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झुलसा रोग

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Rice blast symptoms

झुलसा रोग (blight) का प्रकोप अनेक फसलों पर होता है, जैसे धान, जौ, कपास, आलू, बैगन आदि।

धान का झुलसा

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इसके लक्षण पत्तियों, बाली की गर्दन एंव तने की निचली गठानों पर प्रमुख रूप से दिखाई देते हैं। प्रारंभिक अवस्था में निचली पत्तियों पर हल्के बैंगनी रंग के छोटे-छोटे धब्बे बनते हैं जो धीरे-धीरे बढ़कर आँख के समान बीच में चैडे व किनारों पर सँकरे हो जाते हैं। इन धब्बों के बीच का रंग हल्के भूरे रंग होता है। जिससे दानों के भरने पर असर पड़ता है। फसल काल के दौरान जब रात्रि का तापमान 20 से 22 से. व आर्द्रता 95 प्रतिशत से अधिक होती है तब इस रोग का तीव्र प्रकोप होने की संभावना होती है।

नियंत्रण : रोग के प्रारंभिक लक्षण दिखते ही हिनोसान या बाविस्टिन (0.1 प्रतिशत) रसायन का छिड़काव 12-15 दिन के अन्तर से करना चाहिए। रोग रोधी जातियों जैसे -रासी, आदित्य, तुलसी, एम. टी. यू., महामाया आदि की बुवाई करनी चाहिए। समय पर बुवाई और संतुलित उर्वरकों का उपयोग इस रोग को सीमित करने में मदद करते हैं।

पत्ती का झुलसा

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यह रोग जीवाणुजनित है। इस रोग का प्रकोप खेत में एक साथ न शुरू होकर कहीं-कहीं शुरू होता है तथा धीरे-धीरे चारों तरफ फैलता है। इसमें पत्ते ऊपर से सूखना षुरू होकर किनारों से नीचे की ओर सूखते हैं। गंभीर हालात में फसल पूरी सूखी हुई पुआल की तरह नजर आती है। इस रोग के प्रारंभिक लक्षण पत्तियों पर रोपोई या बुवाई के 20 से 25 दिन बाद दिखाई देते हैं। सबसे पहले पत्ती के किनारे वाला ऊपरी भाग हल्का नीला-सा हो जाता है तथा फिर मटमैला हरापन लिये हुए पीला सा होने लगता है। रोगग्रसित पौधे कमजोर हो जाते हैं और उनमें कंसे कम निकलते हैं। दाने पूरी तरह नहीं भरते व पैदावार कम हो जाती है। इस रोग के जीवाणु पौधों की जड़ों, बीज, पुआल आदि धान के अवषेश आदि के जरिए अगले मौसम तक चले जाते हैं।

इस रोग का प्रबंधन हम निम्न उपायों से ही कर सकते हैं।

  • इस रोग के प्रकोप वाले क्षेत्रों में बार-बार एक ही प्रजाति न उगाएं।
  • पौधे ऐसी जगह न बोए जहा पिछली फसल के अवषेश पड़े हों या जहां छाया रहती हो।
  • रोग रोधी किस्मों को प्रथामिकता दें, जैसे पूसा-1460 (उन्नत पूसा बासमती 1)
  • नाइट्रोजन खाद का प्रयोग अधिक न करें तथा रोपाई के 40 दिन बाद तो बिल्कुल न दें।
  • खेतों में पानी लगातार न लगाए रखें।
  • बीमारी वाले खेतों का पानी स्वस्थ खेतों में न लगाएं।
  • बीज का उपचार अवश्य करें।


कपास का झुलसा

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जौ का झुलसा

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बाहरी कड़ियाँ

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