एक कहानी यह भी
एक कहानी यह भी | |
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मुखपृष्ठ | |
लेखक | मन्नू भंडारी |
देश | भारत |
भाषा | हिंदी |
विषय | साहित्य |
प्रकाशक | राधाकृष्ण प्रकाशन |
प्रकाशन तिथि |
२००८ |
पृष्ठ | २१६ |
आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ | ८१८३६११०६० |
एक कहानी यह भी पुस्तक में लेखिका मन्नू भंडारी ने अपने लेखकीय जीवन की कहानी उतार दी है। यह उनकी आत्मकथा तो नहीं है, लेकिन इसमें उनके भावात्मक और सांसारिक जीवन के उन पहलुओं पर भरपूर प्रकाश पड़ता है जो उनकी रचना-यात्रा में निर्णायक रहे। एक ख्यातनामा लेखक की जीवन-संगिनी होने का रोमांच और एक जिद्दी पति की पत्नी होने की बाधाएँ, एक तरफ अपनी लेखकीय जरूरतें (महत्त्वाकांक्षाएँ नहीं) और दूसरी तरफ एक घर को सँभालने का बोझिल दायित्व, एक मधुर आम आदमी की तरह जीवन की चाह और महान उपल्ब्धियों के लिए ललकता, आसपास का साहित्यिक वातावरण—ऐसा कई-कई विरोधाभासों के बीच से मन्नूजी लगातार गुजरती रहीं, लेकिन उन्होंने अपनी जिजीविषा, अपनी सादगी, आदमीयत और रचना-संकल्प को नहीं टूटने दिया। आज भी जब वे उतनी मात्रा में नहीं लिख रही हैं, ये चीजें उनके साथ हैं, उनकी सम्पत्ति हैं। यह आत्मस्मरण मन्नूजी की जीवन-स्थितियों के साथ-साथ उनके दौर की कई साहित्यिक-सामाजिक और राजनीतिक परिस्थितियों पर भी रोशनी डालता है और नई कहानी दौर की रचनात्मक बेकली और तत्कालीन लेखकों की ऊँचाइयों-नीचाइयों से भी परिचित करता है। साथ ही उन परिवेशगत स्थितियों को भी पाठक के सामने रखता है जिन्होंने उनकी संवेदना को झकझोरा।[1]
मन्नू जी की यह कहानी, उनकी लेखकीय यात्रा के कोई छोटे मोटे उतार चढ़ावों की ही कहानी नहीं है, अपितु जीवन के उन बेरहम झंझावातों और भूकम्पों की कहानी भी है, जिनका एक झोंका, एक झटका ही व्यक्ति को तहस नहस कर देने के लिए काफ़ी होता है। मन्नू जी उन्हें भी झेल गईं। कुछ तड़की, कुछ भड़की -फिर सहज और शान्त बन गईं। आज उन्हीं संघर्षों के बल पर वे उस तटस्थ स्थिति में पहुँच गई हैं, जहाँ उन्हें न दुख सताता है, न सुख ! एक शाश्वत सात्विक भाव में बनीं रहती हैं और शायद इसी कारण वे फिर से लेखन के क्षेत्र में सक्रिय हो गई हैं।[2]
विशेषताएँ
इसमें मन्नू भंडारी ने अपनी विभिन्न रचनाओं के स्रोतों का उल्लेख किया है। सन् १९६२ के चीनी आक्रमण[3] की झलक भी इसमें दिखाई देती है।
इन्हें भी देखें
सन्दर्भ
- ↑ "एक कहानी यह भी". भारतीय साहित्य संग्रह. मूल (पी.एच.पी) से 21 जनवरी 2010 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि ३१ जनवरी २००९.
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में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद) - ↑ "एक कहानी यह भी समीक्षात्मक अभिव्यक्ति". साहित्य कुंज. मूल (एच.टी.एम) से 22 मई 2008 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि ३१ जनवरी २००९.
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में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद) - ↑ मन्नू, भंडारी (२०१६). एक कहानी यह भी. नई दिल्ली: राधाकृष्ण पेपरबैक्स. पृ॰ ७०. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-8361-239-5.