्रतिष्ठापित नरसिंहदेव जी की पाषाण मूर्ति आज से लगभग 1500 वर्ष पूर्व की है। देवी शारदा का यह प्रसिद्ध शक्तिपीठ स्थल देश के लाखों भक्तों के आस्था का केंद्र है माता का यह मंदिर धार्मिक तथा ऐतिहासिक है। वर्तमान में माँ शारदा शक्ति पीठ के प्रधान पुजारी पवन पाण्डेय जी है।

के जे एस के पास इच्छापूर्ति मंदिर पर्यटकों का दर्शनीय स्थल है ।

उत्पत्ति[संपादित करें]

ब्रह्माजी के पुत्र दक्ष प्रजापति का विवाह स्वायम्भुव मनु की पुत्री प्रसूति से हुआ था। प्रसूति ने सोलह कन्याओं को जन्म दिया जिनमें से स्वाहा नामक एक कन्या का अग्नि देव के साथ, स्वधा नामक एक कन्या का पितृगण के साथ, सती नामक एक कन्या का भगवान शंकर के साथ और शेष तेरह कन्याओं का धर्म के साथ विवाह हुआ। धर्म की पत्नियों के नाम थे- श्रद्धा, मैत्री, दया, शान्ति, तुष्टि, पुष्टि, क्रिया, उन्नति, बुद्धि, मेधा, तितिक्षा, ह्री और मूर्ति।

सती का जन्म, विवाह तथा दक्ष-शिव-वैमनस्य[संपादित करें]

दक्ष के प्रजापति बनने के बाद ब्रह्मा ने उसे एक काम सौंपा जिसके अंतर्गत शिव और शक्ति का मिलाप करवाना था। उस समय शिव तथा शक्ति दोनों अलग थे। इसीलिये ब्रह्मा जी ने दक्ष से कहा कि वे तप करके शक्ति माता (परमा पूर्णा प्रकृति जगदम्बिका) को प्रसन्न करें तथा पुत्री रूप में प्राप्त करें। तपस्या के उपरांत माता शक्ति ने दक्ष से कहा,"मैं आपकी पुत्री के रूप में जन्म लेकर शम्भु की भार्या बनूँगी। जब आप की तपस्या का पुण्य क्षीण हो जाएगा और आपके द्वारा मेरा अनादर होगा तब मैं अपनी माया से जगत् को विमोहित करके अपने धाम चली जाऊँगी। इस प्रकार सती के रूप में शक्ति का जन्म हुआ।

प्रजापति दक्ष का भगवान् शिव से मनोमालिन्य होने के कारण रूप में तीन मत हैं। एक मत के अनुसार प्रारंभ में ब्रह्मा के पाँच सिर थे। ब्रह्मा अपने तीन सिरों से वेदपाठ करते तथा दो सिर से वेद को गालियाँ भी देते जिससे क्रोधित हो शिव ने उनका एक सिर काट दिया। ब्रह्मा दक्ष के पिता थे। अत: दक्ष क्रोधित हो गया और शिव से बदला लेने की बात करने लगा। लेकिन यह मत अन्य प्रामाणिक संदर्भों से खंडित हो जाता है। श्रीमद्भागवतमहापुराण में स्पष्ट वर्णित है कि जन्म के समय ही ब्रह्मा के चार ही सिर थे।

दूसरे मत के अनुसार शक्ति द्वारा स्वयं भविष्यवाणी रूप में दक्ष से स्वयं के भगवान शिव की पत्नी होने की बात कह दिये जाने के बावजूद दक्ष शिव को सती के अनुरूप नहीं मानते थे। इसलिए उन्होंने सती के विवाह-योग्य होने पर उनके लिए स्वयंवर का आयोजन किया तथा उसमें शिव को नहीं बुलाया। फिर भी सती ने 'शिवाय नमः' कहकर वरमाला पृथ्वी पर डाल दी और वहाँ प्रकट होकर भगवान् शिव ने वरमाला ग्रहण करके सती को अपनी पत्नी बनाकर कैलाश चले गये। इस प्रकार अपनी इच्छा के विरुद्ध अपनी पुत्री सती द्वारा शिव को पति चुनने के कारण दक्ष शिव को पसंद नहीं करते थे।

तीसरा मत सर्वाधिक प्रचलित है। इसके अनुसार प्रजापतियों के एक यज्ञ में दक्ष के पधारने पर सभी देवताओं ने उठकर उनका सम्मान किया, परंतु ब्रह्मा जी के साथ शिवजी भी बैठे ही रहे। शिव को अपना जामाता अर्थात् पुत्र समान होने के कारण उनके द्वारा खड़े होकर आदर नहीं दिये जाने से दक्ष ने अपना अपमान महसूस किया और उन्होंने शिव के प्रति कटूक्तियों का प्रयोग करते हुए अब से उन्हें यज्ञ में देवताओं के साथ भाग न मिलने का शाप दे दिया। इस प्रकार इन दोनों का मनोमालिन्य हो गया।

सती का आत्मदाह[संपादित करें]

उक्त घटना के बाद प्रजापति दक्ष ने अपनी राजधानी कनखल में एक विराट यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें उन्होंने अपने जामाता शिव और पुत्री सती को यज्ञ में आने हेतु निमंत्रित नहीं किया। शंकर जी के समझाने के बाद भी सती अपने पिता के उस यज्ञ में बिना बुलाये ही चली गयी। यज्ञस्थल में दक्ष प्रजापति ने सती और शंकर जी का घोर निरादर किया। अपमान न सह पाने के कारण सती ने तत्काल यज्ञस्थल में ही योगाग्नि से स्वयं को भस्म कर दिया। सती की मृत्यु का समाचार पाकर भगवान् शंकर ने वीरभद्र को उत्पन्न कर उसके द्वारा उस यज्ञ का विध्वंस करा दिया। वीरभद्र ने पूर्व में भगवान् शिव का विरोध तथा उपहास करने वाले देवताओं तथा ऋषियों को यथायोग्य दण्ड देते हुए दक्ष प्रजापति का सिर भी काट डाला। बाद में ब्रह्मा जी के द्वारा प्रार्थना किये जाने पर भगवान् शंकर ने दक्ष प्रजापति को उसके सिर के बदले में बकरे का सिर प्रदान कर उसके यज्ञ को सम्पन्न करवाया।

दक्ष-यज्ञ-विध्वंस : कथा-विकास के चरण[संपादित करें]

दक्ष-यज्ञ-विध्वंस की कथा के विकास के स्पष्टतः तीन चरण हैं। इस कथा के प्रथम चरण का रूप महाभारत के शांतिपर्व में है। कथा के इस प्राथमिक रूप में भी दक्ष का यज्ञ कनखल में हुआ था इसका समर्थन हो जाता है। यहाँ कनखल में यज्ञ होने का स्पष्ट उल्लेख तो नहीं है, परंतु गंगाद्वार के देश में यज्ञ होना उल्लिखित है और कनखल गंगाद्वार (हरिद्वार) के अंतर्गत ही आता है। इस कथा में दक्ष के यज्ञ का विध्वंस तो होता है परंतु सती भस्म नहीं होती है। वस्तुतः सती कैलाश पर अपने पति भगवान शंकर के पास ही रहती है और अपने पिता दक्ष द्वारा उन्हें निमंत्रण तथा यज्ञ में भाग नहीं दिये जाने पर अत्यधिक व्याकुल रहती है। उनकी व्याकुलता के कारण शिवजी अपने मुख से वीरभद्र को उत्पन्न करते हैं और वह गणों के साथ जाकर यज्ञ का विध्वंस कर डालता है। परंतु, न तो वीरभद्र दक्ष का सिर काटता है और न ही उसे भस्म करता है। स्वाभाविक है कि बकरे का सिर जोड़ने का प्रश्न ही नहीं उठता है। वस्तुतः इस कथा में 'यज्ञ' का सिर काटने अर्थात् पूरी तरह 'यज्ञ' को नष्ट कर देने की बात कही गयी है, जिसे बाद की कथाओं में 'दक्ष' का सिर काटने से जोड़ दिया गया। इस कथा में दक्ष 1008 नामों के द्वारा शिवजी की स्तुति करता है और भगवान् शिव प्रसन्न होकर उन्हें वरदान देते हैं।

इस कथा के विकास के दूसरे चरण का रूप श्रीमद्भागवत महापुराण से लेकर शिव पुराण तक में वर्णित है। इसमें सती हठपूर्वक यज्ञ में सम्मिलित होती है तथा कुपित होकर योगाग्नि से भस्म भी हो जाती है। स्वाभाविक है कि जब सती योगाग्नि में भस्म हो जाती है तो उनकी लाश कहां से बचेगी ! इसलिए उनकी लाश लेकर शिवजी के भटकने आदि का प्रश्न ही नहीं उठता है। ऐसा कोई संकेत कथा के इस चरण में नहीं मिलता है। इस कथा में वीरभद्र शिवजी की जटा से उत्पन्न होता है तथा दक्ष का सिर काट कर जला देता है। परिणामस्वरूप उसे बकरे का सिर जोड़ा जाता है।

कथा के विकास के तीसरे चरण का रूप देवीपुराण (महाभागवत) जैसे उपपुराण में वर्णित हुआ है। जिसमें सती जल जाती है और दक्ष के यज्ञ का वीरभद्र द्वारा विध्वंस भी होता है। यहाँ वीरभद्र शिवजी के तीसरे नेत्र से उत्पन्न होता है तथा दक्ष का सिर भी काटा जाता है। फिर स्तुति करने पर शिव जी प्रसन्न होते हैं और दक्ष जीवित भी होता है तथा वीरभद्र उसे बकरे का सिर जोड़ देता है। परंतु, यहाँ पुराणकार कथा को और आगे बढ़ाते हैं तथा बाद में भगवान शिव को पुनः सती की लाश सुरक्षित तथा देदीप्यमान रूप में यज्ञशाला में ही मिल जाती है। तब उस लाश को लेकर शिवजी विक्षिप्त की तरह भटकते हैं और भगवान् विष्णु क्रमशः खंड-खंड रूप में चक्र से लाश को काटते जाते हैं। इस प्रकार लाश के विभिन्न अंगों के विभिन्न स्थानों पर गिरने से 51 शक्ति पीठों का निर्माण होता है। स्पष्ट है कि कथा के इस तीसरे रूप में आने तक में सदियों या सहस्राब्दियों का समय लगा होगा।

शक्तिपीठ[संपादित करें]

इस तरह सती के शरीर का जो हिस्सा और धारण किये आभूषण जहाँ-जहाँ गिरे वहाँ-वहाँ शक्ति पीठ अस्तित्व में आ गये। शक्तिपीठों की संख्या विभिन्न ग्रंथों में भिन्न-भिन्न बतायी गयी है। तंत्रचूड़ामणि में शक्तिपीठों की संख्या 52 बताई गयी है। देवीभागवत में 108 शक्तिपीठों का उल्लेख है, तो देवीगीता में 72 शक्तिपीठों का जिक्र मिलता है। देवीपुराण में 51 शक्तिपीठों की चर्चा की गयी है। परम्परागत रूप से भी देवीभक्तों और सुधीजनों में 51 शक्तिपीठों की विशेष मान्यता है।

यह कहा जाता है कि जब शिव मृत देवी माँ के शरीर ले जा रहे थे, उनका हार इस जगह पर गिर गया और इसलिए नाम मैहर (मैहर = माई का हार ) पड़ गया। एक कहानी यह भी है कि भगवती सती का उर्ध्व ओष्ठ यहां गिरा था।

इतिहास[संपादित करें]

मैहर इतिहास Paleolithic आयु के बाद से पता लगाया जा सकता है। मैहर शक्तिपीठ श्री श्री माता सतीजी के हार का त्रिकुट पर्वत पर गिर जाने से मैहर (माई का हार) इस जगह का नाम पड़ा जो कालांतर में वह जगह मां शारदा के मन्दिर के रूप में प्रतिष्ठापित हुआ, और त्रिकुट पर्वत का पूरा क्षेत्र मैहर के नाम से प्रसिद्ध हुआ जहां धीरे धीरे मैहर शहर विस्तार किया वह कभी महिष्मति साम्राज्य के अंदर आता था बादमें प्रतिहार, पाल, गोंड, चंदेल, बघेल आदि राजाओं ने भी यहां माता के आशीर्वाद से राज्य किया, गौरतलब है की चंदेल राजाओं के महान सेनानायक आल्हा ऊदल माताजी के परम् भक्त थे कहते हैं माताजी आल्हा से साक्षात बात करती थी और आल्हा आज भी माताजी की पूजा करने आते हैं जिसके प्रमाण कोविड 19 के दौरान जब लॉकडाउन में मंदिर बंद कर दिया और पुलिस की पहरेदारी थी पर सुबह जब पुजारी जी ने मन्दिर खोला तो आश्चर्य चकित रह गया वहां फल फूल नारियल चुनरी अगरबत्ती प्रसाद सब चढ़ा हुआ था, ऐसी महिमा है माई शारदा जी की वो भक्तों को हमेशा अभय और अमर करती है जैसे आल्हा भगत आज भी मौजूद हैं आदि शहर के पूर्व में मैहर रियासत की राजधानी थी। राज्य 1778 में कुशवाहा शासकों, जो ओरछा के पास राज्य के शासक द्वारा दी गई भूमि पर स्थापित किया गया। राज्य में जल्दी 19 वीं सदी में ब्रिटिश भारत के एक राजसी राज्य बना था और बुंदेलखंड एजेंसी के मध्य भारत एजेंसी में भाग के रूप में दिलाई. 1871 में बुंदेलखंड के पूर्वी राज्यों, मैहर सहित, मध्य भारत में बघेेलखंड की नई एजेंसी फार्म अलग हो गए थे। 1933 मैहर में, दस अन्य राज्यों के साथ साथ पश्चिमी बघेेलखंड में, वापस बुंदेलखंड एजेंसी को हस्तांतरित किया गया। राज्य 407 वर्ग मील के एक क्षेत्र है और 1901 में 63,702 की आबादी थी। राज्य है, जो टोंस नदी से पानी पिलाया था जलोढ़ मिट्टी के बलुआ पत्थर को कवर मुख्य रूप से शामिल है और दक्षिण के पहाड़ी जिले में छोड़कर उपजाऊ है। एक बड़े क्षेत्र में वन के तहत किया गया, जिसमें से एक छोटे से उत्पादन निर्यात व्यापार प्रदान की है। शासक का शीर्षक महाराजा था। राज्य अकाल से 1896-1897 में गंभीर रूप से सामना करना पड़ा. मैहर ईस्ट इंडियन रेलवे (अब पश्चिम मध्य रेलवे) सतना और जबलपुर, 97 मील की दूरी पर जबलपुर के उत्तर के बीच लाइन पर एक स्टेशन बन गया। मंदिरों और अन्य भवनों का व्यापक खंडहर शहर के चारों ओर फैला है। [3]

शारदा देवी मंदिर[संपादित करें]

मैहर में त्रिकुट पर्वत की ऊंची पहाड़ियों के ऊपर शारदा देवी का मंदिर है।जो शहर के मध्य से लगभग 5 किमी ऊपर है।

वहाँ एक शारदा देवी की पत्थर की मूर्ति के पैर शारदा देवी मंदिर के पास में स्थित प्राचीन शिलालेख है। वहाँ शारदा देवी के साथ भगवान नरसिंह की एक मूर्ति है। इन मूर्तियों Nupula देवा द्वारा शेक 424 चैत्र कृष्ण पक्ष पर 14 मंगलवार, विक्रम संवत् 559 अर्थात 502 ई. स्थापित किया गया। चार पंक्तियों में इस पत्थर शिलालेख शारदा देवी देवनागरी लिपि में "3.5 से" 15 आकार की है। मंदिर में एक और पत्थर शिलालेख एक शैव संत Shamba जो बौद्ध धर्म और जैन धर्म का भी ज्ञान था द्वारा 34 "31" आकार का खुदा होता है। इस शिलालेख नागदेव के एक दृश्य भालू और पता चलता है कि यह दामोदर , सरस्वती के बेटे के बारे में थी, कलियुग का व्यास माना जाता है। और यह है कि पूजा के दौरान उस समय बकरी बलिदान की व्यवस्था चली। स्थानीय परंपरा का पता चलता है कि योद्धाओं आल्हा और उदल, जो पृथ्वी राज चौहान के साथ युद्ध किया था इस जगह के साथ जुड़े रहे हैं। दोनों भाई शारदा देवी के बहुत मजबूत अनुयायी थे। कहा जाता है कि आल्हा 12 साल के लिए penanced और शारदा देवी के आशीर्वाद स अर्मत्व है। आल्हा और उदल करने के लिए इस दूरदराज के जंगल में देवी की यात्रा पहले कहा जाता है। आल्हा को नाम 'शारदा माई' द्वारा देवी माँ कह कर बुलाते थे और अब वह 'के रूप में माता शारदा माई' लोकप्रिय हो गया। एक नीचे मंदिर, के रूप में 'आल्हा तालाब' ज्ञात तालाब के पीछे पहाड़ी देख सकते हैं। हाल ही में इस तालाब और आसपास के क्षेत्रों में साफ किया गया है / तीर्थयात्रियों के हित के लिए rennovated. इस तालाब से 2 किलोमीटर की दूरी पर आल्हा औरउदल जहां वे कुश्ती का अभ्यास किया था के अखाड़े स्थित है। [5]

भूगोल[संपादित करें]

मैहर 24.27 ° N 80.75 ° E [6] में स्थित है। यह 367 मीटर (1204 फीट) की एक औसत ऊंचाई है।

जनसांख्यिकी[संपादित करें]

2021 भारत की जनगणना के रूप में [7], मैहर नगर 55000 की आबादी थी। पुरुषों की आबादी और 48% महिलाओं की 52% का गठन. मैहर 64% की एक औसत साक्षरता दर 59.5% के राष्ट्रीय औसत से अधिक: पुरुष साक्षरता 72% है और महिला साक्षरता 56% है। मैहर में, जनसंख्या का 15% age.and के 6 साल के अंतर्गत है

परिवहन[संपादित करें]

मैहर अच्छी तरह से आवागमन के माध्यमों से जुड़ा हुआ है। यह दोनों प्रमुख माध्यम रेल मार्ग और सड़क मार्ग 30 एन एच (राष्ट्रीय राजमार्ग) से जुड़ा हुआ है। शारदा माता मंदिर मैहर रेलवे स्टेशन से 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। मंदिर तक आप जाने के लिए रोपवे का भी इस्तेमाल कर सकते हैं जबलपुर स्टेशन 162 किलोमीटर मैहर से दूर स्थित है। मैहर रेलवे स्टेशन पश्चिम मध्य रेलवे के कटनी और सतना स्टेशनों के बीच में स्थित है। नवरात्रि त्योहार के दौरान वहाँ श्रद्धालुओं की भारी भीड़ होती है। इसलिए इन दिनों के दौरान अप और डाउन के सभी ट्रेने यात्रियों की सुविधा के लिए मैहर में रूकती है । निकटतम हवाई अड्डा जबलपुर हैं। निर्माणाधीन रीवा में है जो 62 कि. मी.पर है। मैहर,कटनी जंक्‍शन और सतना जंक्‍शन के बीच स्थित है। रेलवे स्‍टेशन कोड MYR है। दोनों जंक्‍शनों के मध्‍य कई ट्रेनों का आवागमन दिन भर रहता है। यहां दो बस स्‍टैंड है जिसमें से एक देवी मंदिर से करीब 1-1.5 किलोमीटर दूर स्थित है जहां से सतना जैसे बड़े शहरों के लिए बसों का आवागमन होता रहता है। दूसरा बस स्‍टैंड रेलवे स्‍टैंड के दूसरी ओर ( प्‍लेटफ्राम 2 के ओवर ब्रिज)से निकलने के बाद शहर की ओर से जाने वाले रास्‍ते में मुख्‍य सड़क के दायीं ओर (करीब 1 किलोमीटर दूर) स्थित है। सबसे सरल मार्ग के तौर पर मैहर रेलवे स्‍टेशन से ऑटो के माध्‍यम से मंदिर तक आसानी से पहुंचा जा सकता है।

उद्योग[संपादित करें]

वर्तमान में यहाँ पर आर्थिक दृष्टि से सीमेंट की तीन फैक्ट्रियां कार्यरत हैं जो मैहर सीमेंट,रिलायंस सीमेंट, और KJS सीमेंट है।। कारखाना परिसर, सरलानगर में स्थित है जो लगभग 8 किलोमीटर मैहर-Dhanwahi रोड पर मैहर शहर से दूर है।

संस्कृति[संपादित करें]

मैहर घराना[संपादित करें]

मैहर, हिंदुस्तानी संगीत की एक घराना (स्कूल या शैली) का जन्मस्थान के रूप में एक भारतीय शास्त्रीय संगीत में एक प्रमुख स्थान है। भारतीय शास्त्रीय संगीत उस्ताद अलाउद्दीन खान (1972 मृत्यु हो गई) की सबसे बड़ी दिग्गज लंबे समय के लिए यहां रहते थे और मैहर के महाराजा पैलेस के दरबार संगीतकार और उसकी छात्रों श्रीमती अन्नपूर्णा (अलाउद्दीन खान की बेटी) देवी, उस्ताद अली अकबर खान (अलाउद्दीन खान के पुत्र), पंडित [[रवि (संगीतकार) शंकर, उस्ताद आशीष खान (अलाउद्दीन खान के पोते), उस्ताद Dhyanesh खान (अलाउद्दीन खान 2 पोता), उस्ताद प्रणेश खान (अलाउद्दीन खान के पोते 3), उस्ताद बहादुर खान (अलाउद्दीन खान के भतीजे), Timir बारां भट्टाचार्य (अलाउद्दीन खान के पहले छात्र) पं.. Indranil (Timir बारां भट्टाचार्य के पुत्र) भट्टाचार्य, वसंत राय पंडित पन्नालाल घोष, पंडित निखिल बनर्जी (अलाउद्दीन खान के छात्रों) (अलाउद्दीन खान की अंतिम छात्र) 20 वीं century.The पहले उस्ताद अलाउद्दीन खां संगीत सम्मेलन में श्री शैली थी द्वारा आयोजित लोकप्रिय 1962in में दीप चंद इस सम्मेलन कलाकारों अली अकबर, pt रवि शंकर, राम नारायण पीटी, पीटी shantaprasad, निखिल बनर्जी pt उस्ताद था जैन, सरन रानी, एमएस pt जोग VG आदि।

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

सन्दर्भ[संपादित करें]