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जीवाश्म ईंधन

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कोल, एक प्रकार का जीवाश्म ईंधन है।

जीवाश्म ईंधन एक प्रकार का कई वर्षों पहले बना प्राकृतिक ईंधन है। यह लगभग 65 करोड़ वर्ष पूर्व जीवों के जल कर उच्च दाब और ताप में दबने से हुई है। यह ईंधन पेट्रोल, डीजल, घासलेट आदि के रूप में होता है। इसका उपयोग वाहन चलाने, खाना पकाने, रोशनी करने आदि में किया जाता है।

उत्पत्ति

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पेट्रोल और प्राकृतिक गैस करोड़ों वर्ष पूर्व बने थे। यह मुख्यतः नदी या झील के बहुत नीचे होते हैं। जहाँ यह बहुत उच्च ताप और दाब के कारण ईंधन बन जाते हैं। जिसमें यह अलग अलग परत के रूप में होते हैं। जिसमें पेट्रोल, प्राकृतिक गैस आदि के अलग अलग परत होते हैं। अलग अलग गहराई में अलग अलग ताप और दाब मिलने के कारण यह असमानता आती है।

महत्त्व

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एक बार इसका उपयोग करने के पश्चात इसे दोबारा प्राप्त नहीं किया जा सकता है। इसके निर्माण के लिए बहुत अधिक तापमान और दाब की आवश्यकता होती है। जिसे मानव द्वारा बना पाना वर्तमान में असंभव है। क्योंकि यह ईंधन प्राकृतिक रूप से ही बनी है। साथ ही इसके निर्माण में लाखों वर्षों का समय भी लग गया था। इस कारण इसका पुनः निर्माण और उतने बड़े क्षेत्र का लाखों वर्षों तक अधिक तापमान और दाब में रखने में अधिक पैसे लगेंगे। इसके स्थान पर यदि अक्षय ऊर्जा का उपयोग किया जाता है तो उसमें इससे कम लागत में ऊर्जा मिल जाती है। लेकिन इस ऊर्जा का उपयोग वर्तमान में बहुत महत्वपूर्ण कार्यों में किया जाता है। इस कारण इसका संरक्षण करना अधिक आवश्यक है।[1]

पर्यावरणीय प्रभाव

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निजी वाहनों और अन्य यातायात के साधन में इसी ईंधन का उपयोग किया जाता है। लेकिन यह एक सीमित मात्रा में ही पृथ्वी में उपस्थित है। साथ ही इसके उपयोग से वायु प्रदूषण के साथ ही पृथ्वी का तापमान भी बढ्ने लगता है। इस कारण कई स्थानों के बर्फ पिघलते हैं, जिससे पर्यावरण का संतुलन बिगड़ जाता है और कुछ स्थानों पर अधिक बारिश होती है और कुछ स्थानों पर सूखे की स्थिति बन जाती है।

सन्दर्भ

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बाहरी कड़ियाँ

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