"अनुवाद": अवतरणों में अंतर

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किसी [[भाषा]] में कही या लिखी गयी बात का किसी दूसरी भाषा में सार्थक परिवर्तन '''अनुवाद''' (Translation) कहलाता है। अनुवाद का कार्य बहुत पुराने समय से होता आया है।
किसी [[भाषा]] में कही या लिखी गयी बात का किसी दूसरी भाषा में सार्थक परिवर्तन '''अनुवाद''' (Translation) कहलाता है। अनुवाद का कार्य बहुत पुराने समय से होता आया है।
१. पुररुक्ति । पुन?कथन । दोहराना । २. भाषांतर । उल्था । तर्जुमा । ३. न्याय के अनुसार वाक्य का वह भेद जेसमें कही हुई बात का फिर फिर स्मरण और कथन हो । जैसे—'अन्न पकाओ, पकाओ, पकाओ, शीघ्र पकाओ, हे प्रिय पकाओ' । विशेष—इसके दो भेद हैं—जहाँ विधि का अनुवाद हो वहाँ शब्दा— नुवाद और जहाँ विहित का हो वहाँ अर्थानुवाद होता है । ४. मीमांसा के अनुसार वाक्य के विधिप्राप्त आशय का दूसरे शब्दों में समर्थन के लिये कथन । विशेष—यह तीन प्रकार का है—(क) भूतार्थानुवाद, जिसमें आशय की पुष्ठि के लिये भूतकाल का उल्लेख किया जाय़ । जैसे, पहले सत् ही था । (ख) स्तुत्यार्थानुवाद, जैसे, वायु ही सबसे बड़कर फेकनेवाला देवता है । (ग) गुणानुवाद , जैसे, दही से हवन करे । ५. खबर । जनश्रुति (को०) । ६. व्याख्यान का आरंभ (को०) । ७. विज्ञापन । सुचना [को०] ।
--विप्र 09:58, 3 मई 2013 (UTC)


== मशीनी अनुवाद ==
== मशीनी अनुवाद ==

09:58, 3 मई 2013 का अवतरण

किसी भाषा में कही या लिखी गयी बात का किसी दूसरी भाषा में सार्थक परिवर्तन अनुवाद (Translation) कहलाता है। अनुवाद का कार्य बहुत पुराने समय से होता आया है। १. पुररुक्ति । पुन?कथन । दोहराना । २. भाषांतर । उल्था । तर्जुमा । ३. न्याय के अनुसार वाक्य का वह भेद जेसमें कही हुई बात का फिर फिर स्मरण और कथन हो । जैसे—'अन्न पकाओ, पकाओ, पकाओ, शीघ्र पकाओ, हे प्रिय पकाओ' । विशेष—इसके दो भेद हैं—जहाँ विधि का अनुवाद हो वहाँ शब्दा— नुवाद और जहाँ विहित का हो वहाँ अर्थानुवाद होता है । ४. मीमांसा के अनुसार वाक्य के विधिप्राप्त आशय का दूसरे शब्दों में समर्थन के लिये कथन । विशेष—यह तीन प्रकार का है—(क) भूतार्थानुवाद, जिसमें आशय की पुष्ठि के लिये भूतकाल का उल्लेख किया जाय़ । जैसे, पहले सत् ही था । (ख) स्तुत्यार्थानुवाद, जैसे, वायु ही सबसे बड़कर फेकनेवाला देवता है । (ग) गुणानुवाद , जैसे, दही से हवन करे । ५. खबर । जनश्रुति (को०) । ६. व्याख्यान का आरंभ (को०) । ७. विज्ञापन । सुचना [को०] । --विप्र 09:58, 3 मई 2013 (UTC)

मशीनी अनुवाद

कम्प्यूटर और साफ्टवेयर की क्षमताओं में अत्यधिक विकास के कारण आजकल अनेक भाषाओं का दूसरी भाषाओं में मशीनी अनुवाद सम्भव हो गया है। यद्यपि इन अनुवादों की गुणवता अभी भी संतोषप्रद नहीं कही जा सकती, तथापि अपने इस रूप में भी यह मशीनी अनुवाद कई अर्थों में और अनेक दृष्टियों से बहुत उपयोगी सिद्ध हो रहा है। जहाँ कोई चारा न हो, वहाँ मशीनी अनुवाद से कुछ न कुछ अर्थ तो समझ में आ ही जाता है।

मशीनी अनुवाद की दिशा में आने वाले दिनों में काफी प्रगति होने वाली है। मशीनी अनुवाद के कारण दुनिया में एक नयी क्रान्ति आयेगी।

कम्यूटर सहाय्यित अनुवाद

२० भाषाएँ जिनसे/जिनमें सर्वाधिक अनुवाद होते हैं

किससे किसको
अंग्रेज़ी जर्मन
फ्रेंच(फ़्रांसिसी) स्पैनिश
जर्मन फ्रेंच(फ़्रांसिसी)
रूसी जापानी
इतालियन(Italian) अंग्रेज़ी
स्पैनिश(Spanish) डच(Dutch)
स्वीडिश(Swedish) पुर्तगाली(Portuguese)
Latin Polish
Danish रूसी(Russian)
डच(Dutch) Danish
Czech Italian
Ancient Greek Czech
जापानी(Japanese) Hungarian
Polish Finnish
Hungairan Norwegian
अरबी(Arabic) स्वीडिश(Swedish)
Norwegian Modern Greek
पुर्तगाली(Portuguese) Bulgarian
Hebrew Korean
चीनी(Chinese) Slovak

हिन्दी एवं भारतीय भाषाओं में अनुवाद

यह देखकर आश्चर्य होता है कि अंग्रेजीराज द्वारा भारत के उपनिवेशीकरण के अभियान के दौरान अनुवाद की भूमिका का पिछले तीन-चार दशकों में अंग्रेजी में जैसा विश्लेषण हुआ है वैसा स्वाधीनता आंदोलन के समय राष्ट्रीय अस्मिता की तलाश के प्रयास और उसके विकास के लिए देशी भाषाओं में हुए अनुवादों के महत्व का विवेचन नहीं हुआ है। देशी भाषाओं में प्राय: तीन तरह के अनुवाद हुए हैं। एक तो अंग्रेजी ग्रंथों का विभिन्न भारतीय भाषाओं में अनुवाद, दूसरे संस्कृत के ग्रंथों का आधुनिक भारतीय भाषाओं में अनुवाद और तीसरे आधुनिक भारतीय भाषाओं की रचनाओं का अनुवाद। हिन्दी में इन तीनों तरह के अनुवादों के कार्य बड़े पैमाने पर हुए हैं। भारत में स्वाधीनता आंदोलन के दौरान राष्ट्र की कल्पना और धारणा के विकास में अनुवादों की अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका रही है।

वैसे तो प्रत्येक अनुवाद में आत्मसातीकरण की प्रक्रिया काम करती हैं, लेकिन औपनिवेशिक अनुवाद ने भारतीय समाज, कानून, इतिहास, संस्कृति, साहित्य, परंपरा और चेतना को आत्मसात करने का बड़े पैमाने पर प्रयत्न किया था। भारत में जब नवजागरण की शुरुआत हुई, तब भारत का शिक्षित समुदाय एक विचित्र स्थिति का सामना कर रहा था। 18वीं और 19वीं सदियों में भारतविदों द्वारा भारतीय पाठों के अंग्रेजी तथा अन्य यूरोपीय भाषाओं में जो अनुवाद हुए थे वे यूरोप वालों के लिए हुए थे, लेकिन अधिकांश भारतीय शिक्षित लोग इन अनूदित पाठों को ही भारतीय कानून, दर्शन और साहित्य आदि के ज्ञान का मूल स्रोत मान रहे थे। यही नहीं, वे उन पाठों के माध्यम से भारतविदों द्वारा निर्मित भारत, भारतीयता, भारतीय समाज, संस्कृति और इतिहास संबंधी विचार-विमर्श तथा आख्यान को प्रामाणिक मानकर ग्रहण कर रहे थे, क्योंकि वे अनुवादकों की दृष्टि, पद्धति और पाठों को स्वाभाविक समझ रहे थे। इस प्रक्रिया से भारत की जो पहचान, छवि या अस्मिता निर्मित हुई वह एक प्रकार से अनूदित अस्मिता थी। वह एकांतिक और अनुकरणपरक भी थी और उससे निकला राष्ट्रवाद भी वैसा ही था। आजकल उस औपनिवेशिक अनुवाद में व्यक्त और निहित विचारधारा का विखंडन करते हुए उसकी यूरोप केंद्रित प्रकृति की पहचान हो रही है।

भारतीय नवजागरण की चेतना के निर्माण और प्रसार में, विभिन्न जातीयताओं के बीच संबंधों के विकास और एक अखिल भारतीय दृष्टि के उभार में अनुवाद के योगदान का अभी ठीक से अध्ययन और मूल्यांकन नहीं हुआ है। भारतीय नवजागरण और हिन्दी नवजागरण के अधिकांश निर्माता महत्वपूर्ण अनुवादक भी थे। हिन्दी नवजागरण के लेखक भारतेंदु हरिश्चंद्र, महावीरप्रसाद द्विवेदी और रामचंद्र शुक्ल के अनुवाद विशेष रूप से महत्वपूर्ण हैं। उपनिवेशवादियों ने अनुवाद को भारतीय परंपरा और मानस पर कब्जा करने का साधन बनाया था तो भारतीय नवजागरण के विचारकों ने अनुवाद को अपनी परंपरा की मुक्ति और स्वत्व की पहचान का माध्यम बनाया। भारतीय लेखक अनुवाद को औपनिवेशिक प्रभावों के विरुद्ध प्रतिरोध के साधन के रूप में विकसित कर रहे थे। साथ ही वे आधुनिक चिंतन और ज्ञान-विज्ञान से भारतीय समाज को परिचित कराने के लिए भी अनुवाद का काम कर रहे थे। भारतेन्दु हरिश्चंद्र ने संस्कृत के पांच, बांग्ला के एक और अंग्रेजी के एक नाटक का अनुवाद किया था। महावीर प्रसाद द्विवेदी ने जान स्टुअर्ट मिल की पुस्तक लिबर्टी का स्वाधीनता नाम से अनुवाद किया था, जिसका पहला संस्करण सन् 1907 में, दूसरा 1912 में और तीसरा संस्करण 1921 में छपा था। रामचंद्र शुक्ल के अनुवादों में सबसे अधिक महत्वपूर्ण है जर्मन वैज्ञानिक अर्न्स्ट हैकल की पुस्तक ‘रिडिल ऑफ यूनीवर्स’ का विश्व प्रपंच नाम से अनुवाद।

हिन्दी नवजागरण के दौरान हिन्दी में सबसे अधिक अनुवाद बांग्ला से हुआ; रचनात्मक साहित्य का और राजनीतिक-सामाजिक चिंतन भी पुस्तकों का भी। स्वत्व की पहचान के लिए अन्य की समझ आवश्यक है; स्व और पर के द्वैत के रूप में ही नहीं, दोनों के बीच केवल अंतर के रूप में भी नहीं, बल्कि द्वंद्वात्मक रूप में।

इस दृष्टि से सखाराम गणेश देउस्कर की पुस्तक ‘देशेर कथा’ के हिन्दी अनुवाद का विशेष महत्व है। इसमें भारत की पराधीनता के यथार्थ की जटिल समग्रता और स्वाधीनता की अदम्य आकांक्षा की अभिव्यक्ति है। इस पुस्तक के अनुवाद और हिन्दी पाठकों के बीच इसके प्रसार ने स्वदेशी की भावना जगाने और राष्ट्रीय चेतना को व्यापक बनाने में अनुपम भूमिका निभाई।

वाह्य सूत्र