"बाबा आमटे": अवतरणों में अंतर

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==प्रारंभिक जीवन==
==प्रारंभिक जीवन==
बाबा आमटे का जन्म [[26 दिसम्बर]] [[1914]] को [[महाराष्ट्र]] स्थित [[वर्धा जिला|वर्धा जिले]] में हिंगणघाट गांव में हुआ था। इनके उनके पिता देवीदास हरबाजी आमटे शासकीय सेवा में लेखपाल थे। बरोड़ा से पाँच-छः मील दूर गोरजे गांव में उनकी जमींदारी थी। उनका बचपन बहुत ही ठाट-बाट से बीता। वे सोने के पालने में सोते थे और चांदी के चम्मच से उन्हें खाना खिलाया जाता था। बचपन में वे किसी राज्य के राजकुमार की तरह रहे। रेशमी कुर्ता, सिर पर ज़री की टोपी तथा पाँव में शानदार शाही जूतियाँ, यही उनकी वेष-भूषा होती थी जो उनको एक आम बच्चे से अलग कर देती थी। उनकी चार बहनें और एक भाई था। बाबा आमटे ने एम.ए.एल.एल.बी. तक की पढ़ाई की। उनकी पढ़ाई क्रिस्चियन मिशन स्कूल [[नागपुर]] में हुई और फिर उन्होंने [[नागपुर विश्वविद्यालय]] में क़ानून की पढ़ाई की और कई दिनों तक वकालत भी की। [[महात्मा गांधी]] और विनोबा भावे से प्रभावित बाबा आमटे ने सारे भारत का दौरा कर देश के गाँवों मे अभावों में जीने वालें लोगों की असली समस्याओं को समझने की कोशिश की। देश की आजादी की लड़ाई में बाबा आमटे अमर शहीद [[राजगुरु]] के साथी रहे थे। फिर राजगुरू का साथ छोड़कर गाँधी से मिले और अहिंसा का रास्ता अपनाया।
बाबा आमटे का जन्म [[26 दिसम्बर]] [[1914]] को [[महाराष्ट्र]] स्थित [[वर्धा जिला|वर्धा जिले]] में हिंगणघाट गांव में हुआ था। इनके उनके पिता देवीदास हरबाजी आमटे शासकीय सेवा में लेखपाल थे। बरोड़ा से पाँच-छः मील दूर गोरजे गांव में उनकी जमींदारी थी। उनका बचपन बहुत ही ठाट-बाट से बीता। वे सोने के पालने में सोते थे और चांदी के चम्मच से उन्हें खाना खिलाया जाता था। बचपन में वे किसी राज्य के राजकुमार की तरह रहे। रेशमी कुर्ता, सिर पर ज़री की टोपी तथा पाँव में शानदार शाही जूतियाँ, यही उनकी वेष-भूषा होती थी जो उनको एक आम बच्चे से अलग कर देती थी।<ref>{{cite web |url= http://www.hindimedia.in/content/view/1181/54/|title= बाबा आमटेः एक राजकुमार जिसने ठुकरा दिए सब ठाठ |accessmonthday=[[20 फरवरी]]|accessyear=[[2008]]|format=|publisher= हिन्दी मीडिया}}</ref> उनकी चार बहनें और एक भाई था। जिन युवाओं ने बाबा को कुटिया में सदा लेटे हुए ही देखा- शायद ही कभी अंदाज लगा पाए होंगे कि यह शख्स जब खड़ा रहा करता था तब क्या कहर ढाता था। अपनी युवावस्था में धनी जमींदार का यह बेटा तेज कार चलाने और हॉलीवुड की फिल्म देखने का शौकीन था। अँगरेजी फिल्मों पर लिखी उनकी समीक्षाएँ इतनी दमदार हुआ करती थीं कि एक बार अमेरिकी अभिनेत्री नोर्मा शियरर ने भी उन्हें पत्र लिखकर दाद दी।<ref>{{cite web |url=http://hindi.webdunia.com/news/news/amte/0802/10/1080210015_1.htm|title=रूमानी दिल, फौलादी चरित्र |accessmonthday=[[20 फरवरी]]|accessyear=[[2008]]|format=एचटीएम|publisher=वेब दुनिया}}</ref>

बाबा आमटे ने एम.ए.एल.एल.बी. तक की पढ़ाई की। उनकी पढ़ाई क्रिस्चियन मिशन स्कूल [[नागपुर]] में हुई और फिर उन्होंने [[नागपुर विश्वविद्यालय]] में क़ानून की पढ़ाई की और कई दिनों तक वकालत भी की। [[महात्मा गांधी]] और विनोबा भावे से प्रभावित बाबा आमटे ने सारे भारत का दौरा कर देश के गाँवों मे अभावों में जीने वालें लोगों की असली समस्याओं को समझने की कोशिश की। देश की आजादी की लड़ाई में बाबा आमटे अमर शहीद [[राजगुरु]] के साथी रहे थे। फिर राजगुरू का साथ छोड़कर गाँधी से मिले और अहिंसा का रास्ता अपनाया। [[विनोबा भावे]] से प्रभावित बाबा आम्टे ने सारे भारत का दर्शन किया। और इस दर्शन के दौरान उन्हें गरीबी, अन्याय आदि के भी दर्शन हुए और इन समस्याओं को दूर करने की अपराजेय ललक रूपी जलधि इनके हृदय में हिचकोरे लेने लगा।


==कार्यक्षेत्र==
==कार्यक्षेत्र==


एक दिन बाबा ने एक कोढ़ी को धुआँधार बारिश में भींगते हुए देखा उसकी सहायता के लिए कोई आगे नहीं आ रहा था। उन्होंने सोचा कि अगर अगर इसकी जगह मैं होता तो क्या होता? उन्होंने तत्क्षण बाबा उस रोगी को उठाया और अपने घर की ओर चल दिए। इसके बाद बाबा आमटे ने [[कुष्ठ]] रोग को जानने और समझने में ही अपना पूरा ध्यान लगा दिया। बाबा आमटेः एक राजकुमार जिसने ठुकरा दिए सब ठाठ |वड़ोरा के पास घने जंगल में अपनी पत्नी साधनाताई, दो पुत्रों, एक गाय एवं सात रोगियों के साथ [[आनंद वन]] की स्थापना की। यही आनंद वन आज बाबा आमटे और उनके सहयोगियों के कठिन श्रम से आज हताश और निराश कुष्ठ रोगियों के लिए आशा, जीवन और सम्मानजनक जीवन जीने का केंद्र बन चुका है। जीवनपर्यन्त कुष्ठरोगियों, आदिवासियों और मजदूर-किसानों के साथ काम करते हुए उन्होंने वर्तमान विकास के जनविरोधी चरित्र को समझा और वैकल्पिक विकास की क्रांतिकारी जमीन तैयार की।
एक दिन बाबा ने एक कोढ़ी को धुआँधार बारिश में भींगते हुए देखा उसकी सहायता के लिए कोई आगे नहीं आ रहा था। उन्होंने सोचा कि अगर अगर इसकी जगह मैं होता तो क्या होता? उन्होंने तत्क्षण बाबा उस रोगी को उठाया और अपने घर की ओर चल दिए। इसके बाद बाबा आमटे ने [[कुष्ठ]] रोग को जानने और समझने में ही अपना पूरा ध्यान लगा दिया।<ref>{{cite web |url= http://www.hindimedia.in/content/view/1181/54/|title= बाबा आमटेः एक राजकुमार जिसने ठुकरा दिए सब ठाठ |accessmonthday=[[20 फरवरी]]|accessyear=[[2008]]|format=|publisher= हिन्दी मीडिया}}</ref> वड़ोरा के पास घने जंगल में अपनी पत्नी साधनाताई, दो पुत्रों, एक गाय एवं सात रोगियों के साथ [[आनंद वन]] की स्थापना की। यही आनंद वन आज बाबा आमटे और उनके सहयोगियों के कठिन श्रम से आज हताश और निराश कुष्ठ रोगियों के लिए आशा, जीवन और सम्मानजनक जीवन जीने का केंद्र बन चुका है। मिट्टी की सौंधी महक से आत्मीय रिश्ता रखने वाले बाबा आमटे ने चंद्रपुर जिले, महाराष्ट्र के वड़ोरा के निकट आनंदवन नामक अपने इस आश्रम को आधी सदी से अधिक समय तक विकास के विलक्षण प्रयोगों की कर्मभूमि बनाए रखा। जीवनपर्यन्त कुष्ठरोगियों, आदिवासियों और मजदूर-किसानों के साथ काम करते हुए उन्होंने वर्तमान विकास के जनविरोधी चरित्र को समझा और वैकल्पिक विकास की क्रांतिकारी जमीन तैयार की। <ref>{{cite web |url= http://www.bhaskar.com/2008/02/10/0802102249_baba_amte.html|title= भविष्य से आए थे बाबा आमटे|accessmonthday=[[20 फरवरी]]|accessyear=[[2008]]|format=एचटीएमएल|publisher= दैनिक भास्कर}}</ref>

किसी समय १४ रुपये में शुरु हुआ "आनन्दवन" का बजट आज करोड़ों में है।
आनन्दवन की महत्ता चारों तरफ फैलने लगी, नए-नए रोगी आने लगे और "आनन्दवन" का महामंत्र 'श्रम ही है श्रीराम हमारा' सर्वत्र गूँजने लगा। आज "आनन्दवन" में स्वस्थ, आनन्दमयी और कर्मयोगियों की एक बस्ती बस गई है। भीख माँगनेवाले हाथ श्रम करके पसीने की कमाई उपजाने लगे हैं। किसी समय १४ रुपये में शुरु हुआ "आनन्दवन" का बजट आज करोड़ों में है।<ref>[http://prabhakargopalpuriya.blogspot.com/2007/01/blog-post_13.html बाबा आमटे : सच्चे कुष्ठरोगीसेवी ]</ref> आज १८० हेक्टेयर जमीन पर फैला "आनन्दवन" अपनी आवश्यकता की हर वस्तु स्वयं पैदा कर रहा है। बाबा आम्टे ने "आनन्दवन" के अलावा और भी कई कुष्ठरोगी सेवा संस्थानों जैसे, सोमनाथ, अशोकवन आदि की स्थापना की है जहाँ हजारों रोगियों की सेवा की जाती है और उन्हें रोगी से सच्चा कर्मयोगी बनाया जाता है।

सन 1985 में बाबा आमटे ने कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत जोड़ो आंदोलन भी चलाया था। इस आंदोलन को चलाने के पीछे उनका मकसद देश में एकता की भावना को बढ़ावा देना और पर्यावरण के प्रति लोगों का जागरुक करना था।<ref>[http://www.aol.in/hindi/news/2008/02/09/nation-social-activist-baba-amte-dies.html बाबा आमटे नहीं रहे]</ref>


==साहित्यिक कृतियाँ==
==साहित्यिक कृतियाँ==

13:00, 30 नवम्बर 2008 का अवतरण

चित्र:Baba+amte.jpg
बाबा आमटे

प्रतिष्ठित मैगसेसे पुरस्कार से सम्मानित मुरलीधर देवीदास आमटे (26 दिसंबर, 1914 - 9 फरवरी, 2008), जो बाबा आमटे के नाम से ख्यात थे, भारत के प्रमुख व सम्मानित समाजसेवी थे। समाज से परित्यक्त लोगों और कुष्ठ रोगियों के लिये उन्होंने अनेक आश्रमों और समुदायों की स्थापना की। इनमें चन्द्रपुर, महाराष्ट्र स्थित आनंदवन का नाम प्रसिद्ध है। इसके अतिरिक्त बाबा ने अनेक अन्य सामाजिक कार्यों, जिनमें वन्य जीवन संरक्षण तथा नर्मदा बचाओ आंदोलन प्रमुख हैं, के लिये अपना जीवन समर्पित कर दिया। 9 फरवरी, 2008 को बाबा का 94 साल की आयु में चन्द्रपुर जिले के वड़ोरा स्थित अपने निवास में निधन हो गया।[1] वे कुछ समय से बीमार थे और हाल ही में उन्हें रक्त कैंसर होने का पता चला था। उनके परिवार में दो पुत्र और दो पुत्रियाँ हैं।

प्रारंभिक जीवन

बाबा आमटे का जन्म 26 दिसम्बर 1914 को महाराष्ट्र स्थित वर्धा जिले में हिंगणघाट गांव में हुआ था। इनके उनके पिता देवीदास हरबाजी आमटे शासकीय सेवा में लेखपाल थे। बरोड़ा से पाँच-छः मील दूर गोरजे गांव में उनकी जमींदारी थी। उनका बचपन बहुत ही ठाट-बाट से बीता। वे सोने के पालने में सोते थे और चांदी के चम्मच से उन्हें खाना खिलाया जाता था। बचपन में वे किसी राज्य के राजकुमार की तरह रहे। रेशमी कुर्ता, सिर पर ज़री की टोपी तथा पाँव में शानदार शाही जूतियाँ, यही उनकी वेष-भूषा होती थी जो उनको एक आम बच्चे से अलग कर देती थी।[2] उनकी चार बहनें और एक भाई था। जिन युवाओं ने बाबा को कुटिया में सदा लेटे हुए ही देखा- शायद ही कभी अंदाज लगा पाए होंगे कि यह शख्स जब खड़ा रहा करता था तब क्या कहर ढाता था। अपनी युवावस्था में धनी जमींदार का यह बेटा तेज कार चलाने और हॉलीवुड की फिल्म देखने का शौकीन था। अँगरेजी फिल्मों पर लिखी उनकी समीक्षाएँ इतनी दमदार हुआ करती थीं कि एक बार अमेरिकी अभिनेत्री नोर्मा शियरर ने भी उन्हें पत्र लिखकर दाद दी।[3]

बाबा आमटे ने एम.ए.एल.एल.बी. तक की पढ़ाई की। उनकी पढ़ाई क्रिस्चियन मिशन स्कूल नागपुर में हुई और फिर उन्होंने नागपुर विश्वविद्यालय में क़ानून की पढ़ाई की और कई दिनों तक वकालत भी की। महात्मा गांधी और विनोबा भावे से प्रभावित बाबा आमटे ने सारे भारत का दौरा कर देश के गाँवों मे अभावों में जीने वालें लोगों की असली समस्याओं को समझने की कोशिश की। देश की आजादी की लड़ाई में बाबा आमटे अमर शहीद राजगुरु के साथी रहे थे। फिर राजगुरू का साथ छोड़कर गाँधी से मिले और अहिंसा का रास्ता अपनाया। विनोबा भावे से प्रभावित बाबा आम्टे ने सारे भारत का दर्शन किया। और इस दर्शन के दौरान उन्हें गरीबी, अन्याय आदि के भी दर्शन हुए और इन समस्याओं को दूर करने की अपराजेय ललक रूपी जलधि इनके हृदय में हिचकोरे लेने लगा।

कार्यक्षेत्र

एक दिन बाबा ने एक कोढ़ी को धुआँधार बारिश में भींगते हुए देखा उसकी सहायता के लिए कोई आगे नहीं आ रहा था। उन्होंने सोचा कि अगर अगर इसकी जगह मैं होता तो क्या होता? उन्होंने तत्क्षण बाबा उस रोगी को उठाया और अपने घर की ओर चल दिए। इसके बाद बाबा आमटे ने कुष्ठ रोग को जानने और समझने में ही अपना पूरा ध्यान लगा दिया।[4] वड़ोरा के पास घने जंगल में अपनी पत्नी साधनाताई, दो पुत्रों, एक गाय एवं सात रोगियों के साथ आनंद वन की स्थापना की। यही आनंद वन आज बाबा आमटे और उनके सहयोगियों के कठिन श्रम से आज हताश और निराश कुष्ठ रोगियों के लिए आशा, जीवन और सम्मानजनक जीवन जीने का केंद्र बन चुका है। मिट्टी की सौंधी महक से आत्मीय रिश्ता रखने वाले बाबा आमटे ने चंद्रपुर जिले, महाराष्ट्र के वड़ोरा के निकट आनंदवन नामक अपने इस आश्रम को आधी सदी से अधिक समय तक विकास के विलक्षण प्रयोगों की कर्मभूमि बनाए रखा। जीवनपर्यन्त कुष्ठरोगियों, आदिवासियों और मजदूर-किसानों के साथ काम करते हुए उन्होंने वर्तमान विकास के जनविरोधी चरित्र को समझा और वैकल्पिक विकास की क्रांतिकारी जमीन तैयार की। [5]

आनन्दवन की महत्ता चारों तरफ फैलने लगी, नए-नए रोगी आने लगे और "आनन्दवन" का महामंत्र 'श्रम ही है श्रीराम हमारा' सर्वत्र गूँजने लगा। आज "आनन्दवन" में स्वस्थ, आनन्दमयी और कर्मयोगियों की एक बस्ती बस गई है। भीख माँगनेवाले हाथ श्रम करके पसीने की कमाई उपजाने लगे हैं। किसी समय १४ रुपये में शुरु हुआ "आनन्दवन" का बजट आज करोड़ों में है।[6] आज १८० हेक्टेयर जमीन पर फैला "आनन्दवन" अपनी आवश्यकता की हर वस्तु स्वयं पैदा कर रहा है। बाबा आम्टे ने "आनन्दवन" के अलावा और भी कई कुष्ठरोगी सेवा संस्थानों जैसे, सोमनाथ, अशोकवन आदि की स्थापना की है जहाँ हजारों रोगियों की सेवा की जाती है और उन्हें रोगी से सच्चा कर्मयोगी बनाया जाता है।

सन 1985 में बाबा आमटे ने कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत जोड़ो आंदोलन भी चलाया था। इस आंदोलन को चलाने के पीछे उनका मकसद देश में एकता की भावना को बढ़ावा देना और पर्यावरण के प्रति लोगों का जागरुक करना था।[7]

साहित्यिक कृतियाँ

बाबा आम्टे की कुछ साहित्यिक रचनाएँ भी हैं, जैसे -

  • 'ज्वाला आणि फुले' नामक काव्यसंग्रह,
  • 'उज्ज्वल उद्यासाठी' नामक काव्य इत्यादि।

पुरस्कार व सम्मान

जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ता मुरलीधर देवीदास आमटे उर्फ बाबा आमटे को पद्म भूषण और महाराष्ट्र सरकार के सर्वोच्च सम्मान महाराष्ट्र भूषण सहित कई सम्मानों से नवाजा गया था। उन्हें दिए गए कुछ प्रमुख सम्मान और पुरस्कार इस प्रकार हैं।

संदर्भ

  1. प्रसिद्ध समाजसेवी बाबा आम्टे का निधन (बी.बी.सी. पर)
  2. "बाबा आमटेः एक राजकुमार जिसने ठुकरा दिए सब ठाठ". हिन्दी मीडिया. नामालूम प्राचल |accessyear= की उपेक्षा की गयी (|access-date= सुझावित है) (मदद); नामालूम प्राचल |accessmonthday= की उपेक्षा की गयी (मदद)
  3. "रूमानी दिल, फौलादी चरित्र" (एचटीएम). वेब दुनिया. नामालूम प्राचल |accessyear= की उपेक्षा की गयी (|access-date= सुझावित है) (मदद); नामालूम प्राचल |accessmonthday= की उपेक्षा की गयी (मदद)
  4. "बाबा आमटेः एक राजकुमार जिसने ठुकरा दिए सब ठाठ". हिन्दी मीडिया. नामालूम प्राचल |accessyear= की उपेक्षा की गयी (|access-date= सुझावित है) (मदद); नामालूम प्राचल |accessmonthday= की उपेक्षा की गयी (मदद)
  5. "भविष्य से आए थे बाबा आमटे" (एचटीएमएल). दैनिक भास्कर. नामालूम प्राचल |accessyear= की उपेक्षा की गयी (|access-date= सुझावित है) (मदद); नामालूम प्राचल |accessmonthday= की उपेक्षा की गयी (मदद)
  6. बाबा आमटे : सच्चे कुष्ठरोगीसेवी
  7. बाबा आमटे नहीं रहे
  8. "बाबा के नाम हैं कई सम्मान" (एचटीएम). वेब दुनिया. नामालूम प्राचल |accessyear= की उपेक्षा की गयी (|access-date= सुझावित है) (मदद); नामालूम प्राचल |accessmonthday= की उपेक्षा की गयी (मदद)