स्वामी विवेकानंद की शिक्षा और दर्शन

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स्वामी विवेकानंद एक भारतीय हिंदू भिक्षु,दार्शनिक,लेखक,धार्मिक शिक्षक और भारतीय रहस्यवादी तथा रामकृष्ण परमहंस के प्रमुख शिष्य थे। [1] [2] वे पश्चिमी दुनिया में वेदांत और योग की शुरुआत करनेवाले एक प्रमुख व्यक्ति थे। उन्हें अंतर-विश्वास जागरूकता बढ़ाने और हिंदू धर्म को एक प्रमुख विश्व धर्म की स्थिति में लाने का श्रेय दिया जाता है।[3][4] उनकी शिक्षाएँ और दर्शन पश्चिमी अध्यात्मवाद और सार्वभौमिकता के साथ-साथ हिंदू विचारों के विभिन्न पहलुओं जैसे शास्त्रीय योग और (अद्वैत) वेदांत की पुनर्व्याख्या और संश्लेषण है।उन्होंने धर्म को राष्ट्रवाद के साथ मिश्रित किया, और इस पुनर्व्याख्या को शिक्षा,विश्वास,चरित्र निर्माण के साथ-साथ भारत से संबंधित सामाजिक मुद्दों के विभिन्न पहलुओं पर लागू किया। उनका प्रभाव पश्चिम तक भी फैला हुआ था। उन्होंने पश्चिम में योग की शुरुआत करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया था।

विवेकानंद ब्रह्म समाज, पश्चिमी सार्वभौमिकता और अध्यात्मवाद से प्रभावित थे। साथ हीं वे अपने गुरु रामकृष्ण से भी काफी प्रभावित थे, जो निरपेक्ष और सापेक्ष वास्तविकता को एक ही अभिन्न वास्तविकता के अद्वैत पहलुओं के रूप में मानते थे।

अद्वैत वेदांत[संपादित करें]

हिंदू धर्म में अधिकारवाद, उपनिषदों के सार्वभौमिक ज्ञान के अधिकार के संबंध में विशेष अधिकारों और विशेषाधिकारों का दावा करता है। विवेकानंद ने अधिकारवाद को अस्वीकार कर दिया, जो उनके विचार में, शुद्ध स्वार्थ का परिणाम था और उन्होंने मानव आत्मा की अनंत संभावनाओं और इस तथ्य की उपेक्षा की कि सभी मनुष्य ज्ञान प्राप्त करने में सक्षम हैं यदि यह उनके ज्ञान में प्रदान किया जाता है। [5][6]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. "Swami Vivekananda: A short biography". www.oneindia.com. अभिगमन तिथि 3 May 2017.
  2. "Life History & Teachings of Swami Vivekanand". अभिगमन तिथि 3 May 2017.
  3. "International Yoga Day: How Swami Vivekananda helped popularise the ancient Indian regimen in the West". 21 June 2017.
  4. Feuerstein 2002, पृ॰ 600.
  5. The Complete Works of Swami Vivekananda Vol.5. Kartindo.com. 1923. पृ॰ 361.[मृत कड़ियाँ] This article incorporates text from this source, which is in the सार्वजनिक डोमेन.
  6. The Complete Works of Swami Vivekananda by Swami Vivekananda Volume 5, Notes from Lectures and Discourses.