स्वामी विवेकानन्द का प्रभाव एवं विरासत

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स्वामी विवेकानन्द

स्वामी विवेकानन्द उन्नीसवीं सदी के भारतीय हिंदू भिक्षु, आधुनिक भारत और हिंदू धर्म के सबसे प्रभावशाली लोगों में से एक माने जाते हैं। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के कार्यकर्ता सुभाष चंद्र बोस विवेकानन्द को अपना आध्यात्मिक गुरु मानते थे। महात्मा गांधी ने कहा कि विवेकानन्द के कार्यों को पढ़ने के बाद उनका राष्ट्र के प्रति प्रेम हजारों गुना बढ़ गया। संयुक्त राज्य अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने नवंबर 2010 में भारत में दिए गए अपने भाषण में विवेकानन्द के शब्दों को उद्धृत किया। भारत में स्वामी विवेकानंद के 150वें जयंती पर भारतीय रेलवे ने चार जोड़े विवेक एक्सप्रेस सौगात दी।

उल्लेखनीय भारतीयों पर प्रभाव[संपादित करें]

1886 में "उच्च बुद्धि, कर्म और भक्ति के संन्यासी" बनने के बाद, विवेकानन्द के मन में पूरे देश में "अस्तित्व की दिव्य एकता और विविधता में एकता" का संदेश फैलाने का दृढ़ संकल्प लिया।[1] तब विवेकानन्द ने एक परिव्राजक के रूप में, जिसका अर्थ है : "एक भटकता हुआ भिक्षु", देश भर में यात्रा की। लगभग दो वर्षों तक, उन्होंने पूरे भारत में उत्तर से दक्षिण तक यात्रा की, और कई उल्लेखनीय लोगों से मित्रता की और उन्हें अपने अद्वैत-वेदांत दर्शन से प्रभावित किया और उनमें से कई ने उन्हें विश्व धर्म संसद शिकागो में भाग लेने के लिए अमेरिका की यात्रा करने के लिए प्रोत्साहित और समर्थन भी किया। इनमें से कुछ प्रमुख नाम राजस्थान के खेतड़ी के अजीत सिंह, गुजरात में पोरबंदर और जूनागढ़ के दीवान, मद्रास के रामनाड के राजा, के॰ शेषाद्रि अय्यर, मैसूर के दीवान और चामराजा वोडेयार इत्यादि का नाम उल्लेखनीय हैं।[2]

महात्मा गांधी पर प्रभाव[संपादित करें]

बाल गंगाधर तिलक (1856-1920) ने कहा कि स्वामी विवेकानन्द ने दुनियाँ भर में हिंदू धर्म का प्रचार किया। महात्मा गाँधी ने कहा था कि विवेकानन्द के कार्यों को पढ़ने के बाद उनका राष्ट्र के प्रति प्रेम हज़ार गुना बढ़ गया।

6 फरवरी 1921 को महात्मा गांधी बेलूरमठ गये और विवेकानन्द को श्रद्धांजलि अर्पित की। इस अवसर पर उन्होंने कहा :[3]


मैं यहाँ स्वामी विवेकानन्द की श्रद्धेय स्मृति को अपनी श्रद्धांजलि और सम्मान देने आया हूँ, जिनका आज जन्मदिन मनाया जा रहा है। मैंने उनके कार्यों को बहुत गहराई से पढ़ा है और उन्हें पढ़ने के बाद मेरे मन में अपने देश के प्रति जो प्रेम था, वह हज़ार गुना बढ़ गया।[4] नवयुवकों! मैं आपसे अनुरोध करता हूँ कि उस स्थान की भावना को आत्मसात किए बिना खाली हाथ न जाएँ जहाँ स्वामी विवेकानंद रहते थे और उनकी मृत्यु हुई थी।

बिराशत[संपादित करें]

फिल्में[संपादित करें]

स्वामी विवेकानन्द की कई बंगाली फिल्म, नाटक और लोक साहित्य प्राथमिक विषय के रूप रहे हैं। बंगाली फिल्म निर्देशक अमर मल्लिक ने दो अलग-अलग फिल्में बनाईं—स्वामीजी (1949) और इसका हिंदी में रूपांतरण, स्वामी विवेकानंद (1955)। माना जाता है। यह फिल्म 12 जून 1998 को रिलीज़ हुई थी। इसका सीधा प्रसारण दूरदर्शन पर किया गया था‌।[5]

नाटक[संपादित करें]

बंगाली थिएटर ग्रुप लोककृष्टि ने विवेकानन्द जयंती मनाने के लिए बिली नाटक का मंचन किया। इस नाटक में बंगाली थिएटर अभिनेता देबशंकर हलदर ने स्वामी विवेकानन्द की भूमिका निभाई थी।[6] 2013 में बेलघरिया शंखमाला थिएटर ग्रुप ने बिरेश्वर नाटक का मंचन किया। नाटक बासब दासगुप्ता द्वारा लिखा गया था और देवेश चट्टोपाध्याय द्वारा निर्देशित किया गया था।[7]

संदर्भ[संपादित करें]

  1. "स्वामी विवेकानन्द का जीवन और शिक्षाएँ : भाग 7 आत्मा ऊँची उड़ान भरना चाहती थी।". नव-वेदांत के लिए अंतर्राष्ट्रीय मंच।. अभिगमन तिथि 29 सितम्बर 2013.
  2. राजगोपाल चट्टोपाध्याय (1 जनवरी 1999). भारत में स्वामी विवेकानन्द : एक सुधारात्मक जीवनी।. मोतीलाल बनारसीदास. पपृ॰ 95–. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-208-1586-5. अभिगमन तिथि 29 सितम्बर 2013.
  3. "स्वामी विवेकानन्द पर महात्मा गांधी के उद्धरण". स्वामी विवेकानंद उद्धरण. मूल से 20 दिसंबर 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 20 दिसंबर 2013.
  4. नेहरू ने विवेकानन्द के धर्मनिरपेक्ष विचारों को फैलाने में मदद की, टाइम्स ऑफ इंडिया, 27 मई
  5. "थोड़ा ले लो, अधिकांश छोड़ दो..." द इण्डियन एक्सप्रेस. मूल से 26 सितम्बर 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 26 सितम्बर 2013.
  6. "थिएटर समीक्षा बिली". मूल से 15 नवम्बर 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 4 मार्च 2013.
  7. "মন নিকেতন (Bireswar drama review)". Anandabazar Patrika. मूल से 29 सितम्बर 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 29 सितम्बर 2013.