"डिस्टेंपर": अवतरणों में अंतर

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01:41, 29 जनवरी 2013 का अवतरण

उन्नीसवीं शती का एक मंगोलियायी थांका जो डिस्टेम्पर से बना है

डिस्टेंपर दीवारों पर पुताई करने के लिए एक विशेष प्रकार का लेप है, जो पानी में घोलकर पोता जाता है। रंग करने का यह सबसे पुराना साधन है। यूनान और मिस्त्रवाले इसका बहुत उपयोग करते थे।

परिचय

सबसे सादा डिस्टेंपर, जिसे कभी-कभी सफेदी भी कह देते हैं, खड़िया, सरेस और पानी मिलाकर बनाया जाता है। सरेस बाँधने का काम करता है, जिससे लेप रगड़ से उतर न जाय। इस प्रकार बनाए हुए डिस्टेंपर बहुत सस्ते होते हैं, काफी क्षेत्र ढक लेते हैं और बड़ी कूँची या ब्रश से सरलता से पोते जा सकते हैं, किंतु पानी से धोने पर ये छूट भी जाते हैं। इसलिए ये प्राय: भीतरी छत पोतने के लिए, या मामूली सजावट के लिए, भीतर ही प्रयुक्त होते हैं। कालांतर में पुताई मैली हो जाने पर आसानी से धोई जा सकती है और दुबारा डिस्टेंपर करने में विशेष व्यय नहीं पड़ता।

बाजार में डिस्टेंपर गाढ़े लेप या लेई जैसे भी मिलते हैं और सूखे चूर्ण जैसे भी। लगाने से पहले इनमें केवल ठंडा, या गुनगुना (जैसा निदेश हो), पानी मिलाने भर की आवश्यकता रहती है। अच्छे डिस्टेंपर में कुछ नील भी पड़ा होता है, जिससे रंग में निखार आता है। इसमें थोड़ी फिटकरी या सोहागा भी डाला जाता है, जिससे वह रखे रखे ही जम न जाए। जो डिस्टेंपर बाहर खुले में लगाने के लिए होते हैं, उनमें तेल की कुछ मात्रा होती है और उन्हें पानी के बजाय विशेष द्रव में ही घोला जाता है।

सूखा डिस्टेंपर बनाने के लिए सभी चीजें बिल्कुल सूखी हालत में पीसी जाती हैं। यदि तनिक भी नमी हुई तो चूर्ण की टिक्की बन जाएगी और वह सख्त हो जाएगी। सूखे चूर्ण को मुलायम रखने के लिए उसमें थोड़ा सोहागा, सैलिसिलिक अम्ल, फिटकिरी या अन्य कोई सूखा प्रतिरक्षी मिला दिया जाता है। रंगीन डिस्टेंपर बनाने के लिए कोई ऐसा सूखा रंजक मिलाया जाता है, जिसपर चूने या क्षार का प्रभाव न पड़ता हो और जिसका रंग स्थायी हो।

धुलाईसह डिस्टेंपर

धुलाईसह डिस्टेंपर, जिसे जलरोगन भी कहते हैं, उत्कृष्ट कोटि का डिस्टेंपर है। इसमें कुछ तेल या वार्निश मिली रहती है, जो इसे और भी पक्का कर देती है। यह सूखने पर पानी में नहीं घुलता, इसलिए ऐसे डिस्टेंपरवाली दीवारें साफ ठंढे पानी के कपड़े से पोंछ देने से ही साफ हो जाती हैं। इनमें खड़िया के अतिरिक्त कुछ लिथोफोन, जस्तेवाला सफेदा या कोई प्रबल रंजक मिला रहता है, जिससे इनकी आच्छादन क्षमता बढ़ जाती है और आवरण शक्ति भी। हाँ, तेल या वार्निश मिले होने के कारण ये केवल लेई के रूप में ही बिकते हैं, जिसमें ठंढा या गुनगुना पानी मिलाने भर की आवश्यकता रहती है।

पोतने की विधि

डिस्टेंपर उपयुक्त मात्रा में पानी में घोलकर ब्रश से पोता जाता है। पोतने के बाद उसके सूखने से पहले ही सतह पर एक मुलायम ब्रश फेर दिया जाता है, जिससे सतह पर ब्रश के निशान न रह जाएँ। बड़े क्षेत्र में ब्रश द्वारा डिस्टेंपर करने में देर लगती है और रंग में कुछ अंतर आने की आशंका रहती है, इसलिए बहुधा फुहार मशीन का उपयोग किया जाता है। कभी-कभी दीवार की सतह ही धब्बों के कारण, या अनेक प्रकार के प्लास्टरों के कारण, डिस्टेंपर से एक सा रंग ग्रहण करने में असमर्थ रहती है। ऐसी दशा में डिस्टेंपर करने से पहले अस्तर लगाना पड़ता है। डिस्टेंपर बनानेवाली कंपनियाँ ही उपयुक्त अस्तर भी बनाती हैं।

बाहरी कड़ियाँ