वैष्णव जन तो तेने कहिये अत्यन्त लोकप्रिय भजन है जिसकी रचना १५वीं शताब्दी के सन्त नरसी मेहता ने की थी। यह गुजराती भाषा में है। महात्मा गांधी के नित्य की प्रार्थना में यह भजन भी सम्मिलित था। इस भजन में वैष्णव जनों के लिए उत्तम आदर्श और वृत्ति क्या हो, इसका वर्णन है।
વૈષ્ણવ જન તો તેને કહિયે જે
પીડ પરાઈ જાણે રે
પર દુ:ખે ઉપકાર કરે તો યે
મન અભિમાન ન આણે રે. ॥ધૃ॥
वैष्णव जन तो तेने कहिये
जे पीड परायी जाणे रे ।
पर दुःखे उपकार करे तो ये
मन अभिमान न आणे रे ॥
उन लोगों को वैष्णव कहो,
जो दूसरों की पीड़ा अनुभव करें।
जो दुःखी हैं उनकी सहायता करें,
लेकिन अपने मन में कभी भी अहंकार न आने दें॥
સકળ લોકમાં સહુને વંદે,
નિંદા ન કરે કેની રે
વાચ કાછ મન નિશ્ચલ રાખે
ધન ધન જનની તેની રે. ॥૧॥
सकळ लोकमां सहुने वंदे,
निंदा न करे केनी रे ।
वाच काछ मन निश्चल राखे,
धन धन जननी तेनी रे ॥
जो पूरे विश्व का सम्मान करें,
किसी की निंदा न करें।
अपने शब्दों, कार्यों और विचारों को शुद्ध रखें,
उनकी माता धन्य है॥
સમદૃષ્ટિ ને તૃષ્ણા ત્યાગી
પરસ્ત્રી જેને માત રે
જિહ્વા થકી અસત્ય ન બોલે
પરધન નવ ઝાલે હાથ રે. ॥૨॥
समदृष्टि ने तृष्णा त्यागी,
परस्त्री जेने मात रे ।
जिह्वा थकी असत्य न बोले,
परधन नव झाले हाथ रे ॥
जो सभी को समदृष्टि से देखें, तृष्णा का त्याग करें,
पर-स्त्री को माँ जानें।
जिनकी जीभ कभी मिथ्या वचन नहीं बोले,
जिनके हाथ कभी दूसरों के धन को नहीं छूते॥
મોહ માયા વ્યાપે નહિ જેને,
દૃઢ વૈરાગ્ય જેના મનમાં રે
રામ નામ શુ તાળી રે લાગી
સકળ તીરથ તેના તનમાં રે. ॥૩॥
मोह माया व्यापे नहि जेने,
दृढ़ वैराग्य जेना मनमां रे ।
रामनाम शु ताळी रे लागी,
सकळ तीरथ तेना तनमां रे ॥
जो सांसारिक मोहों के आगे नहीं झुकते,
जिन के मन में दृढ़ वैराग्य है।
जो राम के नाम से मोहित हैं,
सभी तीर्थ स्थान इन्हीं में समाए हुए हैं॥
વણ લોભી ને કપટ રહિત છે,
કામ ક્રોધ નિવાર્યાં રે
ભણે નરસૈયો તેનું દર્શન કરતાં
કુળ એકોતેર તાર્યાં રે. ॥૪॥
वणलोभी ने कपटरहित छे,
काम क्रोध निवार्या रे ।
भणे नरसैयो तेनुं दरसन करतां,
कुळ एकोतेर तार्या रे ॥
जिन्होंने लोभ और छल को छोड़ दिया है,
जो काम और क्रोध से दूर रहते हैं।
नरसी कहते हैं: मैं ऐसी आत्मा से मिलकर आभारी रहूँगा,
जिनके पुण्य से उनका पूरी कुल मुक्त हो जाती है॥