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करमा का इतिहास
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यह दिन इनके लिए प्रकृति की पूजा का है। ऐसे में ये सभी उल्लास से भरे होते हैं। परम्परा के मुताबिक, खेतों में बोई गई फसलें बर्बाद न हों, इसलिए प्रकृति की पूजा की जाती है। इस मौके पर एक बर्तन में [[बालू]] भरकर उसे बहुत ही कलात्मक तरीके से सजाया जाता है। पर्व शुरू होने के कुछ दिनों पहले उसमें [[जौ]] डाल दिए जाते हैं, इसे 'जावा' कहा जाता है। यही जावा बहनें अपने बालों में गूंथकर झूमती-नाचती हैं। बहनें अपने भाइयों की सलामती के लिए इस दिन व्रत रखती हैं। इनके भाई 'करम' वृक्ष की डाल लेकर घर के आंगन या खेतों में गाड़ते हैं। इसे वे प्रकृति के आराध्य देव मानकर पूजा करते हैं। पूजा समाप्त होने के बाद वे इस डाल को पूरे धार्मिक रीति‍ से तालाब, पोखर, नदी आदि में विसर्जित कर देते हैं।
यह दिन इनके लिए प्रकृति की पूजा का है। ऐसे में ये सभी उल्लास से भरे होते हैं। परम्परा के मुताबिक, खेतों में बोई गई फसलें बर्बाद न हों, इसलिए प्रकृति की पूजा की जाती है। इस मौके पर एक बर्तन में [[बालू]] भरकर उसे बहुत ही कलात्मक तरीके से सजाया जाता है। पर्व शुरू होने के कुछ दिनों पहले उसमें [[जौ]] डाल दिए जाते हैं, इसे 'जावा' कहा जाता है। यही जावा बहनें अपने बालों में गूंथकर झूमती-नाचती हैं। बहनें अपने भाइयों की सलामती के लिए इस दिन व्रत रखती हैं। इनके भाई 'करम' वृक्ष की डाल लेकर घर के आंगन या खेतों में गाड़ते हैं। इसे वे प्रकृति के आराध्य देव मानकर पूजा करते हैं। पूजा समाप्त होने के बाद वे इस डाल को पूरे धार्मिक रीति‍ से तालाब, पोखर, नदी आदि में विसर्जित कर देते हैं।


कर्मा पूजा की कथा और इतिहास



कर्मा पूजा पर्व आदिवासी समाज का प्रचलित लोक पर्व है इस त्यवहार में एक विशेष नृत्य किया जाता है जिसे कर्मा नृत्य कहते हैं । यह पर्व हिन्दू पंचांग के भादों मॉस की  एकादशी को झारखण्ड, छत्तीसगढ़, सहित देश विदेश में पुरे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है, इस अवसर पर श्रद्धालु उपवास के पश्चात करमवृक्ष का या उसके शाखा को घर के आंगन में रोपित करते है और दूसरे दिन कुल देवी देवता को नवान्न देकर ही उसका उपभोग शुरू होता है। कर्मा नृत्य को नई फ़सल आने की खुशी में लोग नाच गा कर मनाया जाता है।

कर्मा को आदिवासी संस्कृति  का प्रतीक भी माना जाता है।

कर्मा नृत्य छत्तीसगढ़  और झारखण्ड की लोक-संस्कृति का पर्याय भी है। छत्तीसगढ़ और झारखण्ड के आदिवासी और ग़ैर-आदिवासी सभी इसे लोक मांगलिक नृत्य मानते हैं।  कर्मा पूजा नृत्य, सतपुड़ा और विंध्य की पर्वत श्रेणियों के बीच सुदूर गावों में विशेष प्रचलित है। शहडोल, मंडला के गोंड और बैगा एवं बालाघाट और सिवनी के कोरकू तथा परधान जातियाँ कर्मा के ही कई रूपों को आधार बना कर नाचती हैं। बैगा कर्मा, गोंड़ कर्मा और भुंइयाँ कर्मा आदि वासीय  नृत्य माना जाता है। छत्तीसगढ़ के लोक नृत्य में ‘करमसेनी देवी’ का अवतार गोंड के घर में हुआ ऐसा माना गया है, एक अन्य गीत में घसिया के घर में  माना गया है।

उपवास

कर्मा की मनौती मानने वाले दिन भर उपवास रख कर अपने सगे-सम्बंधियों व अड़ोस पड़ोसियों को निमंत्रण देता है तथा शाम को कर्मा वृक्ष की पूजा कर टँगिये कुल्हारी के एक ही वार से कर्मा वृक्ष के डाल को काटा दिया जाता है और उसे ज़मीन पर गिरने नहीं दिया जाता। तदोपरांत उस डाल को अखरा में गाड़कर स्त्री-पुरुष बच्चे रात भर नृत्य करते हुए उत्सव मानते  हैं और सुबह पास के किसी नदी में विसर्जित कर दिया जाता हैं। इस अवसर पर एक विशेष  गीत भी गाये जाते हैं-

” उठ उठ करमसेनी, पाही गिस विहान हो।

चल चल जाबो अब गंगा असनांद हो।।

कर्मा पूजा कथा इतिहास

कहा जाता है कर्मा धर्मा दो भाई था दोनों बहुत मेहनती व दयावान थे कुछ दिनों बाद कर्मा की शादी  हो गयी उसकी पत्नी अधर्मी और दूसरों को परेशान  करने वाली विचार की थी। यहाँ तक की वह धरती माँ के ऊपर ही माड़ पैसा देदी थी जिससे कर्मा को बहुत दुःख हुआ। वह धरती माँ के पीरा से बहुत दुखी था और इससे नाराज होकर वह घर से चला गया। उसके जाते ही सभी के कर्म किसमत भाग्य चला गया और वहां के लोग दुखी रहने लगे।

धर्मा से लोगों की परेशानी नहीं देखि गयी और वह अपने भाई को खोजने निकल पड़ा। कुछ दूर चलने पर उसे प्यास लग गयी आस पास कही पानी न था दूर एक नदी दिखाई दिया वहां जाने पर देखा की उसमे पानी नहीं है। नदी ने धर्मा से कहा की जबसे कर्मा भाई यहाँ से गए हैं तबसे हमारा कर्म फुट गए है यहाँ का पानी सुख गया है , अगर वे मिले तो उनसे कहा देना। कुछ दूर जाने पर एक आम का पेड़ मिला उसके सारे फल सड़े हुवे थे, उसने भी धर्म से कहा की जब से कर्मा गए है तब से हमारा फल ऐसे ही बर्बाद हो जाते है अगर वे मिले तो उनसे कह दीजियेगा और उनसे उपाय पूछ कर बताईयेगा।  धर्म वहां से आगे बढ़ गया आगे उसे एक वृद्ध व्यक्ति मिला उन्होंने बताया की जबसे कर्मा यहांसे गया है उनके सर के बोझ तबतक नहीं उतरते जबतक ३ -४ लोग मिलकर न उतारे सो यह बता कर्मा से बता करा निवारण के उपाय बताना । धर्म वहाँ से भी आगे बढ़ गया आगे उसे एक महिला मिली उसने बताई की कर्म से पूछ कर बताना की जबसे वो गए हैं खाना बनाने के बाद बर्तन हाथ से चिपक जाते है सो इसके लिए क्या उपाय करें। धर्म आगे चल पड़ा, चलते चलते एक रेगिस्तान में जा पहुंचा वहां उसने देखा की कर्मा धुप व गर्मी से परेशान है उसके शरीर पर फोड़े परे हैं और वह ब्याकुल हो रहा है। धर्म से उसकी हालत देखि नहीं गयी और उसने करम से आग्रह किया की वो घर वापस चले, तो कर्मा ने कहा की मैं उस घर कैसे जाऊ जहाँ मेरी पत्नी जमीं पर माङ फेक देती है तब धर्म ने वचन दिया की आज के बाद कोई भी महिला जमीं पर माङ नहीं फेंकेगी। फिर दोनों भाई वापस घर की ओर चला तो उसे सबसे पहले वह महिला मिली उससे कर्मा ने कहा की तुमने किसी भूखे को खाना नहीं खिलाया था इसी लिए तुम्हारे साथ ऐसा हुवा आगे कभी ऐसा मत करना सब ठीक हो जायेगा। अंत में नदी मिला तो कर्मा ने कहा की तुमने किसी प्यासे को साफ पानी नहीं दिया आगे कभी किसी को गन्दा पानी मत पिलाना आगे कभी ऐसा मत करना तुम्हारे पास कोई आये तो साफ पानी पिलाना। इस प्रकार उसने सबको उसका कर्म बताते हुवे घर आया और पोखर में कर्म का डाल लगा कर पूजा किया उसके बाद पुरे इलाके में पुनः खुशाली लोट आई और सभी आनंद से रहने लगे। कहते है की  उसी को याद कर आज कर्मा पर्व मनाया जाता है ।

एक अन्य कथा के अनुसार

कर्मा पूजा नृत्य के साथ कई लोग इस पूजा की अधिष्ठात्री देवी ‘करमसेनी देवी ‘ को मानते हैं, तो कई लोग विश्वकर्मा भगवान को इसका अराध्य देवता मानते हैं। ज्यादातर लोग इसकी कथा को राजा कर्म से जोड़ते हैं, जिसने विपत्ति- परेशानियों  से छुटकारा पाने के उपरांत इस कर्मा पूजा उत्सव नृत्य का आयोजन पहलीवार किया था। आदिवासी लोग कर्मवीर हैं जो कृषि कार्य को संपन्न करने के बाद उपयुक्त अवसर पर यह उत्सव मनाते है।

इस प्रकार कर्मा पूजा को लेकर और भी कई कहानियां है जो और ये सभी प्रकृति के प्रति समर्पित है जैसे इस कथा का सार प्रदुषण न फैलाये मन जा सकता है।

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== इन्हें भी देखें ==
== इन्हें भी देखें ==
* [[करम नाच]]
* [[करम नाच]]

08:39, 9 सितंबर 2019 का अवतरण

करम झारखण्ड और छत्तीसगढ़ का एक प्रमुख त्यौहार है। मुख्य रूप से यह त्यौहार भादो (लगभग सितम्बर) मास की एकादशी के दिन और कुछेक स्थानों पर उसी के आसपास मनाया जाता है। इस मौके पर लोग प्रकृति की पूजा कर अच्छे फसल की कामना करते हैं, साथ ही बहनें अपने भाइयों की सलामती के लिए प्रार्थना करती हैं। करमा पर झारखंड के लोग ढोल और मांदर की थाप पर झूमते-गाते हैं।

यह दिन इनके लिए प्रकृति की पूजा का है। ऐसे में ये सभी उल्लास से भरे होते हैं। परम्परा के मुताबिक, खेतों में बोई गई फसलें बर्बाद न हों, इसलिए प्रकृति की पूजा की जाती है। इस मौके पर एक बर्तन में बालू भरकर उसे बहुत ही कलात्मक तरीके से सजाया जाता है। पर्व शुरू होने के कुछ दिनों पहले उसमें जौ डाल दिए जाते हैं, इसे 'जावा' कहा जाता है। यही जावा बहनें अपने बालों में गूंथकर झूमती-नाचती हैं। बहनें अपने भाइयों की सलामती के लिए इस दिन व्रत रखती हैं। इनके भाई 'करम' वृक्ष की डाल लेकर घर के आंगन या खेतों में गाड़ते हैं। इसे वे प्रकृति के आराध्य देव मानकर पूजा करते हैं। पूजा समाप्त होने के बाद वे इस डाल को पूरे धार्मिक रीति‍ से तालाब, पोखर, नदी आदि में विसर्जित कर देते हैं।

कर्मा पूजा की कथा और इतिहास


कर्मा पूजा पर्व आदिवासी समाज का प्रचलित लोक पर्व है इस त्यवहार में एक विशेष नृत्य किया जाता है जिसे कर्मा नृत्य कहते हैं । यह पर्व हिन्दू पंचांग के भादों मॉस की  एकादशी को झारखण्ड, छत्तीसगढ़, सहित देश विदेश में पुरे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है, इस अवसर पर श्रद्धालु उपवास के पश्चात करमवृक्ष का या उसके शाखा को घर के आंगन में रोपित करते है और दूसरे दिन कुल देवी देवता को नवान्न देकर ही उसका उपभोग शुरू होता है। कर्मा नृत्य को नई फ़सल आने की खुशी में लोग नाच गा कर मनाया जाता है।

कर्मा को आदिवासी संस्कृति  का प्रतीक भी माना जाता है।

कर्मा नृत्य छत्तीसगढ़  और झारखण्ड की लोक-संस्कृति का पर्याय भी है। छत्तीसगढ़ और झारखण्ड के आदिवासी और ग़ैर-आदिवासी सभी इसे लोक मांगलिक नृत्य मानते हैं।  कर्मा पूजा नृत्य, सतपुड़ा और विंध्य की पर्वत श्रेणियों के बीच सुदूर गावों में विशेष प्रचलित है। शहडोल, मंडला के गोंड और बैगा एवं बालाघाट और सिवनी के कोरकू तथा परधान जातियाँ कर्मा के ही कई रूपों को आधार बना कर नाचती हैं। बैगा कर्मा, गोंड़ कर्मा और भुंइयाँ कर्मा आदि वासीय  नृत्य माना जाता है। छत्तीसगढ़ के लोक नृत्य में ‘करमसेनी देवी’ का अवतार गोंड के घर में हुआ ऐसा माना गया है, एक अन्य गीत में घसिया के घर में  माना गया है।

उपवास

कर्मा की मनौती मानने वाले दिन भर उपवास रख कर अपने सगे-सम्बंधियों व अड़ोस पड़ोसियों को निमंत्रण देता है तथा शाम को कर्मा वृक्ष की पूजा कर टँगिये कुल्हारी के एक ही वार से कर्मा वृक्ष के डाल को काटा दिया जाता है और उसे ज़मीन पर गिरने नहीं दिया जाता। तदोपरांत उस डाल को अखरा में गाड़कर स्त्री-पुरुष बच्चे रात भर नृत्य करते हुए उत्सव मानते  हैं और सुबह पास के किसी नदी में विसर्जित कर दिया जाता हैं। इस अवसर पर एक विशेष  गीत भी गाये जाते हैं-

” उठ उठ करमसेनी, पाही गिस विहान हो।

चल चल जाबो अब गंगा असनांद हो।।

कर्मा पूजा कथा इतिहास

कहा जाता है कर्मा धर्मा दो भाई था दोनों बहुत मेहनती व दयावान थे कुछ दिनों बाद कर्मा की शादी  हो गयी उसकी पत्नी अधर्मी और दूसरों को परेशान  करने वाली विचार की थी। यहाँ तक की वह धरती माँ के ऊपर ही माड़ पैसा देदी थी जिससे कर्मा को बहुत दुःख हुआ। वह धरती माँ के पीरा से बहुत दुखी था और इससे नाराज होकर वह घर से चला गया। उसके जाते ही सभी के कर्म किसमत भाग्य चला गया और वहां के लोग दुखी रहने लगे।

धर्मा से लोगों की परेशानी नहीं देखि गयी और वह अपने भाई को खोजने निकल पड़ा। कुछ दूर चलने पर उसे प्यास लग गयी आस पास कही पानी न था दूर एक नदी दिखाई दिया वहां जाने पर देखा की उसमे पानी नहीं है। नदी ने धर्मा से कहा की जबसे कर्मा भाई यहाँ से गए हैं तबसे हमारा कर्म फुट गए है यहाँ का पानी सुख गया है , अगर वे मिले तो उनसे कहा देना। कुछ दूर जाने पर एक आम का पेड़ मिला उसके सारे फल सड़े हुवे थे, उसने भी धर्म से कहा की जब से कर्मा गए है तब से हमारा फल ऐसे ही बर्बाद हो जाते है अगर वे मिले तो उनसे कह दीजियेगा और उनसे उपाय पूछ कर बताईयेगा।  धर्म वहां से आगे बढ़ गया आगे उसे एक वृद्ध व्यक्ति मिला उन्होंने बताया की जबसे कर्मा यहांसे गया है उनके सर के बोझ तबतक नहीं उतरते जबतक ३ -४ लोग मिलकर न उतारे सो यह बता कर्मा से बता करा निवारण के उपाय बताना । धर्म वहाँ से भी आगे बढ़ गया आगे उसे एक महिला मिली उसने बताई की कर्म से पूछ कर बताना की जबसे वो गए हैं खाना बनाने के बाद बर्तन हाथ से चिपक जाते है सो इसके लिए क्या उपाय करें। धर्म आगे चल पड़ा, चलते चलते एक रेगिस्तान में जा पहुंचा वहां उसने देखा की कर्मा धुप व गर्मी से परेशान है उसके शरीर पर फोड़े परे हैं और वह ब्याकुल हो रहा है। धर्म से उसकी हालत देखि नहीं गयी और उसने करम से आग्रह किया की वो घर वापस चले, तो कर्मा ने कहा की मैं उस घर कैसे जाऊ जहाँ मेरी पत्नी जमीं पर माङ फेक देती है तब धर्म ने वचन दिया की आज के बाद कोई भी महिला जमीं पर माङ नहीं फेंकेगी। फिर दोनों भाई वापस घर की ओर चला तो उसे सबसे पहले वह महिला मिली उससे कर्मा ने कहा की तुमने किसी भूखे को खाना नहीं खिलाया था इसी लिए तुम्हारे साथ ऐसा हुवा आगे कभी ऐसा मत करना सब ठीक हो जायेगा। अंत में नदी मिला तो कर्मा ने कहा की तुमने किसी प्यासे को साफ पानी नहीं दिया आगे कभी किसी को गन्दा पानी मत पिलाना आगे कभी ऐसा मत करना तुम्हारे पास कोई आये तो साफ पानी पिलाना। इस प्रकार उसने सबको उसका कर्म बताते हुवे घर आया और पोखर में कर्म का डाल लगा कर पूजा किया उसके बाद पुरे इलाके में पुनः खुशाली लोट आई और सभी आनंद से रहने लगे। कहते है की  उसी को याद कर आज कर्मा पर्व मनाया जाता है ।

एक अन्य कथा के अनुसार

कर्मा पूजा नृत्य के साथ कई लोग इस पूजा की अधिष्ठात्री देवी ‘करमसेनी देवी ‘ को मानते हैं, तो कई लोग विश्वकर्मा भगवान को इसका अराध्य देवता मानते हैं। ज्यादातर लोग इसकी कथा को राजा कर्म से जोड़ते हैं, जिसने विपत्ति- परेशानियों  से छुटकारा पाने के उपरांत इस कर्मा पूजा उत्सव नृत्य का आयोजन पहलीवार किया था। आदिवासी लोग कर्मवीर हैं जो कृषि कार्य को संपन्न करने के बाद उपयुक्त अवसर पर यह उत्सव मनाते है।

इस प्रकार कर्मा पूजा को लेकर और भी कई कहानियां है जो और ये सभी प्रकृति के प्रति समर्पित है जैसे इस कथा का सार प्रदुषण न फैलाये मन जा सकता है।


इन्हें भी देखें

बाहरी कडियाँ