सामग्री पर जाएँ

किन्नर साम्राज्य

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से

महाभारत-काल में किन्नर साम्राज्य किन्नर नामक जनजाति के क्षेत्र को संदर्भित करता है, जो विदेशी जनजातियों में से एक थे। वे हिमालय पर्वत के निवासी थे। गंगा के मैदान के लोग उन्हें आश्चर्य से देखते थे और उन्हें अलौकिक शक्तियों का स्वामी मानते थे।

किन्नरों को रहस्यमय तरीके से घोड़ों के साथ जोड़ा जाता था। पुराणों में उनका उल्लेख घोड़े की गर्दन वाले प्राणियों के रूप में है।

महाकाव्य महाभारत में किन्नरों का उल्लेख घोड़े के सिर वाले प्राणियों के रूप में न होकर अर्ध-मानव और अर्ध-अश्व रूप में है ( ग्रीक पौराणिक कथाओं के जीव सेंटौर के समान)। महाभारत और पुराणों में किन्नरों का निवास स्थान हिमालय के उत्तर में बताया गया है। इस क्षेत्र में कम्बोज नामक जनजाति के लोगों का भी निवास था। वे कुशल योद्धा थे, जो घुड़सवारी और अश्व-युद्ध में निपुण थे। उनमें से कुछ जनजातियाँ लूटमार में भी लिप्त थीं, और अपनी कुशल घुड़सवार सेनाओं के बल पर गाँव-बस्तियों पर आक्रमण किया करती थीं। किन्नरों का मिथक संभवत: इन घुड़सवारों से आया था। महाकाव्य में एक और संदर्भ उन्हें गंधर्वों के एक उप-समूह के रूप में देखा गया है। बौद्ध और हिंदू, दोनों धर्मों के ग्रंथों में किन्नरों का उल्लेख है।[1]

किन्नरों का राज्य क्षेत्र

[संपादित करें]

मंदर पर्वत को किन्नरों का निवास स्थान कहा जाता है- एक मंदर नामक पर्वत है जो बादल जैसी चोटियों से सुशोभित है। इसपर ढेर सारी जड़ी-बूटियाँ पाई जाती हैं। वहाँ अनगिनत पक्षी अपनी धुनें सुनाते हैं, और शिकारी जानवर गश्त लगाते हैं।

अन्य विदेशी जनजातियों के साथ सम्बंध

[संपादित करें]

किन्नरों का उल्लेख अर्ध-पुरुष और अर्ध-अश्व के रूप में किया जाता है। उनका सम्बंध अन्य विदेशी जनजातियों से बताया जाता है।

किन्नरों का उल्लेख अन्य विदेशी जनजातियों के साथ-साथ नागों, उरगों, पन्नगों, सुपर्णों, विद्याधरों, सिद्धों, चारणों, वालिखिलियों, पिसाच, गन्धर्वों, अप्सराओं, किमपुरुषों, यक्षों, राक्षसों और वानरों के साथ किया जाता है। (1-18,66), (2-10), (3-82,84,104,108,139,200,223,273) (4-70), (5-12), (7-108,160), (8-11), (9-46), (12- 168,227,231,302,327,334, (13-58,83,87,140), (14-43,44,88,92)। [2]

रामायण में, किन्नरों का उल्लेख देवों, गन्धर्वों, सिद्धों और अप्सराओं के साथ किया गया है। किन्नरों को एक स्त्रीवत जाति माना जाता था, जो सदैव रसिक लीलाओं में लिप्त रहती थी। मनुस्मृति में मनु ने उल्लेख किया है कि अत्रि के पुत्र दैत्यों, दानवों, यक्षों, गंधर्वों, उरगों, राक्षसों और किन्नरों के पिता हैं।[3]

यह सभी देखें

[संपादित करें]
  1. Roshen Dalal (2014). The Religions of India: A Concise Guide to Nine Major Faiths. Penguin Books.
  2. Note: The references like (1,18) refer to verses in the Mahabharata.
  3. Ancient Communities of the Himalaya By Dinesh Prasad Saklani, Indus Publishing, 1998