पदार्थ तरंग

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पदार्थ-तरंग तरंग-कण द्वैत्य का एक उदाहरण होने के नाते प्रमात्रा यान्त्रिकी का एक केन्द्रीय भाग हैं। सभी पदार्थ तरंग जैसा व्यवहार प्रदर्शित करते हैं। उदाहरणार्थ, इलेक्ट्रॉन पुंज को प्रकाशपुंज या जलतरंगों की तरह ही विवर्तित किया जा सकता है। यद्यपि, अधिकांश स्थितियों में, दैनन्दिन गतिविधियों पर व्यावहारिक प्रभाव डालने हेतु तरंगदैर्घ्य अतिक्षुद्र होता है।

1924 में फ्रांसीसी भौतिकविद् लुई द ब्रॉय ने पदार्थ की तरंग की तरह व्यवहार करने वाली अवधारणा को प्रस्तावित की थी।

द ब्रॉय ने इस तर्क के आधार पर किसी पदार्थ के कण हेतु तरंगदैर्घ्य (λ) तथा संवेग (p) के मध्य निम्नलिखित सम्बन्ध बताया:

जहाँ m कण का द्रव्यमान, v उसका वेग और h प्लांक स्थिरांक है। द ब्रॉय के इन विचारों की पुष्टि प्रयोगों द्वारा तब हुई, जब यह देखा गया कि इलेक्ट्रॉन पुंज का विवर्तन होता है, जो तरंगों का लक्षण है। इस सिद्धान्त के आधार पर इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी की रचना की गई, जो इलेक्ट्रॉनों के तरंग जैसे व्यवहार पर उसी प्रकार आधारित है, जिस प्रकार साधारण सूक्ष्मदर्शी की रचना प्रकाश की तरंग प्रकृति पर आधारित है। आधुनिक वैज्ञानिक शोध कार्यों में इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी एक महत्त्वपूर्ण उपकरण है, क्योंकि इससे किसी अतिसूक्ष्म वस्तु को 1.5 करोड़ गुणा बड़ा करके देखा जा सकता है।

यह ध्यान देने योग्य है कि द ब्रॉय के अनुसार प्रत्येक गतिशील वस्तु में तरंग के लक्षण होते हैं। साधारण वस्त्वों का अधिक द्रव्यमान होने के कारण उनसे सम्बन्धित तरंगदैर्घ्य इतनी कम होती है कि उनके तरंग जैसे गुण ज्ञात नहीं हो पाता, परन्तु इलेक्ट्रॉनों और अन्य अवपारमाण्विक कणों, जिनका द्रव्यमान बहुत कम होता है, से सम्बन्धित तरंग दैर्घ्यों को प्रयोगों द्वारा पहचाना जाता है।

सन्दर्भ[संपादित करें]