सुनीता-मगही का प्रथम उपन्यास

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सुनीता-मगही का प्रथम उपन्यास  
चित्र:Sunita-Magahi-Novel.jpg
सुनीता
लेखक जयनाथ पति
देश भारत
भाषा मगही
विषय सामाजिक
प्रकाशन तिथि 1927

सुनीता 1927 में रचित मगही भाषा का पहला उपन्यास है।[1] इसकी रचना नवादा (बिहार) के मोख्तार बाबू जयनाथ पति[2] ने की थी। उपन्यास की कथावस्तु सामाजिक रूढ़ि बेमेल विवाह और उसका नकार है।[3] सामाजिक वर्जना को तोड़ने और अंतरजातीय विवाह संबंध की वकालत करने वाले नायिका केन्द्रित इस उपन्यास को प्रकाशन के बाद समाज के उच्च जातियों का जबरदस्त विरोध का सामना करना पड़ा था।[4] वर्तमान में इस उपन्यास की एक भी प्रति उपलब्ध नहीं है।

उपन्यास की कथावस्तु[संपादित करें]

‘सुनीता’ 1930 के दशक में लिखा गया एक सामाजिक और क्रांतिकारी उपन्यास है। उपन्यास की नायिका सुनीता एक उच्च जाति वाले एक सभ्रांत परिवार की लड़की है। परिवार वाले उसका विवाह एक जाति-समाज के एक धनी लेकिन वृद्ध व्यक्ति से कर देते हैं। सुनीता इस अनमेल विवाह को पसंद नहीं करती है। बचपन से ही उसका लगाव गांव के एक निम्न जाति के लड़के के साथ रहता है जो युवावस्था में आपसी प्रेम में परिणत हो चुका है। वह परिवार-समाज द्वारा की गई शादी का बंधन तोड़कर अपने निम्न जातीय प्रेमी के चली जाती है। सुनीता का यह कदम उसके परिवार-समाज को बर्दाश्त नहीं होता है। उसके बिरादरी वाले कचहरी में मुकदमा दायर कर सुनीता और उसके प्रेमी को दंडित कराना चाहते हैं। सुनीता इस सामाजिक और कानूनी हमले का प्रतिवाद करती है। बड़ी बहादुरी से वह समाज और मुकदमे का सामना करती है और अंततः विजयी होती है।

उपन्यास की आलोचना[संपादित करें]

‘सुनीता’ उपन्यास पर पहली परिचयात्मक समीक्षा सुप्रसिद्ध भाषाविद् सुनीति कुमार चटर्जी ने लिखी है। अप्रैल 1928 के ‘द मॉडर्न रिव्यू’ में वे लिखते हैं, ‘दक्षिण बिहार की मगही भाषा में अपनी तरह का यह पहला प्रकाशन है जिसके द्वारा हमारे समक्ष एक भयावह सामाजिक बुराई का उद्घाटन होता है। मगही समाज के जिन कुछ पहलुओं की तस्वीर इस कहानी में चित्रित की गई है, निःसंदेह वे अत्यंत विश्वनीय हैं, लेकिन इसमें चरित्रों का बहुत अधिक विकास नहीं हो सका है। यह एक छोटा-सा काम है परंतु प्राथमिक तौर पर भाषाई दृष्टि से बेशकीमती है। ...एक कृति के रूप में इस मौजूदा प्रयास को आने वाले दिनों में भारतीय भाषा और सामाजिक नृवंशविज्ञान के छात्रा निश्चित रूप से याद करेंगे क्योंकि इसमें भाषाई और सामाजिक तथ्यों का संग्रहण है।’[5]

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. रासबिहारी पांडेय, मगही साहित्य व साहित्यकार, लोकसाहित्य संगम, 1976
  2. Bindeshwari Prasad Sinha, Kayasthas in Making of Modern Bihar, Impression Publication, 2003, p 252
  3. मगही साहित्य का इतिहास, मगही अकादमी, 1998
  4. मुख बंध, ‘फूल बहादुर’, दूसरा संस्करण, 1974
  5. ‘द मॉडर्न रिव्यू’, अंक 43, अप्रैल 1928, कलकत्ता विश्वविद्यालय, कलकत्ता, पृष्ठ 430