सिन्धुताई सपकाल
सिन्धुताई सपकाल | |
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जन्म |
14 नवम्बर 1948 वर्धा, महाराष्ट्र, भारत |
मौत |
04 जनवरी 2022 पुणे, महाराष्ट्र |
आवास | हदप्सार, पुणे |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
उपनाम | अनाथों की माँ |
प्रसिद्धि का कारण | अनाथ बच्चों की देख रेख और पालन-पोषण |
धर्म | इंसान |
जीवनसाथी | श्रीहरि सपकाल |
बच्चे |
एक पुत्री, तीन पुत्र 1042 गोद लिये हुए |
सिन्धुताई सपकाल (14 नवम्बर 1948 -- 04 जनवरी 2022) अनाथ बच्चों के लिए कार्य करनेवाली भारत की एक सामाजिक कार्यकर्ता थीं। उन्होने अपने जीवन मे अनेक समस्याओं के बावजूद अनाथ बच्चों को सम्भालने का कार्य किया। उनके सामाजिक कार्यों के लिये सन २०२१ में भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया।
जन्म और बचपन
[संपादित करें]सिन्धुताई का जन्म १४ नवम्बर १९४८ को महाराष्ट्र के वर्धा जिले के 'पिंपरी मेघे' गाँव मे हुआ। उनके पिताजी का नाम 'अभिमान साठे' है, जो कि एक चरवाह (जानवर चरानेवाले) थे। लैंगिक भेदभाव के चलते उन्हें घर में 'चिंधी' (कपड़े का फटा टुकड़ माँ के विरोध और आर्थिक सीमाओं के रहते इनकी शिक्षा मे बाधाएँ आती रही और इनकी शिक्षा चौथी कक्षा तक ही हो पाई।
विवाह और समाजसेवा का आरम्भ
[संपादित करें]१० वर्ष की आयु में ही सिंधुताई का विवाह ३० वर्षीय 'श्रीहरी सपकाळ' से कर दिया गया। २० वर्ष की आयु तक उनकी ३ सन्तानें हो चुकी थी। सिन्धुताई ने जिल्हा अधिकारी से गाँववालों को उनकी मजदूरी के पैसे ना देनेवाले गाँव के मुखिया की शिकायत की थी। अपने इस अपमान का बदला लेने के लिए मुखिया ने श्रीहरी (सिन्धुताई के पति) को सिन्धुताई को घर से बाहर निकालने के लिए प्रवृत्त किया। उनके पति ने उन पर अवैध यौन संबंधों का आरोप लगाकर उन्हें पीटकर घर से निकाल दिया। इस समय वे ९ महीने गर्भवती थी। उसी रात उन्होने तबेले (गाय-भैंसों के रहने की जगह) में अर्धचेतन अवस्था में एक बेटी को जन्म दिया। जब वे अपनी माँ के घर आई तो उनकी माँ ने उन्हे घर मे रखने से इंकार कर दिया (उनके पिताजी का देहान्त हुआ था वरना वे अवश्य अपनी बेटी को सहारा देते)। सिन्धुताई अपनी बेटी के साथ रेल्वे स्टेशन पर रहने लगी। पेट भरने के लिए भीख माँगती और रात को खुद को और बेटी को सुरक्षित रखने हेतु शमशान मे रहती। उनके इस संघर्षमय काल मे उन्होंने यह अनुभव किया कि देश मे कितने सारे अनाथ बच्चे है जिनको एक माँ की जरुरत है। तब से उन्होने निर्णय लिया कि जो भी अनाथ उनके पास आएगा वे उनकी माँ बनेंगी। उन्होने अपनी खुद की बेटी को 'श्री दगडुशेठ हलवाई, पुणे, महाराष्ट्र' ट्र्स्ट मे गोद दे दिया ताकि वे सारे अनाथ बच्चों की माँ बन सके।
समाजकार्य और सिन्धुताईका परिवार
[संपादित करें]सिन्धुताई ने अपना पूरा जीवन अनाथ बच्चों के लिए समर्पित किया। इसलिए उन्हे "माई" (माँ) कहा जाता है। उन्होने १०५० अनाथ बच्चों को गोद लिया है। उनके परिवार मे आज २०७ दामाद और ३६ बहुएँ हैं। १००० से भी ज्यादा पोते-पोतियाँ है। उनकी अपनी बेटी वकील है और उन्होने गोद लिए बहुत सारे बच्चे आज डॉक्टर, अभियन्ता, वकील हैं और उनमे से बहुत सारे खुदका अनाथाश्रम भी चलाते हैं।
सिन्धुताई को कुल २७३ राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हुए हैं जिनमें "अहिल्याबाई होऴकर" पुरस्कार है जो स्त्रियों और बच्चों के लिए काम करनेवाले समाजसेवियों को महाराष्ट्र सरकार द्वारा दिया जाता है। इस धन को वे अनाथाश्रम के लिए इस्तेमाल करती हैं। उनके अनाथाश्रम पुणे, वर्धा, सासवड (महाराष्ट्र) मे स्थित है। २०१० साल मे सिन्धुताई के जीवन पर आधारित मराठी चित्रपट "मी सिन्धुताई सपकाळ" बनाया गया, जो ५४ वें लंडन चित्रपट महोत्सव के लिए चुना गया था।
सिन्धुताई के पति जब 80 साल के हो गये तब वे उनके साथ रहने के लिए आए। सिन्धुताई ने अपने पति को एक बेटे के रूप मे स्वीकार किया ये कहते हुए कि अब वो सिर्फ एक माँ है। आज वे बडे गर्व के साथ बताती है कि वो (उनके पति) उनका सबसे बडा बेटा है।
सिन्धुताई कविता भी लिखती है। और उनकी कविताओं मे जीवन का पूरा सार होता है। वे अपनी माँ के प्रति आभार प्रकट करती हुई कहती हैं कि अगर उनकी माँ ने उनको पति के घर से निकालने के बाद घर मे सहारा दिया होता तो आज वो इतने सारे बच्चों की माँ नहीं बन पाती।
सिंधुताई ने अन्य समकक्ष संस्था की स्थापना की वह निम्नलिखित है-
बाल निकेतन हडपसर, पुणे
सावित्रीबाई फुले लडकियों का वसतिगृह, चिखलदरा
अभिमान बाल भवन, वर्धा
गोपिका गाईरक्षण केंद्र, वर्धा ( गोपालन)
ममता बाल सदन, सासवड
सप्तसिंधु महिला आधार बालसंगोपन व शिक्षणसंस्था, पुणे
- आंतरराष्ट्रीय स्तर पर
सिंधुताई ने अपनी संस्था के प्रचार के लिए और कार्य के लिए निधी संकलन करने के हेतू से प्रदेश दौरे किए आंतरराष्ट्रीय मंचपर उन्होंने अपनी वाणी और काव्य से समाज को प्रभावित किया है। विदेशी अनुदान आसानी पूर्वक मिले इस उद्देश से उन्होंने मदर ग्लोबल फाउंडेशन संस्था की स्थापना की।
पुरस्कार व गौरव
पुरस्कार
[संपादित करें]- कुल २७३ पुरस्कार,
- अहिल्याबाई होळकर पुरस्कर (महाराष्ट्र राज्य द्वारा),
- राष्ट्रीय पुरस्कार "आयकौनिक मदर",
- सह्याद्रि हिरकणी पुरस्कार्,
- राजाई पुरस्कार,
- शिवलीला महिला गौरव पुरस्कार,
- दत्तक माता पुरस्कार,
- रियल हिरोज पुरस्कार (रिलायन्स द्वारा),
- गौरव पुरस्कार सिंधुताईं को लगभग ७५० राष्ट्रीय और आंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिले है उसमें के कुछ उस प्रकार है:-
महाराष्ट्र शासन का डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर समाज भूषण पुरस्कार (२०१२)
पुणे का अभियांत्रिकी कॉलेज का 'कॉलेज ऑफ इंजिनिअरिंग पुरस्कार' (२०१२)
महाराष्ट्र शासन का 'अहिल्याबाई होलकर पुरस्कार' (२०१०)
मूर्तिमंत माँ के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार (२०१३)
आयटी प्रॉफिट ऑर्गनायझेशनचा दत्तक माता पुरस्कार (१९९६)
सोलापूर का डॉ. निर्मलकुमार फडकुले स्मृती पुरस्कार
राजाई पुरस्कार
शिवलीला महिला गौरव पुरस्कार
श्रीरामपूर-अहमदगर जिले में सुनीता कलानिकेतन न्यासातर्फे स्वर्गीय सुनीता त्र्यंबक कुलकर्णी इनके स्मृति में दिया जानेवाला 'सामाजिक सहयोगी पुरस्कार' (१९९२)
सीएनएन-आयबीएन और रिलायन्स फाउंडेशनने दिया 'रिअल हीरो पुरस्कार' (२०१२)
२००८ - दैनिक लोकसत्ता का'सह्याद्री की हिरकणी पुरस्कार'
प्राचार्य शिवाजीराव भोसले स्मृती पुरस्कार (२०१५)
डॉ. राम मनोहर त्रिपाठी पुरस्कार (२०१७)
प्रकाशन
[संपादित करें]- आत्मचरित्र
- मी वनवासी (नवरंग प्रकाशन)