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हज़ार घावों से भारत को कमज़ोर करो

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"भारत को हज़ार ज़ख्मों से कमज़ोर करना" (अंग्रेज़ी: Bleed India with [a] Thousand Cuts) पाकिस्तानी सेना द्वारा भारत के विरुद्ध अपनाया गया सैन्य सिद्धांत है।[1][2][3] इसमें कई स्थानों पर विद्रोहियों का उपयोग करके भारत के विरुद्ध गुप्त युद्ध छेड़ना शामिल है।[4] विश्लेषक अपर्णा पांडे के अनुसार, यह दृष्टिकोण पाकिस्तानी सेना द्वारा किये गए विभिन्न अध्ययनों में सामने रखा गया था, विशेष रूप से उसके स्टाफ कॉलेज, क्वेटा में इसकी नीव मानी जाती है।[5] पीटर चाक और क्रिस्टीन फेयर ने इस रणनीति को स्पष्ट करने के लिए इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (आईएसआई) के पूर्व निदेशक का हवाला दिया है।[6]

1965 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में दिए गए भाषण में पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री और पूर्व राष्ट्रपति जुल्फिकार अली भुट्टो ने भारत के खिलाफ एक हज़ार साल के युद्ध की घोषणा की थी।[7][8] रीतिका शर्मा लिखती हैं कि पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल जिया-उल-हक ने उग्रवाद और घुसपैठ के साथ गुप्त और कम तीव्रता वाले युद्ध का उपयोग करते हुए भुट्टो के "हज़ार साल के युद्ध" को 'हज़ार घाव के माध्यम से भारत को लहूलुहान (कमज़ोर) करने' के सिद्धांत के साथ आकार दिया।[9] इस सिद्धांत को पहली बार पंजाब में उग्रवाद के दौरान और फिर कश्मीर में उग्रवाद के दौरान पाकिस्तान के साथ भारत की पश्चिमी सीमा का उपयोग करते हुए लागू करने का प्रयास किया गया था।[10][11][12] पाकिस्तान ने भारत के सीमावर्ती राज्यों जम्मू-कश्मीर और पंजाब में धार्मिक-राजनीतिक उथल-पुथल को भड़काने के उद्देश्य से एक दुर्भावनापूर्ण रणनीति तैयार की है। इस रणनीति में भारत के लिए महत्वपूर्ण समस्याएँ पैदा करने के स्पष्ट इरादे से आतंक-प्रेरित हिंसा के कृत्यों का समर्थन और बढ़ावा देना शामिल है।[13]

मूल[संपादित करें]

भारत और पड़ोसी देशों की सीमाओं का एक राजनीतिक मानचित्र, जिसमें पाकिस्तान की सापेक्ष स्थिति दर्शाई गई है

सामरिक सिद्धांत की उत्पत्ति का श्रेय जुल्फिकार अली भुट्टो को दिया जाता है, जो उस समय जनरल अयूब खान की सैन्य सरकार के सदस्य थे, जिन्होंने 1965 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में अपने भाषण के दौरान भारत के खिलाफ एक हज़ार साल के युद्ध की घोषणा की थी।[8] 1971 के युद्ध के लिए उनकी योजनाओं में सम्पूर्ण पूर्वी भारत को अलग कर उसे पूर्वी पाकिस्तान का "स्थायी हिस्सा" बनाना, कश्मीर पर कब्ज़ा करना और पूर्वी पंजाब को एक अलग 'खालिस्तान' में बदलना शामिल था।[14] पाकिस्तान के विखंडन के साथ युद्ध समाप्त होने के बाद, उन्होंने भारत पर "हज़ार घाव" लगाकर संघर्ष जारी रखने का सिद्धांत प्रस्तुत किया।[15] द पायनियर के अनुसार, भुट्टो ने घोषणा की कि भारत को नष्ट करने के अपने 'राष्ट्रीय' लक्ष्य में पाकिस्तान की सफलता केवल "अपनी राजनीतिक संरचना पर हज़ार घाव करके" ही संभव होगी, न कि सीधे पारंपरिक युद्ध के ज़रिए। घोषणा का एक उद्देश्य पाकिस्तान के सामने मौजूद आंतरिक समस्याओं से जनता का ध्यान हटाना था।[16]

5 जुलाई 1977 को भुट्टो को उनके सेना प्रमुख जनरल जिया-उल-हक ने एक सैन्य तख्तापलट के तहत पदच्युत कर दिया था, तथा उसके बाद उन पर विवादास्पद तरीके से मुकदमा चलाकर उन्हें फांसी दे दी गई थी।[17][18]

1978 में जिया ने पाकिस्तान के राष्ट्रपति का पद संभाला और हज़ार ज़ख्म नीति ने आकार लेना शुरू कर दिया। 1971 के युद्ध में पाकिस्तान की हार के बाद, पाकिस्तान का विभाजन हुआ और बांग्लादेश का निर्माण हुआ। युद्ध ने स्पष्ट कर दिया कि कश्मीर को अब पारंपरिक युद्ध से भारत से नहीं लिया जा सकता।[19][20] जिया ने उग्रवाद और घुसपैठ के साथ गुप्त और कम तीव्रता वाले युद्ध का उपयोग करते हुए भुट्टो के "हज़ार साल के युद्ध" को 'भारत को हज़ारो घावों से कमज़ोर करने' के सिद्धांत के साथ लागू किया।[9][11][10]

पंजाब में[संपादित करें]

पाकिस्तान 1970 के दशक से ही भारतीय पंजाब में सिख अलगाववादी आंदोलन की मदद करता रहा है।[21] S1980 के दशक की शुरुआत से ही पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई ने भिंडरावाले के उग्रवादी सिख अनुयायियों की मदद करने और उन्हें हथियार और गोला-बारूद मुहैया कराने के लिए अपने मुख्यालय में एक विशेष पंजाब सेल बनाया था। युवा सिखों को प्रशिक्षित करने के लिए पाकिस्तान के लाहौर और कराची में आतंकवादी प्रशिक्षण शिविर स्थापित किए गए थे।[21] हामिद गुल (जिन्होंने आईएसआई का नेतृत्व किया था) ने पंजाब में उग्रवाद के बारे में कहा था कि "पंजाब को अस्थिर रखना वैसा ही है जैसे पाकिस्तानी सेना को करदाताओं से कोई शुल्क लिए बिना एक अतिरिक्त डिवीजन मिल जाए।"[4] 26 फरवरी, 2023 को पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने दावा किया कि खालिस्तान समर्थकों को पाकिस्तान और कई अन्य देशों से वित्तीय सहायता मिल रही है। यह बयान राज्य में व्याप्त अशांति की पृष्ठभूमि में आया है, जिसे खालिस्तान समर्थक अमृतपाल सिंह और उसके अनुयायियों की हालिया हरकतों से बढ़ावा मिला है।[22]

कश्मीर में[संपादित करें]

सोवियत-अफ़गान युद्ध के समापन के बाद, सुन्नी मुजाहिदीन और अन्य इस्लामी उग्रवादियों के लड़ाकों ने अफ़गानिस्तान से सोवियत सेना को सफलतापूर्वक हटा दिया था। पाकिस्तान की सैन्य और नागरिक सरकार ने "हज़ार घाव" सिद्धांत के अनुसार कश्मीर संघर्ष में भारतीय सशस्त्र बलों के खिलाफ़ इन उग्रवादियों का इस्तेमाल करने की कोशिश की ताकि पाकिस्तान के परमाणु शस्त्रागार को ढाल के रूप में इस्तेमाल करके "भारत को ख़ून से कमज़ोर किया जा सके।"[16][23] 1980 के दशक में कश्मीर क्षेत्र में सीमा पार आतंकवाद शुरू हुआ, क्योंकि सीमा पार से आतंकवादियों के सशस्त्र और अच्छी तरह से प्रशिक्षित समूह भारत में घुसपैठ कर रहे थे। पाकिस्तान ने आधिकारिक तौर पर कहा कि कश्मीर में आतंकवाद कश्मीरियों का "स्वतंत्रता संघर्ष" है और पाकिस्तान ने उन्हें केवल नैतिक समर्थन दिया है। लेकिन यह गलत साबित हुआ क्योंकि इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (आईएसआई) के महानिदेशक ने पाकिस्तान की नेशनल असेंबली में कहा कि आईएसआई कश्मीर में इस समर्थन को प्रायोजित कर रही थी।[19] पाकिस्तान ने भारत के साथ विषम युद्ध करने के लिए जिहादी मिलिशिया का इस्तेमाल किया है।[24] आतंकवादी समूहों का इस्तेमाल न केवल छद्म रूप में किया गया है, बल्कि मुख्य रूप से पाकिस्तान के "भारत को ज़ख्मी करो" अभियान के लिए भारत के खिलाफ "हथियार" के रूप में किया गया है।[25]

कश्मीर में जिहादियों की घुसपैठ कराने की "भारत को रक्तरंजित करो" रणनीति से जुड़े एक जनरल के अनुसार:

इसने पाकिस्तान के लिए बहुत कम लागत पर 700,000 भारतीय सैनिकों और अर्धसैनिक बलों को कश्मीर में बनाए रखा; साथ ही, इसने यह सुनिश्चित किया कि भारतीय सेना पाकिस्तान को धमकी न दे सके, भारत के लिए भारी व्यय पैदा किया, और इसे सैन्य और राजनीतिक दृष्टि से उलझाए रखा।[26]

मई 1998 में भारत ने पोखरण-II में अपने परमाणु हथियारों का परीक्षण किया, जिसके बाद पाकिस्तान ने भी परमाणु परीक्षण किया।[27][24] कश्मीरी आतंकवादियों के रूप में प्रच्छन्न पाकिस्तानी सैनिकों की घुसपैठ के कारण, नियंत्रण रेखा के भारतीय पक्ष में भौगोलिक रूप से सीमित कारगिल युद्ध हुआ,[28] जिसके दौरान पाकिस्तानी विदेश सचिव शमशाद अहमद ने एक परोक्ष परमाणु धमकी जारी की कि, 'हम अपनी क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा के लिए अपने शस्त्रागार में किसी भी हथियार का उपयोग करने में संकोच नहीं करेंगे।'[29]

1999 में कारगिल युद्ध के बाद, कारगिल समीक्षा समिति ने एक रिपोर्ट जारी की जिसमें पाकिस्तान द्वारा भारत को नुकसान पहुँचाने की अवधारणा का संदर्भ दिया गया था। अध्याय 12, "क्या कारगिल को टाला जा सकता था?" में, रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर युद्ध से पहले कारगिल का "सियाचिनीकरण" हुआ होता, अगर सेना पूरे साल एक बड़े क्षेत्र में तैनात रहती, तो इसका बहुत बड़ा नुकसान होता "और पाकिस्तान को भारत को नुकसान पहुँचाने में मदद मिलती"।[30][31]

13 दिसम्बर 2001 को भारतीय संसद पर आतंकवादी हमला हुआ (जिस दौरान इमारत पर हमला करने वाले पांच आतंकवादियों सहित बारह लोग मारे गए) और 1 अक्टूबर 2001 को जम्मू और कश्मीर विधान सभा पर आतंकवादी हमला हुआ।[32] भारत ने दावा किया कि ये हमले भारतीय प्रशासित कश्मीर से लड़ने वाले दो पाकिस्तान स्थित आतंकवादी समूहों, लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद द्वारा किए गए थे, जिनके बारे में भारत ने कहा है कि दोनों को पाकिस्तान की आईएसआई[33] का समर्थन प्राप्त है, लेकिन पाकिस्तान ने इस आरोप से इनकार किया है।[34][35][36] भारत और पाकिस्तान के बीच 2001-02 के भारत-पाकिस्तान गतिरोध के लिए जिम्मेदार दोहरे हमलों के जवाब में भारत द्वारा सैन्य निर्माण शुरू किया गया था। सीमा के दोनों ओर और कश्मीर के क्षेत्र में नियंत्रण रेखा (एलओसी) पर सैनिकों को एकत्र किया गया था। अंतर्राष्ट्रीय मीडिया ने दोनों देशों के बीच परमाणु युद्ध की संभावना और निकटवर्ती अफ़गानिस्तान में अमेरिकी नेतृत्व वाले "आतंकवाद पर वैश्विक युद्ध" पर संभावित संघर्ष के निहितार्थों की सूचना दी। अंतर्राष्ट्रीय कूटनीतिक मध्यस्थता के बाद तनाव कम हुआ जिसके परिणामस्वरूप अक्टूबर 2002 में अंतर्राष्ट्रीय सीमा से भारतीय[37] और पाकिस्तानी सैनिकों[38] की वापसी हुई।

गंभीर उकसावे के बावजूद, भारत द्वारा सैन्य जवाबी कार्रवाई न करने को पाकिस्तान की परमाणु क्षमता द्वारा भारत को सफलतापूर्वक रोकने के सबूत के रूप में देखा गया।[1][39][40] डेविड ए. रॉबिन्सन के अनुसार परमाणु प्रतिरोध ने कुछ पाकिस्तानी तत्वों को भारत को और भड़काने के लिए प्रोत्साहित किया है। उन्होंने आगे कहा कि पाकिस्तान की "असमान परमाणु वृद्धि मुद्रा" ने भारत की पारंपरिक सैन्य शक्ति को बाधित किया है और बदले में पाकिस्तान की "महत्वपूर्ण प्रतिशोध के डर के बिना भारत को हज़ारों घावों से कमज़ोर करने की आक्रामक रणनीति" को सक्षम बनाया है।[40]

वर्तमान स्थिति[संपादित करें]

वर्तमान में, बांग्लादेश[41](गैर-सरकारी प्रायोजित) और पाकिस्तान में उग्रवादी इस्लामवादी चरमपंथी, हरकत-उल-जिहाद अल-इस्लामी (हूजी)[42] जैसे नामित आतंकवादी समूहों के माध्यम से भारत पर आतंकवादी हमले करने के लिए एकजुट हो गए हैं।[43] 2015 में, एक पाकिस्तानी उच्चायोग कर्मचारी जो बांग्लादेश में ISI एजेंट था, उसे पाकिस्तान द्वारा वापस बुला लिया गया था क्योंकि खुफिया सूत्रों द्वारा आतंकवादी गतिविधियों के वित्तपोषण और नकली भारतीय मुद्रा नोट रैकेट में उसकी संलिप्तता की सूचना दी गई थी। वह आतंकवादी संगठनों हिज्ब उत-ताहिर, अंसारुल्लाह बांग्ला टीम और जमात-ए-इस्लामी के वित्तपोषण में शामिल था।[44] दिसंबर 2015 में, एक अन्य पाकिस्तानी राजनयिक, जो उच्चायोग में द्वितीय सचिव थे, को जमात-उल-मुजाहिदीन बांग्लादेश के साथ संबंधों के कारण वापस बुला लिया गया था।[45] डेली स्टार ने बताया कि बांग्लादेश में नकली भारतीय मुद्रा के साथ पाकिस्तानी नागरिकों की गिरफ्तारी एक "सामान्य घटना" है।[44] बांग्लादेश में, हूजी-बी प्रशिक्षण के लिए सुरक्षित क्षेत्र उपलब्ध कराने के साथ-साथ भारत में सीमा पार करने में भी सहायता करता है।[42]

पाकिस्तान ने भारत को हज़ार घाव देकर खून बहाने का फ़ैसला कर लिया है। यह पाकिस्तान की नीति है। भारत की मदद से बांग्लादेश का निर्माण उनके लिए बहुत अपमानजनक हार थी और उन्हें लगता है कि यह उस हार का बदला लेने का एक तरीका है। वे हमारे सुरक्षा बलों को हताहत करके और लोगों के बीच उत्पात मचाकर इस हार का बदला ले रहे हैं। — 2018 में भारतीय सेनाद्यक्ष बिपिन रावत[46]

पाकिस्तानी टिप्पणीकार परवेज़ हुडभॉय के अनुसार, "पाकिस्तान की 'हज़ार घाव' नीति खस्ताहाल है"।[47] भारत अपनी ताकत को कमज़ोर किए बिना अपने नुकसान से उबरने में सक्षम था। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को "जिहाद" शब्द का उपयोग पसंद नहीं है और इस शब्द का इस्तेमाल अक्सर आतंकवादी संगठनों द्वारा उनके आतंकी कृत्यों को संदर्भित करने के लिए किया जाता है, जिसके कारण इस शब्द को आतंकवाद से संबंधित माना जाता है, भले ही यह शब्द वास्तव में उससे संबंधित न हो।[48][49] पाकिस्तान द्वारा "कश्मीर में जिहाद" नामक गुप्त युद्ध जारी रखने से पाकिस्तान की कश्मीर नीति के लिए अंतर्राष्ट्रीय समर्थन में कमी आई है,[50][51] और हर जिहादी हमले से पाकिस्तान का नैतिक स्तर कम होता जा रहा है।[47] एफएटीएफ वोट के केन्द्र में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर घोषित पाकिस्तानी आतंकवादी हाफिज सईद था, जिसे भारत जम्मू और कश्मीर में विभिन्न हमलों के लिए जिम्मेदार मानता है।[52]

मई 2016 में एक साक्षात्कार में अमेरिका में पाकिस्तान के पूर्व राजदूत ने कहा:[53]

पाकिस्तान जिहाद को भारत को नुकसान पहुंचाने का सस्ता विकल्प मानता है। सुरक्षा तंत्र आतंकवाद को अनियमित युद्ध मानता है। इस्लामाबाद को लगता है कि सैन्य समानता सुनिश्चित करने का यही एकमात्र तरीका है। — हुसैन हक्कानी (2016 में पाकिस्तानी राजदूत), बिजनस स्टैन्डर्ड व भारतीय-एशियाई समाचार सेवा

यह भी देखें[संपादित करें]

ग्रंथसूची[संपादित करें]

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संदर्भ[संपादित करें]

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