"कामन्दकीय नीतिसार": अवतरणों में अंतर

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
नया पृष्ठ: '''कामंदकीय नीतिसार''' राज्यशास्त्र का एक संस्कृत ग्रं...
 
No edit summary
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
'''कामंदकीय नीतिसार''' [[राजनीति|राज्यशास्त्र]] का एक [[संस्कृत]] ग्रंथ है। इसके रचयिता का नाम 'कामंदकि' अथवा 'कामंदक' है जिससे यह साधारणत: 'कामन्दकीय' नाम से प्रसिद्ध है। वास्तव में यह ग्रंथ [[कौटिल्य]] के [[अर्थशास्त्र ग्रन्थ|अर्थशास्त्र]] के सारभूत सिद्धांतों (मुख्यत: राजनीति विद्या) का प्रतिपादन करता है।
'''कामंदकीय नीतिसार''' [[राजनीति|राज्यशास्त्र]] का एक [[संस्कृत]] ग्रंथ है। इसके रचयिता का नाम 'कामंदकि' अथवा 'कामंदक' है जिससे यह साधारणत: 'कामन्दकीय' नाम से प्रसिद्ध है। वास्तव में यह ग्रंथ [[कौटिल्य]] के [[अर्थशास्त्र ग्रन्थ|अर्थशास्त्र]] के सारभूत सिद्धांतों (मुख्यत: राजनीति विद्या) का प्रतिपादन करता है।


कामन्दकीय में कुल मिलाकर १९ अध्याय हैं।
कामन्दकीय में कुल मिलाकर २० सर्ग (अध्याय) तथा ३६ प्रकरण हैं।


==रचनाकाल==
==रचनाकाल==
इसके रचनाकाल के विषय में कोई स्पष्ट प्रमाण उपलब्ध नहीं है। [[विंटरनित्स]] के मतानुसार किसी कश्मीरी कवि ने इसकी रचना ईस्वी ७००-७५० के बीच की। डा. [[राजेंद्रलाल मित्र]] का अनुमान है कि ईसा के जन्मकाल के लगभग [[बाली द्वीप]] जानेवाले आर्य इसे [[भारत]] से बाहर ले गए जहाँ इसका '[[कवि भाषा]]' में अनुवाद हुआ। बाद में यह ग्रंथ [[जावा]] द्वीप में भी पहुँचा। छठी शताब्दी के कवि [[दण्डी]] ने अपने '[[दशकुमारचरित]]' के प्रथम उच्छ्वास के अंत में 'कामंदकीय' का उल्लेख किया है।
इसके रचनाकाल के विषय में कोई स्पष्ट प्रमाण उपलब्ध नहीं है। [[विंटरनित्स]] के मतानुसार किसी कश्मीरी कवि ने इसकी रचना ईस्वी ७००-७५० के बीच की। डा. [[राजेन्द्रलाल मित्र]] का अनुमान है कि ईसा के जन्मकाल के लगभग [[बाली द्वीप]] जानेवाले आर्य इसे [[भारत]] से बाहर ले गए जहाँ इसका '[[कवि भाषा]]' में अनुवाद हुआ। बाद में यह ग्रंथ [[जावा]] द्वीप में भी पहुँचा। छठी शताब्दी के कवि [[दण्डी]] ने अपने '[[दशकुमारचरित]]' के प्रथम उच्छ्वास के अंत में 'कामंदकीय' का उल्लेख किया है।


इसके कर्ता कामंदकि या कामंदक कब और कहाँ हुए, इसका भी कोई पक्का प्रमाण नहीं मिलता। इतना अवश्य ज्ञात होता है कि ईसा की सातवीं शताब्दी के प्रसिद्ध [[नाटक]]कार [[भवभूति]] से पूर्व इस ग्रंथ का रचयिता हुआ था, क्योंकि भवभूति ने अपने नाटक '[[मालतीमाधव]]' में नीतिप्रयोगनिपुणा एक परिव्राजिका का 'कामंदकी' नाम दिया है। संभवत: नीतिसारकर्ता 'कामंदक' नाम से रूढ़ हो गया है तथा नीतिसारनिष्णात व्यक्ति के लिए प्रयुक्त होने लगा था।
इसके कर्ता कामंदकि या कामंदक कब और कहाँ हुए, इसका भी कोई पक्का प्रमाण नहीं मिलता। इतना अवश्य ज्ञात होता है कि ईसा की सातवीं शताब्दी के प्रसिद्ध [[नाटक]]कार [[भवभूति]] से पूर्व इस ग्रंथ का रचयिता हुआ था, क्योंकि भवभूति ने अपने नाटक '[[मालतीमाधव]]' में नीतिप्रयोगनिपुणा एक परिव्राजिका का 'कामंदकी' नाम दिया है। संभवत: नीतिसारकर्ता 'कामंदक' नाम से रूढ़ हो गया है तथा नीतिसारनिष्णात व्यक्ति के लिए प्रयुक्त होने लगा था।
पंक्ति 11: पंक्ति 11:


==बाहरी कड़ियाँ==
==बाहरी कड़ियाँ==
*[https://archive.org/details/kamandakiyaniti00kmgoog Kamandakiya Nitisara; Or, The Elements of Polity, in English]
*[http://spiritualsbooks.blogspot.in/2011/06/nitisara-by-kamandaki-sanskrit-text.html The Nitisara by Kamandaki: Sanskrit Text with English Translation]


[[श्रेणी:संस्कृत ग्रन्थ]]
[[श्रेणी:संस्कृत ग्रन्थ]]

08:10, 9 नवम्बर 2013 का अवतरण

कामंदकीय नीतिसार राज्यशास्त्र का एक संस्कृत ग्रंथ है। इसके रचयिता का नाम 'कामंदकि' अथवा 'कामंदक' है जिससे यह साधारणत: 'कामन्दकीय' नाम से प्रसिद्ध है। वास्तव में यह ग्रंथ कौटिल्य के अर्थशास्त्र के सारभूत सिद्धांतों (मुख्यत: राजनीति विद्या) का प्रतिपादन करता है।

कामन्दकीय में कुल मिलाकर २० सर्ग (अध्याय) तथा ३६ प्रकरण हैं।

रचनाकाल

इसके रचनाकाल के विषय में कोई स्पष्ट प्रमाण उपलब्ध नहीं है। विंटरनित्स के मतानुसार किसी कश्मीरी कवि ने इसकी रचना ईस्वी ७००-७५० के बीच की। डा. राजेन्द्रलाल मित्र का अनुमान है कि ईसा के जन्मकाल के लगभग बाली द्वीप जानेवाले आर्य इसे भारत से बाहर ले गए जहाँ इसका 'कवि भाषा' में अनुवाद हुआ। बाद में यह ग्रंथ जावा द्वीप में भी पहुँचा। छठी शताब्दी के कवि दण्डी ने अपने 'दशकुमारचरित' के प्रथम उच्छ्वास के अंत में 'कामंदकीय' का उल्लेख किया है।

इसके कर्ता कामंदकि या कामंदक कब और कहाँ हुए, इसका भी कोई पक्का प्रमाण नहीं मिलता। इतना अवश्य ज्ञात होता है कि ईसा की सातवीं शताब्दी के प्रसिद्ध नाटककार भवभूति से पूर्व इस ग्रंथ का रचयिता हुआ था, क्योंकि भवभूति ने अपने नाटक 'मालतीमाधव' में नीतिप्रयोगनिपुणा एक परिव्राजिका का 'कामंदकी' नाम दिया है। संभवत: नीतिसारकर्ता 'कामंदक' नाम से रूढ़ हो गया है तथा नीतिसारनिष्णात व्यक्ति के लिए प्रयुक्त होने लगा था।

कामंदक की प्राचीनता का एक और प्रमाण भी दृष्टिगोचर होता है। कामंदकीय नीतिसार की मुख्यत: पाँच टीकाएँ उपलब्ध होती हैं : उपाध्याय निरक्षेप, आत्मारामकृत, जयरामकृत, वरदराजकृत तथा शंकराचार्यकृत।

बाहरी कड़ियाँ