दो-वस्तु समस्या

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बाएँ: समान द्रव्यमान की दो वस्तुएँ दीर्घवृत्त आकार की कक्षाओं के साथ दोनों के संहति-केन्द्र की परिक्रमा करते हुए — द्वितारों में यह अक्सर देखा जाता है। दाएँ: कुछ द्रव्यमान में अंतर रखने वाली वस्तुएँ अपने मिले-जुले संहति-केन्द्र की परिक्रमा करते हुए — प्लूटो-शैरन मंडल में यही देखा जाता है।

खगोलीय यांत्रिकी में दो-वस्तु समस्या (two-body problem) दो बिन्दु-आकार की वस्तुओं की गति व चाल को समझने को कहते हैं जो केवल एक-दूसरे को ही प्रभावित करती हैं (यानि कोई भी तीसरी वस्तु इस अध्ययन में शामिल नहीं करी जाती)। इस अध्ययन में किसी ग्रह के इर्द-गिर्द कक्षा में परिक्रमा करता उपग्रह, किसी तारे की परिक्रमा करता एक ग्रह, किसी द्वितारा मंडल में एक-दूसरे की परिक्रमा करते दो तारे, इत्यादि शामिल हैं। चिरसम्मत भौतिकी में किसी परमाणु में नाभिक की परिक्रमा करता हुआ एक इलेक्ट्रान भी इसका उदाहरण है (हालांकि प्रमात्रा यान्त्रिकी की नई समझ में यह दो-वस्तु समस्या नहीं समझी जाती)। इसी प्रकार तीन वस्तुओं की आपसी चाल को समझने के लिये तीन-वस्तु समस्या (three-body problem) नामक अध्ययन भी किया जाता है।[1][2]

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. Landau LD; Lifshitz EM (1976). Mechanics (3rd. ed.). New York: Pergamon Press. ISBN 0-08-029141-4.
  2. Goldstein H (1980). Classical Mechanics (2nd. ed.). New York: Addison-Wesley. ISBN 0-201-02918-9.