सामाजिक मीडिया

सामाजिक माध्यम या सोशल मीडिया से आशय पारस्परिक संबंध के लिए अंतर्जाल या अन्य माध्यमों द्वारा निर्मित आभासी समूहों से है। यह व्यक्तियों और समुदायों के साझा, सहभागी बनाने का माध्यम है। इसका उपयोग सामाजिक संबंध के अलावा उपयोगकर्ता सामग्री के संशोधन के लिए उच्च पारस्परिक मंच बनाने के लिए मोबाइल और वेब आधारित प्रौद्योगिकियों के प्रयोग के रूप में भी देखा जा सकता है।
स्वरूप
[संपादित करें]सोशल मीडिया के कई रूप हैं जिनमें कि इन्टरनेट फोरम, वेबलॉग, सामाजिक ब्लॉग, माइक्रोब्लागिंग, विकीज, सोशल नेटवर्क, पॉडकास्ट, फोटोग्राफ, चित्र, चलचित्र आदि सभी आते हैं। अपनी सेवाओं के अनुसार सोशल मीडिया के लिए कई संचार प्रौद्योगिकी उपलब्ध हैं। उदाहरणार्थ-

- सहयोगी परियोजना (उदाहरण के लिए, विकिपीडिया)
- ब्लॉग और माइक्रोब्लॉग (उदाहरण के लिए, ट्विटर, कू)
- सोशल खबर नेटवर्किंग साइट्स (उदाहरण के लिए डिग और लेकरनेट)
- सामग्री समुदाय (उदाहरण के लिए, यूट्यूब और डेली मोशन)
- सामाजिक नेटवर्किंग साइट (उदाहरण के लिए, फेसबुक)
- आभासी खेल दुनिया (जैसे, वर्ल्ड ऑफ़ वॉरक्राफ्ट)
- आभासी सामाजिक दुनिया (जैसे सेकंड लाइफ)[1]
विशेषता
[संपादित करें]सोशल मीडिया अन्य पारंपरिक तथा सामाजिक तरीकों से कई प्रकार से एकदम अलग है। इसमें पहुँच, आवृत्ति, प्रयोज्य, ताजगी और स्थायित्व आदि तत्व शामिल हैं। इन्टरनेट के प्रयोग से कई प्रकार के प्रभाव होते हैं। निएलसन के अनुसार ‘इन्टरनेट प्रयोक्ता अन्य साइट्स की अपेक्षा सामाजिक मीडिया Archived 2022-08-15 at the वेबैक मशीन साइट्स पर ज्यादा समय व्यतीत करते हैं’।
दुनिया में दो तरह की सभ्यताओं का दौर शुरू हो चुका है, वर्चुअल और फिजीकल सिविलाइजेशन। आने वाले समय में जल्द ही दुनिया की आबादी से दो-तीन गुना अधिक आबादी अंतर्जाल पर होगी। दरअसल, अंतर्जाल एक ऐसी टेक्नोलाजी के रूप में हमारे सामने आया है, जो उपयोग के लिए सबको उपलब्ध है और सर्वहिताय है। सोशल नेटवर्किंग साइट्स संचार व सूचना का सशक्त जरिया हैं, जिनके माध्यम से लोग अपनी बात बिना किसी रोक-टोक के रख पाते हैं। यही से सामाजिक मीडिया का स्वरूप विकसित हुआ है।[2]
व्यापारिक उपयोग
[संपादित करें]जन सामान्य तक पहुँच होने के कारण सामाजिक मीडिया को लोगों तक विज्ञापन पहुँचाने के सबसे अच्छा जरिया समझा जाता है। हाल ही के कुछ एक सालो में इंडस्ट्री में ऐसी क्रांति देखी जा रही है। फेसबुक जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर उपभोक्ताओं का वर्गीकरण विभिन्न मानकों के अनुसार किया जाता है जिसमें उनकी आयु, रूचि, लिंग, गतिविधियों आदि को ध्यान में रखते हुए उसके अनुरूप विज्ञापन दिखाए जाते हैं। इस विज्ञापन के सकारात्मक परिणाम भी प्राप्त हो रहे हैं साथ ही साथ आलोचना भी की जा रही है।[3]सोशल मीडिया से आप कई प्रकार से अपने व्यापार का विज्ञापन दे कर उसे आगे ले जा सकते हैं जिससे आपको बहुत मुनाफा भी होगा।
समालोचना
[संपादित करें]सोशल मीडिया की समालोचना विभिन्न प्लेटफार्म के अनुप्रयोग में आसानी, उनकी क्षमता, उपलब्ध जानकारी की विश्वसनीयता के आधार पर होती रही है। हालाँकि कुछ प्लेटफॉर्म्स अपने उपभोक्ताओं को एक प्लेटफॉर्म्स से दुसरे प्लेटफॉर्म्स के बीच संवाद करने की सुविधा प्रदान करते हैं पर कई प्लेटफॉर्म्स अपने उपभोक्ताओं को ऐसी सुविधा प्रदान नहीं करते हैं जिससे की वे आलोचना का केंद्र बिंदु बनते रहे हैं। वहीँ बढती जा रही सामाजिक मीडिया साइट्स के कई सारे नुकसान भी हैं। ये साइट्स ऑनलाइन शोषण का साधन भी बनती जा रही हैं। ऐसे कई केस दर्ज किए गए हैं जिनमें सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स का प्रयोग लोगों को सामाजिक रूप से हानि पहुँचाने, उनकी खिचाई करने तथा अन्य गलत प्रवृत्तियों से किया गया।[4][5][6]
सामाजिक मीडिया के व्यापक विस्तार के साथ-साथ इसके कई नकारात्मक पक्ष भी उभरकर सामने आ रहे हैं। पिछले वर्ष मेरठ में हुयी एक घटना ने सामाजिक मीडिया के खतरनाक पक्ष को उजागर किया था। वाकया यह हुआ था कि उस किशोर ने फेसबूक पर एक ऐसी तस्वीर अपलोड कर दी जो बेहद आपत्तीजनक थी, इस तस्वीर के अपलोड होते ही कुछ घंटे के भीतर एक समुदाय के सैकडों गुस्साये लोग सडकों पर उतार आए। जबतक प्राशासन समझ पाता कि माजरा क्या है, मेरठ में दंगे के हालात बन गए। प्रशासन ने हालात को बिगडने नहीं दिया और जल्द ही वह फोटो अपलोड करने वाले तक भी पहुँच गया। लोगों का मानना है कि परंपरिक मीडिया के आपत्तीजनक व्यवहार की तुलना में नए सामाजिक मीडिया के इस युग का आपत्तीजनक व्यवहार कई मायने में अलग है। नए सामाजिक मीडिया के माध्यम से जहां गडबडी आसानी से फैलाई जा सकती है, वहीं लगभग गुमनाम रहकर भी इस कार्य को अंजाम दिया जा सकता है। हालांकि यह सच नहीं है, अगर कोशिश की जाये तो सोशल मीडिया पर आपत्तीजनक व्यवहार करने वाले को पकडा जा सकता है और इन घटनाओं की पुनरावृति को रोका भी जा सकता है। केवल मेरठ के उस किशोर का पकडे जाना ही इसका उदाहरण नहीं है, वल्कि सोशल मीडिया की ही दें है कि लंदन दंगों में शामिल कई लोगों को वहाँ की पुलिस ने पकडा और उनके खिलाफ मुकदमे भी दर्ज किए। और भी कई उदाहरण है जैसे बैंकुअर दंगे के कई अहम सुराग में सोशल मीडिया की बडी भूमिका रही। मिस्र के तहरीर चैक और ट्यूनीशिया के जैस्मिन रिवोल्यूशन में इस सामाजिक मीडिया की महत्वपूर्ण भूमिका को कैसे नकारा जा सकता है।[7]
सोशल मीडिया की आलोचना उसके विज्ञापनों के लिए भी की जाती है। इस पर मौजूद विज्ञापनों की भरमार उपभोक्ता को दिग्भ्रमित कर देती है तथा ऐसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स एक इतर संगठन के रूप में काम करते हैं तथा विज्ञापनों की किसी बात की जवाबदेही नहीं लेते हैं जो कि बहुत ही समस्यापूर्ण है।[8][9]
दुष्प्रभाव
[संपादित करें]देव संस्कृति विश्वविद्यालय में सोशल मिडिया के दुष्प्रभाव को लेकर हुई शोध के अनुसार सोशल मीडिया के व्यसन का शिकार होने वाले विद्यार्थियों के निद्रा चक्र, भावनात्मक परिपक्वता और शैक्षणिक प्रदर्शन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। जो युवा प्रतिदिन सोशल मीडिया पर ज्यादा समय व्यतीत करते हैं, उनमें अनिद्रा की समस्या उत्पन्न हो जाती है। अच्छी नींद का सामान्य स्वास्थ्य से गहरा संबंध होता है। इसमें भी महिला वर्ग की तुलना में पुरुष वर्ग की शैक्षणिक योग्यता ज्यादा प्रभावित होती है। अतः नींद की अवधि में कमी अथवा व्यवधान आने से संपूर्ण स्वास्थ्य असंतुलित हो जाता है और धीरे - धीरे अनेक समस्याएँ प्रकट होने लगती हैं। अध्ययन के परिणामों में यह भी पाया गया है कि सोशल मीडिया की आदत में महिला वर्ग की अपेक्षा पुरुष वर्ग में नींद की गुणवत्ता ज्यादा प्रभावित होती है। शोध के द्वितीय मापदंड में भावनात्मक परिपक्वता के स्तर का सर्वेक्षण किया है। इस संदर्भ में यह देखा गया कि सोशल मीडिया का एडिक्शन युवाओं की भावनात्मक योग्यता पर नकारात्मक प्रभाव डालता है ।[10]
विद्यार्थियों में यह देखा गया है कि पढ़ाई की आवश्यक गतिविधियों; जैसे- कक्षाओं में पढ़ाई जाने वाली पाठ्य सामग्री, अध्यापकों से संवाद, पढ़ाई को लेकर सहपाठियों से पारस्परिक चर्चा जैसी अनेक महत्त्वपूर्ण शैक्षणिक उपलब्धियों को बढ़ाने वाली गतिविधियों में न्यूनता आ जाती है। फलस्वरूप इसका सीधा दुष्परिणाम विद्यार्थी की शैक्षणिक उपलब्धि पर दिखाई देता है। विद्यार्थियों की शैक्षणिक उपलब्धियों पर सोशल मीडिया की आदत का अत्यंत नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। शैक्षणिक गतिविधियों में लगने वाला कीमती समय जब सोशल साइट्स पर व्यतीत होने लगता है तो निश्चित रूप से विद्यार्थी के परीक्षा परिणाम पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। क्रोध, चिड़चिड़ापन, आवेश, आलस्य, निराशा, आत्महीनता, आत्मविश्वास में कमी जैसी अनेक मनोव्याधियों के उत्पन्न होने का प्रमुख कारण भावनात्मक परिपक्वता के स्तर में कमी ही है। अकेलापन महसूस करना, अवसाद, तनाव जैसी गंभीर समस्याएँ सोशल मीडिया के व्यसनी लोगों में सामान्य बात है। महिला वर्ग की भावनात्मक योग्यता पुरुष वर्ग की तुलना में ज्यादा प्रभावित होती है।[10]
सामाजिक संचार-माध्यम, भारतीय भाषाएँ तथा हिन्दी
[संपादित करें]जब इंटरनेट ने भारत में पांव पसारने शुरू किए तो यह आशंका व्यक्त की गई थी कि कंप्यूटर के कारण देश में फिर से अंग्रेज़ी का बोलबाला हो जाएगा। किंतु यह धारणा निर्मूल साबित हुई है और आज हिंदी वेबसाइट तथा ब्लॉग न केवल धड़ल्ले से चले रहे हैं बल्कि देश के साथ-साथ विदेशों के लोग भी इन पर सूचनाओं का आदान-प्रदान तथा चैटिंग कर रहे हैं। इस प्रकार इंटरनेट भी हिंदी के प्रसार में सहायक होने लगा है।[11] हिन्दी आज सोशल मीडिया में विविध रूपों से विकसित हो रही है। सोशल मीडिया में हिंदी को वैश्विक मंच मिला है जिससे हिंदी की पताका पूरे विश्व में लहरा रही है। आज फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्सअप पर अंग्रेजी में लिखे गये पोस्ट या टिप्पणियों की भीड़ में हिंदी में लिखी गई पोस्ट या टिप्पणियाँ प्रयोगकर्ताओं को ज्यादा आकर्षित करती हैं।
सोशल मीडिया में हिंदी भाषा का वर्चस्व का प्रमुख कारण यह है कि हिंदी भाषा अभिव्यक्ति का सशक्त एवं वैज्ञानिक माध्यम है। संबंधित पोस्ट के भावों को समझने में असुविधा नहीं होती है। लिखी गई बात पाठक तक उसी भाव में पहुँचती है, जिस भाव से लिखा जाता है। सोशल मीडिया पर मौजूद हिंदी का ग्राफ दिन दो गुनी रात चौगुनी आसमान छू रहा है। यह हिंदी भाषा की सुगमता, सरलता और समृद्धता का ही प्रतीक है। हिंदी भाषा के इस सोशल मीडिया ने अपनी ताकत से सरकारों को अपने फैसलों, नीतियों और व्यवहारों की ओर ध्यान आकर्षित करवाया है। इस मीडिया ने लोक-बोल-सुन रहे हैं इन मंचों पर सार्वजनिक विमर्श की गुणवत्ता बढी है तथा लोगों का स्तर हिंदी भाषा में बेहतर हुआ है। [12] हिंदी भाषा, यूट्यूब पर भी फल-फूल रही है।[13]
आंकड़े बताते हैं कि सोशल माध्यमों पर हिन्दी का जादू चल गया है।[14] ऐसा भी कहा जा रहा है कि सामाजिक माध्यमों ने हिन्दी की ताकत बढ़ायी है। [15] हाल में (अप्रैल २०२२) आये एक अनुमान के अनुसार इन्टर्नेट से जुड़ने वाले ९० प्रतिशत नये लोग हिन्दी या देसी भाषाओं का प्रयोग कर रहे हैं।[16][17][18] कुछ विचारक तो यह कह रहे हैं कि १९वीं शताब्दी में मैकाले ने भारत में जो अनर्थ किया, उसे २१वीं शताब्दी में सोशल माध्यम उलट सकते हैं।[19]
सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ शी, जहाँ ; रुई, हुवाक्सिया ; व्हिंस्तों, एंड्रू बी. (फोर्थ कमिंग). "कंटेंट शेयरिंग इन अ सोशल ब्रॉड कास्टिंग एनवायरनमेंट एविडेंस फ्रॉम ट्विटर". मिस क्वार्टरली
- ↑ जनसंदेश टाइम्स,5 जनवरी 2014, पृष्ठ संख्या:1 (पत्रिका ए टू ज़ेड लाइव), शीर्षक:आम आदमी की नई ताक़त बना सोशल मीडिया, लेखक: रवीन्द्र प्रभात
- ↑ "फेसबुक पर ग्राहकों के साथ बातचीत के तरीको में सुधार". क्लियरट्रिप डॉट कॉम. Archived from the original on 23 फ़रवरी 2014. Retrieved 19 फरबरी 2014.
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(help) - ↑ फित्ज़गेराल्ड, बी. (25 मार्च 2013). "डिस अपियरिंग रोमनी". दि हफिंग्टन पोस्ट. Archived from the original on 13 नवंबर 2013. Retrieved 25 मार्च 2013.
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at position 19 (help)CS1 maint: bot: original URL status unknown (link) - ↑ हिन्शिफ, डॉन. (22 फ़रवरी 2014). "आर सोशल मीडिया सिलोस होल्डिंग बेक बिज़नस". ZDNet.com. Archived from the original on 22 फ़रवरी 2014. Retrieved 15 फरबरी 2014.
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(help)CS1 maint: bot: original URL status unknown (link) - ↑ अनिमेष, शर्मा. "सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का उपयोग करते समय मैलवेयर और फ़िशिंग से सुरक्षित रहें, एक क्लिक और आपका बैंक खाता शून्य". prabhasakshi.com. प्रभासाक्षी. Retrieved 10 जनवरी 2022.
- ↑ जनसंदेश टाइम्स,5 जनवरी 2014, पृष्ठ संख्या:1 (पत्रिका ए टू ज़ेड लाइव), शीर्षक:आम आदमी की नई ताक़त बना सोशल मीडिया, लेखक: रवीन्द्र प्रभात
- ↑ शेर्विन आदम, आदम. "स्टाइल ओवर सब्सतांस: वायने रूनी क्लेअरेड ऑफ़ नाइके ट्विटर प्लग". दि इंडिपेंडेंट. Archived from the original on 20 फ़रवरी 2014. Retrieved 4 सितम्बर 2014.
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(help) - ↑ "संग्रहीत प्रति". Archived from the original on 23 जनवरी 2014. Retrieved 19 फ़रवरी 2014.
- ↑ अ आ All World Gayatri Pariwar (2023). Akhand Jyoti June 2023 (Original PDF) (in Hindi). pp. 35–37. Retrieved 2023-06-20.
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: CS1 maint: unrecognized language (link) - ↑ सोशल मीडिया और हिन्दी
- ↑ "सोशल मीडिया पर हिंदी भाषा का वर्चस्व". Archived from the original on 21 नवंबर 2015. Retrieved 21 मार्च 2020.
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(help) - ↑ "Why 'vernacular' is the big game for digital marketers". Archived from the original on 20 फ़रवरी 2020. Retrieved 21 मार्च 2020.
- ↑ सोशल मीडिया पर छाया अपनी हिंदी का जादू (सितम्बर, 2021)
- ↑ kyaa क्या सोशल मिडिया ने हिन्दी की ताकत बढ़ायी है?
- ↑ Indian languages are storming the Internet in India, 9 out of 10 new users to be an Indian language user
- ↑ "90% of new Internet users in India access content in Vernacular languages". Archived from the original on 4 दिसंबर 2021. Retrieved 3 मई 2022.
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(help) - ↑ By Passing The Language Barrier, The Rise Of The Vernacular Social Media Apps in India (दिस. २०२१)
- ↑ Social Media needs to empower mother languages
इन्हें भी देखें
[संपादित करें]बाहरी कड़ियाँ
[संपादित करें]सामाजिक मीडिया से संबंधित विकिमीडिया कॉमन्स पर मीडिया