"आर्य प्रवास सिद्धान्त": अवतरणों में अंतर
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'''आर्यन प्रवास सिद्धांत''' (English - Indo-Aryan Migration Theory) मुख्यतः ब्रिटिश |
'''आर्यन प्रवास सिद्धांत''' (English - Indo-Aryan Migration Theory) मुख्यतः ब्रिटिश-जर््मन इतिहासकारों की मान््यता थी कि भारतीय ''आर्य'' संबोधन का यूरोपीय आर्यन जाति से सम्बन्ध है। भारत में आर्यों का यूरोपीय देशों वा [[मध्य एशिया|मध्य-एशिया]] से आगमन हुआ और भारत में भी अपनी सभ्यता स्थापित की । यह उनके द्वारा किये गए शोध से यह ज्ञात हुआ। |
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उनका मानना था कि भारतीय मूल के कहलाने वाले [[आर्य]] यूरोप से भारत आए और भारत में भी अपनी सभ्यता स्थापित की। यह उनके द्वारा किये गए शोध से यह ज्ञात हुआ। उ |
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⚫ | उपयुक्त सिद्धांत का प्रतिपादन १८वी शताब्दी के अंत में तब किया गया जब यूरोपीय भाषा-परिवार के सिद्धांत की स््थापना हुई। जिसके अंतर्गत, भारतीय भाषाओं में यूरोपीय भाषाओं से कई शाब्दिक समानताएं दिखीं। जैसे घोड़े को ग्रीक में इक्वस eqqus, फ़ारसी में इश्प और संस्कृत में अश्व कहते हैं, भाई को लैटिन-ग्रीक में फ्रेटर (अंग्रेज़ी में फ्रेटर्निटी, Fraternity), फ़ारसी में बिरादर और संस्कृत में ''भ्रातृ'' कहते हैं। इस सिद्धांत की उस समय अर््थात्् १८७० के समय भी आलोचना-स्वीकार््यता दोनो हुई । साथ ही इससे भारतीय-राजनीति में भाषा के आधार पर भेद आना शुरु हो गया - जो पहले भारतीय इतिहास में नहीं देखा गया था । |
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== मुख्य सिद्धांत == |
== मुख्य सिद्धांत == |
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विदेशी विद्वानों के अनुसार आर्यन १८०० से १५०० ईसा पूर्व मध्य एशिया महाद्वीप से भारतीय भूखण्ड में तब प्रविष्ट हुए।<ref>[https://en.wikipedia.org/wiki/Indo-Aryan_Migration_Theory Indo-Aryan Migration Theory], अंग्रेजी विकिपीडिया।</ref> अंग्रेजी शासनकाल में अंग्रेजी इतिहासकारों ने भारतीय संस्कृतादि भाषाओं का अध्ययन किया और वेदों का अध्ययन किया। जिससे उन्हे ज्ञात हुआ कि भारत के मूल निवासी काले रंग के लोग थे। उसी काल में वैदिक आर्य भरत आ गए और अपनी संस्कृति का प्रसार प्रारम्भ किया। वे ऋग्वेद नामक ग्रंथ भी भारत लाए जो उनका सबसे प्राचीन ग्रंथ था।<ref>आर्यों का आदिदेश, लेखक - लक्ष्मीदत्त दीक्षित (विद्यानन्द सरस्वती)</ref> अंग्रेजी विद्वान विलियम जोन्स के अनुसार [[संस्कृत]], [[ग्रीक]], [[लैटिन]], [[पर्शियन]], [[जर्मन]] आदि भाषाओं का मूल एक ही |
विदेशी विद्वानों के अनुसार आर्यन १८०० से १५०० ईसा पूर्व मध्य एशिया महाद्वीप से भारतीय भूखण्ड में तब प्रविष्ट हुए।<ref>[https://en.wikipedia.org/wiki/Indo-Aryan_Migration_Theory Indo-Aryan Migration Theory], अंग्रेजी विकिपीडिया।</ref> अंग्रेजी शासनकाल में अंग्रेजी इतिहासकारों ने भारतीय संस्कृतादि भाषाओं का अध्ययन किया और वेदों का अध्ययन किया। जिससे उन्हे ज्ञात हुआ कि भारत के मूल निवासी काले रंग के लोग थे। उसी काल में वैदिक आर्य भरत आ गए और अपनी संस्कृति का प्रसार प्रारम्भ किया। वे ऋग्वेद नामक ग्रंथ भी भारत लाए जो उनका सबसे प्राचीन ग्रंथ था।<ref>आर्यों का आदिदेश, लेखक - लक्ष्मीदत्त दीक्षित (विद्यानन्द सरस्वती)</ref> अंग्रेजी विद्वान विलियम जोन्स के अनुसार [[संस्कृत]], [[ग्रीक]], [[लैटिन]], [[पर्शियन]], [[जर्मन]] आदि भाषाओं का मूल एक ही है, हालांकि संस्कृत उनसे कहीं विकसित है।<ref>[https://en.wikipedia.org/wiki/Indo-Aryan_Migration_Theory#Development_of_the_Aryan_Migration_theory Development of the Aryan Migration theory], विकिपीडिया पृष्ठ</ref> |
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== शोध == |
=== शोध === |
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भाषा की दृष्टि से अंग्रेजी सिद्धांतानुसार संस्कृत तथा युरोपिय भाषाओं में बहुंत मेल हैं। भारतीय संस्कृति |
भाषा की दृष्टि से अंग्रेजी सिद्धांतानुसार संस्कृत तथा युरोपिय भाषाओं में बहुंत मेल हैं। भारतीय संस्कृति के देवी-देवताओं के नामों में भी युरोपीय (ग्रीक-रोमन) मेल दिखे। साथ ही जैनेटिक जांच से भी भारतीय जातियों से योरोप की मेल दिखी।<ref>[https://en.wikipedia.org/wiki/Indo-Aryan_Migration_Theory#Fundamentals_of_the_Indo-Aryan_Migration_theory Fundamentals of the Indo-Aryan Migration theory], विकिपीडिया पृष्ठ।</ref> |
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इससे भाषात्मक, जैनेटिक तथा सांस्कृतिक मेल संभव है।<ref>[https://hindi.rbth.com/arts/history/2017/03/30/kyaa-pshcim-ruusii-aur-bhaartiiy-sbhytaaon-kaa-muul-sthaan-hai_730641 क्या आर्य युरोप से भारत आए?]</ref> |
इससे भाषात्मक, जैनेटिक तथा सांस्कृतिक मेल संभव है।<ref>[https://hindi.rbth.com/arts/history/2017/03/30/kyaa-pshcim-ruusii-aur-bhaartiiy-sbhytaaon-kaa-muul-sthaan-hai_730641 क्या आर्य युरोप से भारत आए?]</ref> |
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इसके कुछ प्रमाण ईरानी पाठ्यपुस्तकों में प्राप्य हैं। |
इसके कुछ प्रमाण आधुनिक ईरानी पाठ्यपुस्तकों में प्राप्य हैं। |
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'''चन्द हज़ार साल पेश अज़ ज़माना माज़ीरा बुजुर्गी अज़ निज़ाद आर्या अज़ कोहहाय कफ काज़ गुज़िश्त: बर सर ज़मीने कि इमरोज़ मस्कने मास्त क़दम निहादन्द। ब चू आबो हवाय ई सरज़मीरां मुआफ़िक़ तब'अ ख़ुद याफ़्तन्द दरीं ज़ा मस्कने गुज़ीदन्द व आं रा बनाम ख़ेश ईरान ख़्यादन्द।'''<ref>आर्यों का आदिदेश पृ० १३</ref> |
'''चन्द हज़ार साल पेश अज़ ज़माना माज़ीरा बुजुर्गी अज़ निज़ाद आर्या अज़ कोहहाय कफ काज़ गुज़िश्त: बर सर ज़मीने कि इमरोज़ मस्कने मास्त क़दम निहादन्द। ब चू आबो हवाय ई सरज़मीरां मुआफ़िक़ तब'अ ख़ुद याफ़्तन्द दरीं ज़ा मस्कने गुज़ीदन्द व आं रा बनाम ख़ेश ईरान ख़्यादन्द।'''<ref>आर्यों का आदिदेश पृ० १३</ref> |
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== आर्यन आक्रमण == |
=== आर्यन आक्रमण === |
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इस उपसिद्धांत के अनुसार वैदिक संस्कृति भारतीय प्राचीन संस्कृति न होकर [[सिन्धु घाटी की सभ्यता|सिन्धु घाटी की संस्कृति]] भारत की प्राचीन संस्कृति है।<ref |
इस उपसिद्धांत के अनुसार वैदिक संस्कृति भारतीय प्राचीन संस्कृति न होकर [[सिन्धु घाटी की सभ्यता|सिन्धु घाटी की संस्कृति]] भारत की प्राचीन संस्कृति है।<ref name=":0" /> जो पुर्व से ही उन्नत संस्कृति थी। इस बात के प्रमाण तब मिले जब वहाँ सन् १९२० में खुदाई हुई। आर्यों ने उनपर आक्रमण कर दिया था। आर्यों की अधिक विकसितता के कारण [[हड़प्पा]], [[मोहनजो-दड़ो]] समाप्त हो गए। यह सिद्धांत बहुंत समय तक मान्य रहा परंतु कालांतर के शोध के पश्चात् इसे खारिज़ कर दिया गया क्योंकि खुदाई से प्राप्त कंकालों में कहीं भी लड़ाई के चोंट आदि प्राप्य नहीं हैं। उनपर प्राकृतिक आपदा के संकेत हैं। |
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अन्य रूपों में मैक्समुलर आदि इतिहासकारों ने वैदिक अध्ययन के बिनाह पर सिद्धांत दिया था कि भारतीय मूल के लोग कृष्णगर्भ (काले थे तथा अनासः (चपटी नाक के) थे। जिनपर आर्यों ने आक्रमण कर उन्हें अपना दस्यु (दास) बना लिया और उनपर अत्याचार करते रहे।<ref>आर्यों का आदिदेश</ref> |
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हाँलांकि आज योरोप में इस सिद्धांत को ख़ारिज़ किया चुका है, परन्तु पूर्ण् रूप में नहीं । इस सिद्धांत की आलोचना का विशेष कारण यह है कि सिद्धांत पूर्णरूप से अंग्रेजी इतिहासकारों के द्वारा प्रतिपादित किया गया<ref>[[:en:Indo-Aryan_Migration_Theory|Indo-Aryan Migration]] उपयुक्त अंग्रेजी विकिपीडिया के लेख से सिद्ध है कि यह सिद्धांत पश्चिम में बहुंत प्रसिद्ध है।</ref> जिनका कहना था कि वह भारतीय तथा यूरोपीय अध्ययन के माध्यम से ही इस बात पर जोर दे रहे हैं।<ref>[https://hindi.rbth.com/arts/history/2017/03/30/kyaa-pshcim-ruusii-aur-bhaartiiy-sbhytaaon-kaa-muul-sthaan-hai_730641 क्या आर्य युरोप से भारत आए?] Rbth.com</ref> ध््यान दें कि सिद्धात के प्रस्तावकों में से मुख्य, मैक्समूलर कभी भारत नहीं आया । |
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बाद में मैक्समुलर पर अनेक आरोपप्रत्यारोप उनके लेखों के कारण हुए। भारतीय विद्वानोंं के अनुसार वे यह सब अंग्रेजों के कहे अनुसार कर रहे थे। |
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== आर्यन आक्रमण या प्रयाण - विरोधी तर््क == |
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इस उपसिद्धांत के अनुसार, [[सिन्धु घाटी की सभ्यता|सिन्धु घाटी की संस्कृति]] भारत की प्राचीन संस्कृति है,<ref name=":0">मोहनजो-दड़ो से प्राप्त एक मुद्रा जिसमें वैदिक ऋचानुसार चित्र बना है, उसका विवरण कुछ इस प्रकार है "Photostat of plate no. CXII Seal No. 387 from the excavations of Mohenjo-Daro. (From Mohenjo-Daro And The Indus Civilization, Edited by Sir John Marshall, Cambridge 1931. इसमें चित्रित चित्र ऋग्वेद १|१६४|२० की ऋचा '''द्वा सुपर्णा...''' तथा [[श्रीमद्भागवत]] ११|११|०६ का श्लोक '''सुपर्णावेतौ सदृशौ सखायौ...''' से मेल खाता है जो वैदिक तथा सिन्धु के बीच संबन्ध दर्शाता है।</ref> जो पुर्व से ही उन्नत संस्कृति थी और वैदिक आर्यों ने उनपर आक्रमण कर दिया था। आर्यों की अधिक विकसितता के कारण [[हड़प्पा]], [[मोहनजो-दड़ो]] समाप्त हो गए। यह सिद्धांत बहुंत समय तक मान्य रहा परंतु कालांतर के शोध के पश्चात् इसे खारिज़ कर दिया गया क्योंकि खुदाई से प्राप्त कंकालों में कहीं भी लड़ाई के चोंट आदि प्राप्य नहीं हैं। बाद में मैक्समुलर पर अनेक आरोप-प्रत्यारोप उनके लेखों की निष्पक्षता के कारण हुए । भारतीय विद्वानोंं के अनुसार वे यह सब अंग्रेजों के कहे अनुसार कर रहे थे । यह उनके द्वारा भेजे संदेशों में भी दीखता है - |
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'''It is the root of thir religion and to show them what the root is, I feel I sure it is the only way of uprooting all that have sprung from it during the last three thousand years.'''<ref>Life and letters of Fredrick maxmueller, Vol. 1 Chap. XV, Page 34</ref> (इसके जड़ को (नंगा) दिखा के ही सुनिश्चित किया जा सकता है कि इससे ३००० सालों में जो उगा है उसे कैसे उखाड़ें। ) |
'''It is the root of thir religion and to show them what the root is, I feel I sure it is the only way of uprooting all that have sprung from it during the last three thousand years.'''<ref>Life and letters of Fredrick maxmueller, Vol. 1 Chap. XV, Page 34</ref> (इसके जड़ को (नंगा) दिखा के ही सुनिश्चित किया जा सकता है कि इससे ३००० सालों में जो उगा है उसे कैसे उखाड़ें। ) |
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'''The Ancient Religion Of India Is Doomed. Now If Christianity Does Not Step In Whose Fault Will Be?'''<ref>Ibid Vol 1 Chap. XVI Page 378</ref> (भारत का प्राचीन धर्म झकझोर दिया गया है, अगर अब ईसाई धर्म (यानि मिशनरी) नहीं आते हैं तो किसका दोष होगा ?) |
'''The Ancient Religion Of India Is Doomed. Now If Christianity Does Not Step In Whose Fault Will Be?'''<ref>Ibid Vol 1 Chap. XVI Page 378</ref> (भारत का प्राचीन धर्म झकझोर दिया गया है, अगर अब ईसाई धर्म (यानि मिशनरी) नहीं आते हैं तो किसका दोष होगा ?) |
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डीएनए शोधों में भी उत्तर-दक्षिण के लोगों में भिन्नता नहीं, समानता पाई गई । |
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===विरोधी तर्क === |
===विरोधी तर्क के कुछ बिंदु === |
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भारत की स्वतंत्रता के बाद कई पुरातात्विक शोध हुए। इन शोधों और डीएनए के अध्ययन, भाषाओं की समरूपता आदि शोध इस सिद्धांत से मेल नहीं खाते। कुछ तर्क यहाँ दिए गए हैं - |
भारत की स्वतंत्रता के बाद कई पुरातात्विक शोध हुए। इन शोधों और डीएनए के अध्ययन, भाषाओं की समरूपता आदि शोध इस सिद्धांत से मेल नहीं खाते। कुछ तर्क यहाँ दिए गए हैं - |
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* सबसे पुराने ऋगवेद में आर्य नाम की जाति के आक्रमण का कोई उल्लेख नहीं मिलता |
* सबसे पुराने ऋगवेद में आर्य नाम की जाति-विशेष के आक्रमण का कोई उल्लेख नहीं मिलता है । ऋगवेद में किसी राजा का या किसी शासक को किसी विशेष दिशा या भूमि पर आक्रमण करने का कोई आदेश नहीं मिलता, ना ही अपने राज्य विस्तार का प्रोत्साहन भी । |
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* किसी प्रयाण या आक्रमण का उल्लेख या यहाँ तक कि न गाथा, संस्मरण आदि में, न तो वेदों में और न ही उपनिषद, आरण्यक, दर्शन-ग्रंथों या पुराणों में मिलता है। रोमन गाथाओं में पूर्व की दिशा से हुए प्रयाण की याद और बाइबल में जोशुआ के पुस्तक में ऐसे |
* किसी प्रयाण या आक्रमण का उल्लेख या यहाँ तक कि न गाथा, संस्मरण आदि में, न तो वेदों में और न ही उपनिषद, आरण्यक, दर्शन-ग्रंथों या पुराणों में मिलता है। जबकि, रोमन गाथाओं में पूर्व की दिशा से हुए प्रयाण की याद और बाइबल में जोशुआ के पुस्तक में ऐसे छूटी हुई मातृभूमि की झलक मिलती है। यहूदी तालमुद में भी इसरायली लोगों को अपनी ज़मीन से असीरियाई शासको द्वारा बेदखल करने और फिर दारा द्वारा पुनः अपने देश भेजे जाने का उल्लेख है । अगर ऐसा कोई आक्रमण या यहाँ तक कि प्रयाण (प्रवास) भी होता तो वेदों-पुराणों-ब्राह्मण ग्रंथों-उपनिषदों-दर्शनों-बौद्ध ग्रंथों आदि में उसका उल्लेख मिलता, लेकिन वो नहीं है। |
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* ऋग्वेद के जिन शब्दों के आधार पर यूरोपीय और उनके अनुचर भारतीय विद््वान यह दिखाते थे, उनका मूल अर््थ कुछ और ही है । यह बात पारंपरिक वैदिक शब्दकोशों (निरुक्त, अमरकोश, स्कंदस्वामी भाष्य आदि) में मिलता है । परन्तु यूरोपीय प्रतिपादक इससे या तो अनभिज्ञ दीखते हैं या नज़रअंदाख्त । |
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* ऋगवेद में किसी राजा का या किसी शासक को किसी विशेष दिशा या भूमि पर आक्रमण करने का कोई आदेश नहीं मिलता, ना ही अपने राज्य विस्तार का प्रोत्साहन भी। |
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* भाषाई प्रमाण - भाषा की समरूपता के बारे में मिथक ये है कि संस्कृत और यूरोप (और ईरान) की भाषाओं में समानताएं हैं। हाँलांकि ये सच है कि कुछ शब्द एक जैसे हैं, लेकिन हज़ारों शब्दों में दूर-दूर तक कोई मेल नहीं। साथ ही व्याकरण में तो बहुत भिन्नता है, लेकिन भारत के अन्दर की भाषाओं में कई समानताए हैं। उदाहरण के लिए - |
* भाषाई प्रमाण - भाषा की समरूपता के बारे में मिथक ये है कि संस्कृत और यूरोप (और ईरान) की भाषाओं में समानताएं हैं। हाँलांकि ये सच है कि कुछ शब्द एक जैसे हैं, लेकिन हज़ारों शब्दों में दूर-दूर तक कोई मेल नहीं। साथ ही व्याकरण में तो बहुत भिन्नता है, लेकिन भारत के अन्दर की भाषाओं में कई समानताए हैं। उदाहरण के लिए - |
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** सहायक क्रियाओं का वाक्य का अन्त में आना। है, रहा है, था, होगा, हुआ है ये सब हिन्दी की सहायक क्रियाएं हैं - इनके तमिळ, बांग्ला या कन्नड़ अनुवाद भी अपने वाक्यों के अन्त में आते हैं। |
** सहायक क्रियाओं का वाक्य का अन्त में आना। है, रहा है, था, होगा, हुआ है ये सब हिन्दी की सहायक क्रियाएं हैं - इनके तमिळ, बांग्ला या कन्नड़ अनुवाद भी अपने वाक्यों के अन्त में आते हैं। लेकिन अंग्रेज़ी में am, was, were, has आदि मुख्यतः अपने वाक्यों के मध्य में आते हैं। |
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** वाक्यों का विन्यास - संस्कृत सहित उत्तर और दक्षिण भारत की भाषाओं में वाक्य (कर्ता-कर्म-क्रिया) इस क्रम में होते हैं, यूरोपीय भाषाओं से बहुत अलग। |
** वाक्यों का विन्यास - संस्कृत सहित उत्तर और दक्षिण भारत की भाषाओं में वाक्य (कर्ता-कर्म-क्रिया) इस क्रम में होते हैं, यूरोपीय भाषाओं से बहुत अलग। |
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** Prepositions: संस्कृत और उत्तर-दक्षिण की सभी भारतीय भाषाओं में वाक्यों में अव्यय-विभक्ति संज्ञा के बाद आते हैं, लेकिन यूरोपीय भाषाओं में subjेect से पहले। जैसे अंग्रेज़ी में - From Home, On the table, Before Sunrise, लेकिन हिन्दी में ''घर से, टेबल पर, सूर्योदय से पहले'' आदि। ध्यान दीजिये कि अंग्रेज़ी में 'From' शब्द 'Home' से पहले आता है लेकिन हिन्दी |
** Prepositions: संस्कृत और उत्तर-दक्षिण की सभी भारतीय भाषाओं में वाक्यों में अव्यय-विभक्ति संज्ञा के बाद आते हैं, लेकिन यूरोपीय भाषाओं में subjेect से पहले। जैसे अंग्रेज़ी में - '''From''' Home, '''On''' the table, '''Before''' Sunrise, लेकिन हिन्दी '''में''' ''घर '''से''', टेबल '''पर''', सूर्योदय '''से''' पहले'' आदि। ध्यान दीजिये कि अंग्रेज़ी में 'From' शब्द इसकी संज्ञा 'Home' से पहले आता है लेकिन हिन्दी का 'से', 'घर' के बाद । ऐसा उत्तर-से-दक्षिण तक भारत की सभी भाषाओं में है, लेकिन यूरोप की किसी भाषा में नहीं, फ़ारसी में भी नहीं। |
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== हानि == |
== हानि == |
17:04, 8 सितंबर 2018 का अवतरण
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आर्यन प्रवास सिद्धांत (English - Indo-Aryan Migration Theory) मुख्यतः ब्रिटिश-जर््मन इतिहासकारों की मान््यता थी कि भारतीय आर्य संबोधन का यूरोपीय आर्यन जाति से सम्बन्ध है। भारत में आर्यों का यूरोपीय देशों वा मध्य-एशिया से आगमन हुआ और भारत में भी अपनी सभ्यता स्थापित की । यह उनके द्वारा किये गए शोध से यह ज्ञात हुआ।
उपयुक्त सिद्धांत का प्रतिपादन १८वी शताब्दी के अंत में तब किया गया जब यूरोपीय भाषा-परिवार के सिद्धांत की स््थापना हुई। जिसके अंतर्गत, भारतीय भाषाओं में यूरोपीय भाषाओं से कई शाब्दिक समानताएं दिखीं। जैसे घोड़े को ग्रीक में इक्वस eqqus, फ़ारसी में इश्प और संस्कृत में अश्व कहते हैं, भाई को लैटिन-ग्रीक में फ्रेटर (अंग्रेज़ी में फ्रेटर्निटी, Fraternity), फ़ारसी में बिरादर और संस्कृत में भ्रातृ कहते हैं। इस सिद्धांत की उस समय अर््थात्् १८७० के समय भी आलोचना-स्वीकार््यता दोनो हुई । साथ ही इससे भारतीय-राजनीति में भाषा के आधार पर भेद आना शुरु हो गया - जो पहले भारतीय इतिहास में नहीं देखा गया था ।
मुख्य सिद्धांत
विदेशी विद्वानों के अनुसार आर्यन १८०० से १५०० ईसा पूर्व मध्य एशिया महाद्वीप से भारतीय भूखण्ड में तब प्रविष्ट हुए।[1] अंग्रेजी शासनकाल में अंग्रेजी इतिहासकारों ने भारतीय संस्कृतादि भाषाओं का अध्ययन किया और वेदों का अध्ययन किया। जिससे उन्हे ज्ञात हुआ कि भारत के मूल निवासी काले रंग के लोग थे। उसी काल में वैदिक आर्य भरत आ गए और अपनी संस्कृति का प्रसार प्रारम्भ किया। वे ऋग्वेद नामक ग्रंथ भी भारत लाए जो उनका सबसे प्राचीन ग्रंथ था।[2] अंग्रेजी विद्वान विलियम जोन्स के अनुसार संस्कृत, ग्रीक, लैटिन, पर्शियन, जर्मन आदि भाषाओं का मूल एक ही है, हालांकि संस्कृत उनसे कहीं विकसित है।[3]
शोध
भाषा की दृष्टि से अंग्रेजी सिद्धांतानुसार संस्कृत तथा युरोपिय भाषाओं में बहुंत मेल हैं। भारतीय संस्कृति के देवी-देवताओं के नामों में भी युरोपीय (ग्रीक-रोमन) मेल दिखे। साथ ही जैनेटिक जांच से भी भारतीय जातियों से योरोप की मेल दिखी।[4] इससे भाषात्मक, जैनेटिक तथा सांस्कृतिक मेल संभव है।[5] इसके कुछ प्रमाण आधुनिक ईरानी पाठ्यपुस्तकों में प्राप्य हैं।
चन्द हज़ार साल पेश अज़ ज़माना माज़ीरा बुजुर्गी अज़ निज़ाद आर्या अज़ कोहहाय कफ काज़ गुज़िश्त: बर सर ज़मीने कि इमरोज़ मस्कने मास्त क़दम निहादन्द। ब चू आबो हवाय ई सरज़मीरां मुआफ़िक़ तब'अ ख़ुद याफ़्तन्द दरीं ज़ा मस्कने गुज़ीदन्द व आं रा बनाम ख़ेश ईरान ख़्यादन्द।[6]
आर्यन आक्रमण
इस उपसिद्धांत के अनुसार वैदिक संस्कृति भारतीय प्राचीन संस्कृति न होकर सिन्धु घाटी की संस्कृति भारत की प्राचीन संस्कृति है।[7] जो पुर्व से ही उन्नत संस्कृति थी। इस बात के प्रमाण तब मिले जब वहाँ सन् १९२० में खुदाई हुई। आर्यों ने उनपर आक्रमण कर दिया था। आर्यों की अधिक विकसितता के कारण हड़प्पा, मोहनजो-दड़ो समाप्त हो गए। यह सिद्धांत बहुंत समय तक मान्य रहा परंतु कालांतर के शोध के पश्चात् इसे खारिज़ कर दिया गया क्योंकि खुदाई से प्राप्त कंकालों में कहीं भी लड़ाई के चोंट आदि प्राप्य नहीं हैं। उनपर प्राकृतिक आपदा के संकेत हैं।
हाँलांकि आज योरोप में इस सिद्धांत को ख़ारिज़ किया चुका है, परन्तु पूर्ण् रूप में नहीं । इस सिद्धांत की आलोचना का विशेष कारण यह है कि सिद्धांत पूर्णरूप से अंग्रेजी इतिहासकारों के द्वारा प्रतिपादित किया गया[8] जिनका कहना था कि वह भारतीय तथा यूरोपीय अध्ययन के माध्यम से ही इस बात पर जोर दे रहे हैं।[9] ध््यान दें कि सिद्धात के प्रस्तावकों में से मुख्य, मैक्समूलर कभी भारत नहीं आया ।
आर्यन आक्रमण या प्रयाण - विरोधी तर््क
इस उपसिद्धांत के अनुसार, सिन्धु घाटी की संस्कृति भारत की प्राचीन संस्कृति है,[7] जो पुर्व से ही उन्नत संस्कृति थी और वैदिक आर्यों ने उनपर आक्रमण कर दिया था। आर्यों की अधिक विकसितता के कारण हड़प्पा, मोहनजो-दड़ो समाप्त हो गए। यह सिद्धांत बहुंत समय तक मान्य रहा परंतु कालांतर के शोध के पश्चात् इसे खारिज़ कर दिया गया क्योंकि खुदाई से प्राप्त कंकालों में कहीं भी लड़ाई के चोंट आदि प्राप्य नहीं हैं। बाद में मैक्समुलर पर अनेक आरोप-प्रत्यारोप उनके लेखों की निष्पक्षता के कारण हुए । भारतीय विद्वानोंं के अनुसार वे यह सब अंग्रेजों के कहे अनुसार कर रहे थे । यह उनके द्वारा भेजे संदेशों में भी दीखता है -
It is the root of thir religion and to show them what the root is, I feel I sure it is the only way of uprooting all that have sprung from it during the last three thousand years.[10] (इसके जड़ को (नंगा) दिखा के ही सुनिश्चित किया जा सकता है कि इससे ३००० सालों में जो उगा है उसे कैसे उखाड़ें। )
भारतीय सचिव के नाम १६ दिसम्बर १८६८ के दिवस का पत्र भी इस बात का समर्थन करता है।
The Ancient Religion Of India Is Doomed. Now If Christianity Does Not Step In Whose Fault Will Be?[11] (भारत का प्राचीन धर्म झकझोर दिया गया है, अगर अब ईसाई धर्म (यानि मिशनरी) नहीं आते हैं तो किसका दोष होगा ?)
डीएनए शोधों में भी उत्तर-दक्षिण के लोगों में भिन्नता नहीं, समानता पाई गई ।
विरोधी तर्क के कुछ बिंदु
भारत की स्वतंत्रता के बाद कई पुरातात्विक शोध हुए। इन शोधों और डीएनए के अध्ययन, भाषाओं की समरूपता आदि शोध इस सिद्धांत से मेल नहीं खाते। कुछ तर्क यहाँ दिए गए हैं -
- सबसे पुराने ऋगवेद में आर्य नाम की जाति-विशेष के आक्रमण का कोई उल्लेख नहीं मिलता है । ऋगवेद में किसी राजा का या किसी शासक को किसी विशेष दिशा या भूमि पर आक्रमण करने का कोई आदेश नहीं मिलता, ना ही अपने राज्य विस्तार का प्रोत्साहन भी ।
- किसी प्रयाण या आक्रमण का उल्लेख या यहाँ तक कि न गाथा, संस्मरण आदि में, न तो वेदों में और न ही उपनिषद, आरण्यक, दर्शन-ग्रंथों या पुराणों में मिलता है। जबकि, रोमन गाथाओं में पूर्व की दिशा से हुए प्रयाण की याद और बाइबल में जोशुआ के पुस्तक में ऐसे छूटी हुई मातृभूमि की झलक मिलती है। यहूदी तालमुद में भी इसरायली लोगों को अपनी ज़मीन से असीरियाई शासको द्वारा बेदखल करने और फिर दारा द्वारा पुनः अपने देश भेजे जाने का उल्लेख है । अगर ऐसा कोई आक्रमण या यहाँ तक कि प्रयाण (प्रवास) भी होता तो वेदों-पुराणों-ब्राह्मण ग्रंथों-उपनिषदों-दर्शनों-बौद्ध ग्रंथों आदि में उसका उल्लेख मिलता, लेकिन वो नहीं है।
- ऋग्वेद के जिन शब्दों के आधार पर यूरोपीय और उनके अनुचर भारतीय विद््वान यह दिखाते थे, उनका मूल अर््थ कुछ और ही है । यह बात पारंपरिक वैदिक शब्दकोशों (निरुक्त, अमरकोश, स्कंदस्वामी भाष्य आदि) में मिलता है । परन्तु यूरोपीय प्रतिपादक इससे या तो अनभिज्ञ दीखते हैं या नज़रअंदाख्त ।
- भाषाई प्रमाण - भाषा की समरूपता के बारे में मिथक ये है कि संस्कृत और यूरोप (और ईरान) की भाषाओं में समानताएं हैं। हाँलांकि ये सच है कि कुछ शब्द एक जैसे हैं, लेकिन हज़ारों शब्दों में दूर-दूर तक कोई मेल नहीं। साथ ही व्याकरण में तो बहुत भिन्नता है, लेकिन भारत के अन्दर की भाषाओं में कई समानताए हैं। उदाहरण के लिए -
- सहायक क्रियाओं का वाक्य का अन्त में आना। है, रहा है, था, होगा, हुआ है ये सब हिन्दी की सहायक क्रियाएं हैं - इनके तमिळ, बांग्ला या कन्नड़ अनुवाद भी अपने वाक्यों के अन्त में आते हैं। लेकिन अंग्रेज़ी में am, was, were, has आदि मुख्यतः अपने वाक्यों के मध्य में आते हैं।
- वाक्यों का विन्यास - संस्कृत सहित उत्तर और दक्षिण भारत की भाषाओं में वाक्य (कर्ता-कर्म-क्रिया) इस क्रम में होते हैं, यूरोपीय भाषाओं से बहुत अलग।
- Prepositions: संस्कृत और उत्तर-दक्षिण की सभी भारतीय भाषाओं में वाक्यों में अव्यय-विभक्ति संज्ञा के बाद आते हैं, लेकिन यूरोपीय भाषाओं में subjेect से पहले। जैसे अंग्रेज़ी में - From Home, On the table, Before Sunrise, लेकिन हिन्दी में घर से, टेबल पर, सूर्योदय से पहले आदि। ध्यान दीजिये कि अंग्रेज़ी में 'From' शब्द इसकी संज्ञा 'Home' से पहले आता है लेकिन हिन्दी का 'से', 'घर' के बाद । ऐसा उत्तर-से-दक्षिण तक भारत की सभी भाषाओं में है, लेकिन यूरोप की किसी भाषा में नहीं, फ़ारसी में भी नहीं।
- इस सिद्धांत के विरोधियों का तर्क है कि मिलते-जुलते शब्द व्यापार से आए होंगे। जैसे कि आधुनिक स्वाहिली (पूर्वी अफ़्रीका की भाषा) में कई शब्द अरबी से आए हैं, लेकिन भाषा एकदम अलग है। केनिया-तंज़ानिया के इन तटों पर अरब लोग बारहवीं सदी में आना शुरु हुए।
अतः भारतीय आक्रमण के सिद्धांत पर विवाद होते ही रहते हैं।
हानि
सिद्धांत से सबसे बड़ी हानि भारतीय अनेकता के और बढ़ जाने से हुई। आर्यों को भारत से बाहर करने की मांग की गई जो कि मुस्लिम इण्डिया नामक पत्र में छपा।[12] इसके पश्चात् सर फ्रैंक एन्थॉनी ने ४ सितम्बर १९७७ को एक मांग की जिसके अनुसार संविधान के आठवे परिशिष्ट में परिगणित भारतीय भाषाओं की सूची से संस्कृत को निकाल देना चाहिये।[13] दलित और अनुसूचित संज्ञा भिन्नता के प्रदर्शक हैं। यह एक गृहयुद्ध सम हो गया। परंतु आज इससे आगे बढ़कर सत्य को जानने की आवश्यकता है।
समर्थन तथा आलोचना
वहीं कई निम्नवर्ग, भिन्न धर्म के लोगों ने इस सिद्धांत का समर्थन किया। साथ ही कई क्रांतिकारी जैसे बाल गंगाधर तिलक, के० एम० मुंशी जी ने भी समर्थन किया।[14] परंतु जब इनसे अन्यों ने प्रश्न किया तो इनका उत्तर था कि इन्होंने केवल ऋग्वेद के आंग्लानुवाद को पढ़ा है।
आमी मूल वेद अध्ययन कारि नाई, आमी साहिब दिगेर अनुवाद पाठ करिया छि।[15]
समर्थनों के बाद भी अधिकतर भारतीय इतिहासकार इसे केवल फूट डालो राज़ करो की नीति का अंग मानते आए हैं। वहीं साहित्यकार इसमें अंग्रेज अनुवादकों के संस्कृत के अल्प ज्ञान को दोषी ठहराते हैं। क्योंकि व्याकरणिक दृष्टि से दस्यु, अनार्य जाति नहीं अपितु गुण वाचक है। जो नास्तिक थे उन्हें दस्यु या अनार्य (अनाड़ी) से सम्बोधित किया जाता था। वहीं कृष्णगर्भ मेघ तथा अनासः वर्षाकालिक शान्ति का प्रतीक है। ऐसा भारतीय संस्कृतज्ञों का दावा है।[16] इस सिद्धांत के आलोचकों का कहना है कि अगर संस्कृत विदेशी भाषा होती तो भारत के अधिकतर भाषाओं में इसका मेल नहीं होता। डाँ० वकांकर, टी बोरोव[17] मि० मुइर, एलफिन्स्टन[18] जैसे इतिहासकारों ने इस सिद्धांत की निंदा की है। क्योंकि न ही भारतीय ऐतिहासिक लेखों में, न ही युरोपीय साहित्य लेखों में ही इसका वर्णन है। अथवा पुराकथा रूप में भी ऐसी कथा उपलब्ध नहीं है।[19]
दृष्टव्य
सन्दर्भ
- ↑ Indo-Aryan Migration Theory, अंग्रेजी विकिपीडिया।
- ↑ आर्यों का आदिदेश, लेखक - लक्ष्मीदत्त दीक्षित (विद्यानन्द सरस्वती)
- ↑ Development of the Aryan Migration theory, विकिपीडिया पृष्ठ
- ↑ Fundamentals of the Indo-Aryan Migration theory, विकिपीडिया पृष्ठ।
- ↑ क्या आर्य युरोप से भारत आए?
- ↑ आर्यों का आदिदेश पृ० १३
- ↑ अ आ मोहनजो-दड़ो से प्राप्त एक मुद्रा जिसमें वैदिक ऋचानुसार चित्र बना है, उसका विवरण कुछ इस प्रकार है "Photostat of plate no. CXII Seal No. 387 from the excavations of Mohenjo-Daro. (From Mohenjo-Daro And The Indus Civilization, Edited by Sir John Marshall, Cambridge 1931. इसमें चित्रित चित्र ऋग्वेद १|१६४|२० की ऋचा द्वा सुपर्णा... तथा श्रीमद्भागवत ११|११|०६ का श्लोक सुपर्णावेतौ सदृशौ सखायौ... से मेल खाता है जो वैदिक तथा सिन्धु के बीच संबन्ध दर्शाता है।
- ↑ Indo-Aryan Migration उपयुक्त अंग्रेजी विकिपीडिया के लेख से सिद्ध है कि यह सिद्धांत पश्चिम में बहुंत प्रसिद्ध है।
- ↑ क्या आर्य युरोप से भारत आए? Rbth.com
- ↑ Life and letters of Fredrick maxmueller, Vol. 1 Chap. XV, Page 34
- ↑ Ibid Vol 1 Chap. XVI Page 378
- ↑ मुस्लिम इण्डिया २७ मार्च, १९८५
- ↑ India Express 5/9/1977
- ↑ लोपामुद्रा लेखक के० एम० मुंशी
- ↑ मानवेर आदि जन्मभूमि लेखक - उमेशचन्द्र विद्यारत्न
- ↑ आर्यों का आदिदेश पृ० २५
- ↑ "The aryan invasion of india is recorded as no written document and it cannot yet be treased archeologically." - Mr. T. Borrow -- Quoted from The early aryans published in cultural history of india edited by A. L. Basham, published by Clarandron Press Oxford 1975
- ↑ "Is there any allusion to the arya prior residance in any contry outside india" - Mr. Elphinstion -- History Of India Vol. 1
- ↑ Mr. Muir: Original Sanskrit Texts, Vol 2