"कर्कोटा वंश": अवतरणों में अंतर
रोहित साव27 (वार्ता | योगदान) छो Arpit kayasth Saxena (Talk) के संपादनों को हटाकर Aswani1976 के आखिरी अवतरण को पूर्ववत किया टैग: वापस लिया |
No edit summary टैग: Reverted मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन |
||
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
{{विकिफ़ाइ|date=जून 2017}} |
{{विकिफ़ाइ|date=जून 2017}} |
||
{{स्रोतहीन|date=जून 2017}} |
{{स्रोतहीन|date=जून 2017}} |
||
कार्कोट (598 ई - 855 ई) :- |
===कार्कोट (598 ई - 855 ई)=== :- |
||
कार्कोट कायस्थ क्षत्रिय राजवंश की स्थापना दुर्र्लभवर्धन (598 CE) ने की थी। दुर्र्लभवर्धन गोन्दडिया वंश के अंतिम राजा बालादित्य के राज्य में अधिकारी थे। बलादित्य ने अपनी बेटी अनांगलेखा का विवाह कायस्थ जाति के एक सुन्दर लेकिन गैर-शाही व्यक्ति दुर्र्लभवर्धन के साथ किया था। |
कार्कोट कायस्थ क्षत्रिय राजवंश की स्थापना दुर्र्लभवर्धन (598 CE) ने की थी। दुर्र्लभवर्धन गोन्दडिया वंश के अंतिम राजा बालादित्य के राज्य में अधिकारी थे। बलादित्य ने अपनी बेटी अनांगलेखा का विवाह कायस्थ जाति के एक सुन्दर लेकिन गैर-शाही व्यक्ति दुर्र्लभवर्धन के साथ किया था। |
11:50, 4 फ़रवरी 2021 का अवतरण
इस लेख में ज्ञानकोष के लिये अनुपयुक्त सामग्री हो सकती है। कृपया इस विषय में वार्ता पृष्ठ पर चर्चा करें। (जून 2017) |
इस लेख को विकिफ़ाइ करने की आवश्यकता हो सकती है ताकि यह विकिपीडिया के गुणवत्ता मानकों पर खरा उतर सके। कृपया प्रासंगिक आन्तरिक कड़ियाँ जोड़कर, या लेख का लेआउट सुधार कर सहायता प्रदान करें। (जून 2017) अधिक जानकारी के लिये दाहिनी ओर [दिखाएँ] पर क्लिक करें।
|
इस लेख में सन्दर्भ या स्रोत नहीं दिया गया है। कृपया विश्वसनीय सन्दर्भ या स्रोत जोड़कर इस लेख में सुधार करें। स्रोतहीन सामग्री ज्ञानकोश के उपयुक्त नहीं है। इसे हटाया जा सकता है। (जून 2017) स्रोत खोजें: "कर्कोटा वंश" – समाचार · अखबार पुरालेख · किताबें · विद्वान · जेस्टोर (JSTOR) |
===कार्कोट (598 ई - 855 ई)=== :-
कार्कोट कायस्थ क्षत्रिय राजवंश की स्थापना दुर्र्लभवर्धन (598 CE) ने की थी। दुर्र्लभवर्धन गोन्दडिया वंश के अंतिम राजा बालादित्य के राज्य में अधिकारी थे। बलादित्य ने अपनी बेटी अनांगलेखा का विवाह कायस्थ जाति के एक सुन्दर लेकिन गैर-शाही व्यक्ति दुर्र्लभवर्धन के साथ किया था।
इस कायस्थ क्षत्रिय वंश के राजा ललितादित्य मुक्तापीड़, आठवीं सदी, में कश्मीर पर शासन कर रहे थे। साहस और पराक्रम की प्रतिमूर्ति सम्राट ललितादित्य मुक्तापीड का नाम कश्मीर के इतिहास में सर्वोच्च स्थान पर है। उसका सैंतीस वर्ष का राज्य उसके सफल सैनिक अभियानों, उसके अद्भुत कला-कौशल-प्रेम और विश्व विजेता बनने की उसकी चाह से पहचाना जाता है। लगातार बिना थके युद्धों में व्यस्त रहना और रणक्षेत्र में अपने अनूठे सैन्य कौशल से विजय प्राप्त करना उसके स्वभाव का साक्षात्कार है। ललितादित्य ने पीकिंग को भी जीता और 12 वर्ष के पश्चात् कश्मीर लौटा।कश्मीर उस समय सबसे शक्तिशाली राज्य था। उत्तर में तिब्बत से लेकर द्वारिका और उड़ीसा के सागर तट और दक्षिण तक, पूर्व में बंगाल, पश्चिम में विदिशा और मध्य एशिया तक कश्मीर का राज्य फैला हुआ था जिसकी राजधानी प्रकरसेन नगर थी। ललितादित्य की सेना की पदचाप अरण्यक (ईरान) तक पहुंच गई थी।